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सवा सौ साल से धर्म की पताका फहरा रहा रामकृष्ण मिशन

रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर धर्म की पताका फहराई। इसका मुख्यालय कोलकाता के पास बेलुड़ में है।

इतिहास कई बातों का गवाह होता है। कभी-कभी कुछ घटनाएं भी इतिहास बन जाती हैं। वह परिवर्तन की बुनियाद रखती हैं। ऐसा ही हुआ 1897 में 01 मई को। रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर धर्म की पताका फहराई। इसका मुख्यालय कोलकाता के पास बेलुड़ में है। इस मिशन की स्थापना के केंद्र में वेदांत दर्शन का प्रचार-प्रसार है। रामकृष्ण मिशन दूसरों की सेवा और परोपकार को कर्म योग मानता है। यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। 01 मई को 2022 को इस मिशन को 125 साल पूरे हो जाएंगे।

रामकृष्ण मिशन 19वीं सदी का अंतिम महान धार्मिक एवं सामाजिक आंदोलन है। इस मिशन ने समाज सेवा के लिए बहुआयामी कार्य किए हैं। । आज यह मिशन विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। इसकी शाखायें दुनिया के लगभग सभी देशों में हैं। रामकृष्ण मिशन अनेक धर्मार्थ औषधालय और चिकित्सालयों का संचालन कर रहा है। रामकृष्ण मिशन में रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के विचारों का समावेश है। स्वामी विवेकानंद दुनिया को मानवता को ईश्वर की पूजा का संदेश दे गए हैं।

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इसके अलावा दुनिया के कामगारों के लिए भी 01 मई खास तिथि है। इसी दिन उनको सबसे बड़ा अधिकार मिला। उनके लिए काम के घंटे तय हुए। मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर 1877 में आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन दुनिया के विभिन्न देशों में फैला। 01 मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक साथ हड़ताल की। इसमें 11,000 फैक्टरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हजार मजदूर शामिल हुए। तब से 01 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 01 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग का झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी।

और इसी रोज 2011 को दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिका ने मार गिराया था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने इस खतरनाक मिशन को ऑपरेशन नेप्ट्यून स्पीयर का नाम दिया था। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 हमले के बाद ओसामा बिन लादेन अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था। अमेरिका ने कई साल ओसामा बिन लादेन की तलाश की मगर कामयाबी 01 मई 2011 को मिली। इस पूरे ऑपरेशन को व्हाइट हाउस के सिचुएशन रूम में लाइव देखा गया।

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करीब दो दर्जन नेवी सील्स के जवान दो हेलीकॉप्टर में बैठकर टारगेट की तरफ उड़े। कुछ देरबाद वह एबटाबाद में ओसामा के ठिकाने (इमारत) के ऊपर जा पहुंचे। फिर नेवी सील्स के कमांडो ने नीचे उतर कर ठिकाने को घेर लिया। इमारत के तीसरी माले पर बने कमरे को तोड़ते ही ओसामा बिन लादेन दिख गया। एक नेवी सील्स कमांडो ने बिना एक पल गंवाए ओसामा पर गोलियां बरसा दीं। चंद सेकेंड में दुनिया भर में आतंक का पर्याय रहा आतंकी ओसामा बिन लादेन बेजान जमीन पर गिर गया। इस तरह अमेरिका का ऑपरेशन नेप्ट्यून स्पीयर पूरा हुआ।

अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने घोषणा की है कि 11 सिंतबर के धमाकों का मास्टरमाइंड मारा गया है। हालांकि पाकिस्तान मानता है कि ओसामा बिन लादेन की मौत 01 मई को नहीं हुई थी। एनबीसी न्यूज और विदेश के कई मीडिया चैनलों को संबोधित करते हुए 01 मई को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ऐलान किया कि एक मिलेट्री ऑपरेशन में अमेरिका ने अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार दिया है।

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