लाखों की फिरौती वसूलने वाले के घर में कफ़न तक के पैसे नहीं

रामगढ़। दूर-दूर तक जिसका आतंक था। ख़ौफ़ के कारण रंगदारी की मोटी रकम जिसके पास खुद चलकर आती थी। मौत के साथ उसके आपराधिक साम्राज्य का तिलिस्म ऐसा टूटा कि आज उसके घर कफ़न तक के लिए पैसे नहीं हैं। रांची, रामगढ़, बोकारो और हजारीबाग जिलों में आतंक का पर्याय रहे बाजीराम के अंतिम संस्कार का प्रबंध जिला प्रशासन को करना पड़ेगा।
गुरुवार को पुलिस मुठभेड़ में मारे गए बाजीराव का मुख्य पेशा रंगदारी वसूलना था। अपहरण कर लाखों रुपये की फिरौती वसूलता था। वर्ष 2010 से 2018 तक उसने दर्जनों घटनाओं को अंजाम दिया था। यहां तक कि उसने अपने मामा व सीपीआई नेता बालेश्वर महतो को भी नहीं छोड़ा।
उल्लेखनीय है कि गुरुवार की रात कुजू ओपी क्षेत्र के चमारी डेरा जंगल में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में बाजीराम महतो मारा गया था। शुक्रवार को जब पुलिस उसके पैतृक गांव लईयो पहुंची तो वहां की हालत देखकर दंग रह गई। हर किसी के मुंह से यही निकला कि लाखों की फिरौती वसूलने वाले के घर में खाने तक के लाले पड़े हैं। उसका खपड़ैल मकान देखकर पुलिस को काफी आश्चर्य हुआ। उसकी 70 साल की बूढ़ी मां किसी तरह अपना पेट पाल रही थी। बाजीराम की शादी नहीं हुई थी। अक्सर पड़ोसी ही अपने बचे खाने उसकी बूढ़ी मां को देते थे। गांव में उसका मकान है, जिसे उसके पिता चालो महतो ने बनावाया था।
गांव वालों के अनुसार, बाजीराम ने होश संभालते ही जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया था। गांव में सभी उससे डरते थे। जब उसकी मौत की खबर सामने आई तो बाजीराम के परिजनों ने सबसे पहले अपना पल्लू झाड़ लिया। वे भी जानते थे कि बाजीराम से जो भी अपना रिश्ता निभाएगा, गांव वाले उसे किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।

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