हाईटेक दुनिया में विश्व पृथ्वी दिवस के मायने

-योगेश कुमार सोनी-

हर वर्ष पूरी दुनिया में 22 अप्रैल विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है। पर्यावरण को बचाने के उद्देश्य से इस दिवस की स्‍थापना सन 1970 में सीनेटर जेराल्ड नेल्सन द्वारा पर्यावरण शिक्षा के रूप में की गयी थी। इस दिन संकल्‍प लिया गया कि पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया जायेगा और कोई ऐसा काम नहीं किया जायेगा जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचे। अमेरिका में पृथ्वी दिवस को वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका मकसद धरा को हरा-भरा रखने से है। यदि हम इस दिवस की बात हमारे देश के परिवेश के रूप में देखें तो यह महज मजाक-सा बनकर रह गया। मनुष्य अपने विकास के चक्कर में हर रोज अपनी विनाश की गाथा लिख रहा है। रोजाना हर क्षेत्र में तकनीकीकरण हो रहा है, जिससे हम स्वयं ही प्रकृति के खिलाफ जा रहे हैं। पृथ्‍वी पर होने वाले प्रदूषण के कारण पृथ्‍वी संकट में हैं। बेतहाशा बढ़ते प्रदूषण की वजह से ओजोन परत में भी छेद होने लगी है। यह परत सूर्य से निकालने वाली पराबैंगनी किरणों को हम तक पहुंचने से रोकती है। यह बात हमें बहुत समय से पता है लेकिन हम इसके लिए कुछ नहीं कर रहे हैं, जिससे हमारी आने वाली नस्ल खतरे में है। अब हम आपको ऐसी घटना के विषय में बताते हैं, जिससे उस कानून को सुनकर गुस्सा और हंसी साथ-साथ आएगी। जैसा कि आपको पता है हमारे देश में कुछ वर्षों पहले पॉलिथीन बैन कर दी गई थी लेकिन वो सिर्फ छोटे मंझोले दुकानदारों के लिए और जो बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं वो अपना सामान पॉलिथिन में आसानी से बेच सकती हैं, वो भी कानून के दायरे में रहकर। जैसे दूध, पानी, बिस्किट, मसाले, कोल्ड ड्रिंक्स की प्लास्टिक की बोतलें। इसके विपरित यदि आप किसी दुकानदार से सब्जी या परचून की दुकान से अन्य रोजाना प्रयोग होने वाली खाद्य सामग्री लेंगे तो ऐसे दुकानदारों के लिए पॉलिथिन बैन हैं। इस एक्ट से यह तो स्पष्ट हुआ कि इसे लेकर हमारे देश में समान कानून नहीं है या इस कानून को बनाते वक्त कुछ चीजें छूट गई। कुछ इसी तर्ज पर हम शहरीकरण के चलते अपने आसपास की दुनिया से वन, वृक्ष, पेड़-पौधे, नदी, तालाब जैसे अहम प्राकृतिक संसाधन को खत्म कर रहे हैं। जैसा कि हम रोजाना देख रहे हैं, अब हर जगह बिल्डरों का जाल फैलता जा रहा है। प्रकृति को नष्ट करते हुए बहुत तेजी के साथ मानव जीवन विनाश की ओर ले जा रहे हैं। बहराहल, अब यहां भी एक कानून की बात करें तो बिल्डिंग बनाने के लिए कई हजार पेड़ों को रोजाना काटा जा रहा है। कोर्ट से आदेश होता है कि जितने भी पेड़ आप काटते हैं या वहां से हटाते हैं, उनको दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया जाए। लेकिन कितने बिल्डर ऐसा करते हैं, एक प्रतिशत भी नहीं। यदि आप अपना छोटा-सा घर बना रहे हों या अन्य किसी कारण से आपको कोई पेड़ हटाना पड़ जाए तो संबंधित विभाग एक आदमी को इतना परेशान कर देता है, जैसे उसने बहुत बड़ा आपराध कर दिया हो। ऐसे कई कानूनों की लंबी फेहरिस्त है। लब्बोलुबाव यही है कि जबतक हमारे कानून सबके लिए समान नहीं होंगे तबतक हर कोई एक-दूसरे को धोखा देता रहेगा। बढ़ती जनसंख्या के कारण देश में हर चीज को लेकर असमानताएं आने लगी हैं। यदि हम भी यहीं सोचें कि जबतक कानून का डर हमारे सामने है तबतक हम सीधे व सही चलें, तो यह निश्चित तौर पर गलत है। हमें बिना कानून के डर के भी सही राह पर ही चलना होगा। आज यदि हम ऐसा नहीं कर रहे हैं तो आप यकीन मानिए हम आनेवाली पीढ़ी को बहुत बड़े खतरे में डाल रहे हैं। साथ ही हमें उस कहावत की मानसिकता से बाहर आना होगा-कबूतर यदि आंख बंद कर लेगा तो बिल्ली उसे खाएगी नहीं। बिल्ली का कबूतर को खाना तय होता है इसलिए इसी तर्ज पर हम चलते रहे तो हमारा जीवन भी कठिनाइयों में जाना निश्चित है। इस बात का सबसे सजीव उदाहरण यह है कि अब से करीब तीन दशक पूर्व हम बहुत साधारण जीवन जीते थे। इससे बीमारियों भी कम होती थी लेकिन अब हर रोज एक नई बीमारी जन्म ले रही है। कम आयु में युवाओं की मौत हो रही है और उन बीमारियों का जन्म हो रहा है, जिनके विषय में कभी किसी ने नहीं सुना था। बात स्वाभाविक है कि हर कोई ऐसा सोचता है कि हमें चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन हमारे बच्चों को कुछ न हो लेकिन अब यह बात सोचने से कुछ नहीं होगा, करने से होगा। बूंद-बूंद करके सागर बनता है इसलिए एक-एक करके करोड़ों का ऐसा कारवां बनाने की जरूरत है, जिससे बदलाव दिखने लगे। हम दूसरों को तब सुधारेंगे जब खुद कुछ करके दिखाएंगे। साथ ही अब हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं है जिससे हम कोई अन्य शोध करके बच सकें। इसलिए मौजूदा परिदृश्य में हमें रोजाना विश्व पृथ्वी दिवस मनाने की जरूरत है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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