झूठी खबरों से देश खतरें की ओर

-योगेश कुमार सोनी-

हमारे देश की एक अदभूत विडंबना है कि बहकावे में जल्दी आ जाते हैं जिसका प्रमाणिकता विश्व के सबसे विश्वसनीय रिचर्स सेंटर ने दी है। सोशल मीडिया मैटर्स द्वारा ऑनलाइन सर्वे के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 फेक न्यूज से प्रभावित होगा। फर्जी खबरों व गलत सूचनाओं के इफेक्ट को जानने के लिए यह सर्वे किया गया है। मीडिया मैटर्स के मुताबिक 54 प्रतिशत सैंपल जनसंख्या में बातचीत करने वाले वर्ग की आयु 18 से 25 वर्ष है वहीं 56 प्रतिशत पुरुषों, 43 प्रतिशत महिलाओं और 1 प्रतिशत ट्रांसजेंडरों द्वारा सुनिश्चित किया गया है। ‘डॉन्ट बी फूल’ फेक न्यूज ने यह सर्वेक्षण यह समझने के लिए किया गया है कि फेक न्यूज इंसान के मस्तिष्क प्रभाव ड़ाल सकती है या नही जिस करीब 65 प्रतिशत जनता का मानना है कि गलत खबरों से लोगों का मन प्रभावित हो जाता है किसी भी पार्टी के पक्ष या विपक्ष के लिए या अन्य किसी भी घटना के लिए। जैसा कि यह सर्वे देश के 628 वोटरों के सैंपल के आकार पर आधारित है। जिन्होनें अलग अलग मीडिया संस्थानों के माध्यम से फेक न्यूज की पहचान करने के अपने विचार और व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त किए हैं लेकिन इसमें सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाले सोशल मीडिया स्टेशन फेसबुक और व्हाट्स एप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया है। यह दोनों माध्यम गलत सूचना के प्रसार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रमुख मंच माने जा रहे हैं। सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि 96 प्रतिशत सैम्पल जनसंख्या को व्हाट्सएप के माध्यम से नकली समाचार प्राप्त हुए हैं। लगभग 90 करोड़ मतदाता अपने मत का इस्तेमाल कर सरकार बनवाने में अपनी भागीदारी दिखा रहे हैं। एक सर्वे के मुताबिक करोड़ों मतदाता और उम्मीदवार को वोट देने से पहले लोकसभा चुनाव 2019 में पहली बार लगभग 9.4 प्रतिशत मतदाताओं की वृद्धि देखी जाएगी, जो नई सरकार के गठन में निर्णायक दर्शक होंगे। जहां एक सोशल मीडिया दुनिया के लिए वरदान बन चुकी है वहीं दूसरी ओर इसके कू-प्रभाव भी दिखने लगे। दरअसल मामला यह है सभी एक आम आदमी तो अपनी दिनचर्या या जीवनशैली को अपनी जिंदगी से जुडे लोगों के साथ शेयर करता है लेकिन राजनीतिक पार्टियों से जुड़े कुछ शरारती तत्व, वो अफवाहें फैलाते हैं जो घटना कभी हुई ही नही और जिसका कू-प्रभाव नई पीढ़ी व सामान्य लोगों पर पड़ रहा है।सूत्रों के मुबाबिक भ्रमाकता फैलाने के लिए पढ़े-लिखे लोगों की एक पूरी टीम होती है। अब चुनावों की जीतना या लड़ना, नेता व पार्टियां एक युध्द के रुप में लेने लगे हैं। ऐसे लोग जनता को कैसे भी अपने ओर आर्कषित करना चाहते हैं। लेकिन उनकी शाम, दाम, दंड, भेद वाली प्रक्रिया देश के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रही है। 