जेटली के 92 साल पुरानी प्रथा खत्म करने के पीछे क्या थी वजह

नई दिल्ली। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 92 साल पुरानी परंपरा को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही साल 2017 से रेलवे बजट की घोषणाएं भी आम बजट में ही वित्त मंत्री करने लगे। इससे पहले रेल मंत्री आम बजट से एक दिन पहले संसद में रेलवे बजट पेश करते थे। वित्त मंत्री जेटली ने केंद्रीय और रेलवे बजट को वित्त वर्ष 2017-18  में एकसाथ पेश किया। उसके बाद से ही ये दोनों बजट एकसाथ पेश किए जाने लगे।
1924 में ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू की गई थी रेल बजट 
सरकार ने बजटीय सुधार के तहत जल्दी बजट पेश करने के साथ ही रेलवे और आम बजट के मर्जर का फैसला लिया। अलग रेलवे बजट पेश करने की परंपरा 1924 में ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू की गई थी।
महीने की अंतिम तिथि की जगह 1 फरवरी को बजट होता है पेश
जेटली ने आम बजट में रेलवे बजट को मर्ज करने के साथ ही बजट पेश करने की तारीख भी बदल दी। फरवरी माह की अंतिम तिथि की जगह बजट करीब एक महीना पहले एक फरवरी को पेश किया जाने लगा। इसके साथ ही आर्थिक सर्वे (इकॉनमिक सर्वे) भी एक दिन पहले 31 जनवरी को संसद में पेश करने की शुरुआत हो गई।
रेलवे के राजस्व पर सरकार की निर्भरता पहले हुआ करती थी ज्यादा 
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में रेलवे और आम बजट के मर्जर का फैसला बजटीय सुधारों के तहत लिया था। अलग रेलवे बजट पेश करने की परंपरा की शुरुआत 1924 में ब्रिटिश शासन में हुई थी। चूंकि सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) रेलवे द्वारा अर्जित राजस्व पर निर्भर रहता था। उस समय रेलवे से प्राप्त राजस्व अनुपातिक रूप से बहुत ज्यादा था। इतना ही नहीं रेल बजट कुल केंद्रीय बजट के 80 फीसदी से ज्यादा होता था।
नीति आयोग ने भी दी थी इस चलन को खत्म करने की सलाह 
सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग ने भी दशकों पुराने इस चलन को खत्म करने की सलाह दी थी। विचार-विमर्श और अलग-अलग अथॉरिटीज के साथ मंथन के बाद सरकार ने रेलवे बजट को आम बजट में मिलाने का फैसला लिया गया था। दरअसल, यह विचार व्यावहारिक था। क्योंकि आम बजट की तुलना में रेलवे बजट का हिस्सा अब बहुत कम है।

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