एक ऐसा भी गांव है जहां अधिकांश उम्मीदवार वोट मांगने तक नहीं जाते

महुडंड पंचायत में न तो शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, सड़क की व्यवस्था हुई है, उच्च शिक्षा के लिये 20 किमी0 पगदंडी के सहारे पहुंचते है अनुमंडल मुख्यालय

मेदिनीनगर। पलामू ज़िले के हुसैनाबाद अनुमंडल के अति उग्रवाद प्रभावित महुडंड पंचायत मुख्यालय में स्थापित पुलिस पििकेट पर तैनात जवानों का दर्द कोई नहीं सुनता। सुरक्षा व्यवस्था में लगे दर्जनों जवानों ने महुडंड जाने के क्रम में हिन्दुस्थान समाचार से अपनी दुखड़ा सुनाया था। जवानों ने भर्राये दिल से कहा कि पलामू जिला के हुसैनाबाद अनुमंडल मुख्यालय से 25 किमी0 दूर घने जंगलों में महुडंड पुलिस पििकेट की स्थापना की गई है। जिसमें कार्यरत जवानों को कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। जवानों ने कहा कि अगर किसी की तबीीयत खराब हो तो यहां अपने परिजनों को कुछ कहना भी दुर्लभ है। जवानों ने कहा कि झारखंड राज्य में जगुआर पुलिस की स्थापना की गई है। जिसे सरकार द्वारा 50 प्रतिशत अधिक मानदेय अन्य जवानों से अधिक दिया जाता है। किंतु अन्य जवान भी अति उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में रहकर अपनी जान जोखिम में डालकर डियूटी पर तैनात है, किंतु हमलोगों का दुख दर्द कोई नहीं सुनता। जवानों ने कहा कि महुडंड पंचायत मुख्यालय में न तो स्वास्थ्य केंद्र है न ही कोई व्यवस्था। यहां के जवानों को अगर अनुमंडल मुख्यालय जाना भी है तो वह पैदल ही जाना पड़ता है। जवानों ने कहा कि सबसे अधिक सड़क की समस्या है। अगर महुडंड पंचायत क्षेत्र के सड़क का निर्माण हो जाता तो पुलिस प्रषासन के लिये वरदान साबित होता।
उल्लेखनीय है कि हुसैनाबाद अनुमंडल क्षेत्र का अति उग्रवाद प्रभावित आदिवासी बाहुल्य पंचायत महुडंड स्वास्थ्य, शिक्षा, सडक व बिजली जैसी मूल भूत समस्याओं से आज भी महरूम है। अनुमंडल मुख्यालय से करीब बीस किलो मीटर की दूरी पर जंगलों पहाडों से घिरे इस गांव के लोगों को अबतक न सडक की सुविधा है, न बिजली, न पेय जल, न स्वास्थ्य केंद्र न ही माध्यमिक शिक्षा की व्यव्स्था। इस गांव में अधिकांश उम्मीदवार वोट मांगने भी नहीं जाते हैं। 2007 में इस पंचायत के 40 आदिम जनजाति के लोगों को बिरसा आवास स्वीकृत हुआ था। आज तक उसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया है। सबसे अधिक परेशानी मरीजों को होती है। डोली खटोली पर हुसैनाबाद लाने के क्रम में भाग्य भरोसे ही उनकी जान बच पाती है। बिजली के अभाव में गांव के लोगों को मोबाइल चार्ज कराने भी बीस कीलो मीटर दूर हुसैनाबाद आना पडता है। इस गांव के अधिकांश लोगों का रोजगार खेती बाड़ी व जंगलों से लकडियां चुनकर उसे बाजार में बेचना है। इस पंचायत की आबादी करीब 54 सौ है। इसमें आठ राजस्व गांव है। इस पंचायत के लोगों को सबसे अधिक परेशानी बरसात के दिनों में होती है। जब कोई बीमार पडते हैं तो उन्हें बीस किलो मीटर दूर हुसैनाबाद अस्पताल लेजाने के क्रम में ही उन्हें जान गवाना पड़तीी है। इस पंचायत में एक भी स्वास्थ्य उप केंद्र का नहीं होना स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही व जनप्रतिनिधि की अदूरदर्शिता का परिचायक है। पंचायत में माध्यमिक विद्यालय नहीं होने से मैट्रिक तक की शिक्षा के लिए भी विद्यार्थियों को घर से दूर रहना पडता है। यही वजह है कि इस क्षेत्र में साक्षरता दल काफी कम है। महिलाओं में तो और भी कम साक्षरता दर है। इस क्षेत्र के लोगों को जमीन के नाम पर पत्थर और पहाड़ है। यही वजह है कि रोजगार के लिए या तो युवाओं को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। या जंगलों पहाडों से लकडियां चुनकर बेचने का कार्य करते हैं। संपूर्ण पंचायत आज भी आदिम युग में जीवन बिताने को मजबूर है। अति उग्रवाद प्रभावित महुडंड पंचायत के लगभग एक दर्जन गांव की तकदीर नहीं बदल सकी। यहां के लोग आज भी पगदंडी के सहारे 15 से 20 किमी0 पैदल चलकर हुसैनाबाद, हैदरनगर व मोहम्मदगंज स्वास्थ्य या शीक्षा के अलावा बाजार करने को आते है। हुसैनाबाद के महुडंड में प्रशासन आपके द्वार कार्यक्रम के दो माह पूर्व डीआईजी विपुल शुक्ला व पलामू पुलिस कप्तान इंद्रजीत महथा के अथक प्रयास से महुडंड में पुलिस पिकेट की स्थापना की गई। जिससे वहां के लोगों ने राहत की सांस ली है।

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