53 प्रतिशत सैम्पल को विभिन्न चैनलों पर झूठी जानकारी मिली थी इसके अलावा 48 प्रतिशत जनसंख्या इस बात से सहमत हुई कि उन्हें पिछले 30 दिनों में किसी न किसी माध्यम से फेक न्यूज प्राप्त हुई थी। हालांकि 41 प्रतिशत लोगों ने फेक न्यूज की पहचान करने के लिए गूगल, फेसबुक और टवीटर की मदद ली। हम इन आकंडों के आधार पर कह सकते हैं कि यदि फेक न्यूज का मक्कड जाल ऐसे ही फैला रहा तो देश का लोकतंत्र खतरे में आ सकता है जिसकी नींव 2019 के लोकसभा चुनाव में रखी जा चुकी है। दरअसल अशिक्षित वर्ग ऐसी घटनाओं को सही मानकर झूठी खबरों का प्रचार प्रसार करने लगता है जिससे संबंधित लोग बिना जांच के लोग उस पर विश्वास करने लगते है और जिससे ऐसे लोगों की जनसंख्या बढ़ती जा है। अब यदि हम यह सोचे कि इतने लोगों की संख्या कितनी है और इससे क्या फर्क पड़ता है तो सर्व मे इसकी गणना कितनी है,यह स्पष्ट है व साथ ही एक वोट ही अटल सरकार गिर गई थी जो हमारे देश की राजनीति का सबसे सजीव उदाहरण है। बदलते दौर में प्रचार का तौर तरीके पूरी तरह बदल चुके हैं जिससे हर कोई फायदा लेना चाहता है। बिना हुई घटनाओं के अलावा,शरारती तत्व फोटोशॉप से फोटो को भी एटिड(बदल) देते हैं जिससे लोग मान लें कि यह फोटो सही है। आपको ज्ञात हो कि कुछ समय पूर्व दो लड़को की फोटो वायरल हुई थी और उन्हें व्हाट्स एप पर चोर कहकर फैला दिया जिससे एक जगह उन्हें किसी ने पहचान लिया व भीड़ ने उनको बिना जांच पड़ताल के शक के आधार पर ही जान से मार दिया था । मामले की जांच हुई तो पता चला कि वह निर्दोंष थे। मान लिजिए वह दोषी भी थे तो उन्हें जान से मारना तो कोई सजा नही हो सकती थी। आप कानून के हवाले भी कर सकते थे। ऐसे घटनाओं से मॉब लिंचिंग भी बढ़ रही हैं। इस तरह के कई सजीव उदाहरण हैं। कुछ लोग तो इतिहास के साथ छेड़छाड भी करके उस बात को सोशल मीडिया पर ऐसे ट्रेंड करवा देते हैं जैसे वो घटना सत्य हो लेकिन ज्यादा दुख तब होता है जब लोग बिना जांच किए उस बात को शेयर या फॉरवर्ड कर देते हैं। इससे सबसे बड़ा नुकसान तब होता है जब जनता इसे सच मान लेती है। हालांकि बीते दिनों मार्क जकुरबर्ग ने फर्जी ने फेसबुक पर हिंसक घटनाओं को शेयर करने वालों को झटका दिया था व अब फेसबुक पर यदि आप कोई भी आपत्तिजनक विडियों या फोटो शेयर करोगे तो वो नही दिखती। लेकिन शातिरों ने इसका भी रास्ता निकाल लिया और इतिहास व वर्तमान के ईर्द-गिर्द जाकर ऐसी जानकारी निकाल कर लेते हैं जिसका सच से कोई वास्ता नही होता और देश के भविष्य को परेशानियों में डाल रहे हैं। यदि हम सोशल साइट का सदुपयोग करें तो यह मानव जीवन को अग्रसर करने वाली क्रांति हैं क्योंकि आज की पीढ़ी को हमे यह समझाना चाहिए अब से दो दशक पहले इतनी तकनीकियां नहीं थी। कुछ वर्षों पहले लोग चिठ्ठी का इंतजार करते थे और लोगों को आपसे देखे हुए भी सालों बीत जाते थे लेकिन अब तुरंत विडियो कॉलिंग करके एक दूसरे को देखकर बात कर सकते है व फोटों भी दे सकते हैं। लेकिन देश में ही नही ऐसे गलत व घटिया मानसिकता के लोग पूरे दुनिया मे भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं। जिन सॉफ्टवेयरों खासतौर फेसबुक से हमें हमारी दुनिया के वो लोग मिलें है जो हमसे छुट चुके थे या यूं कहें कि उनसे मिलने की हर तरह की उम्मीद खो चुके थे लेकिन कहते हैं न गंगाजल से भरी पूरी बाल्टी को दूषित करने के लिए एक बूंद गंदे पानी की काफी है वैसी ही तर्ज पर कुछ लोग काम कर रहे हैं। लेकिन अब हमें जरुरत खुद से संभलने की और अपने आस पास के लोगों को समझाकर संभालने की क्योंकि एक कहावत है कि ‘अति हर चीज की बुरी होती है‘। इसलिए हम इस लेख के माध्यम से यह अपील करते हैं कि किसी भी खबर को सही समझने से पहले उसकी पुष्टि करें तभी उस पर विश्वास करें।

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