‘कन्हैया के हरावे ले, ..तनवीर के खड़ा करल गेल छै’

बेगूसराय। ‘कन्हैया के हरावे ले, गिरिराज के जितावे ले, तनवीर के खड़ा करल गेल छै’ (कन्हैया को हराने के लिए, गिरिराज को जिताने के लिए, तनवीर को खड़ा किया गया है)। यह कहना है जेपी के विश्वस्त रहे बुजुर्ग गांधीवादी नेता व पूर्व सांसद प्रो. रामजी भाई का। रामजी भाई का मानना है कि यदि राष्ट्रीय जनता दल के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद यादव व उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने जिद करके तनवीर हसन को प्रत्याशी नहीं बनाया होता तो भाकपा के प्रत्याशी डा. कन्हैया कुमार को जीतने से कोई रोक नहीं सकता था। लालू और उनके छोटे पुत्र ने कन्हैया कुमार को सांसद बनने से रोकने के लिए बेगूसराय संसदीय सीट को भाकपा के लिए नहीं छोड़ा, उससे गठबंधन नहीं किया और तनवीर हसन को प्रत्याशी बनाया। क्योंकि पिता – पुत्र को भय है कि कन्हैया जीत गया तो बिहार का सबसे बड़ा युवा नेता बन जायेगा। तब उसके आगे तेजस्वी कहीं नहीं ठहरेंगे। इस सोच के तहत लालू पिता – पुत्र ने जो किया है, उसका लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल रहा है। प्रो. रामजी भाई का कहना है कि बेगूसराय में लड़ाई कांटे की हो गई है। टक्कर भाकपा व भाजपा के प्रत्याशियों के बीच है। किसकी जीत होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि राजद प्रत्याशी कितना वोट काटता है। वैसे तो मुस्लिम, भूमिहार, दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के 70 से 80 प्रतिशत युवा कन्हैया कुमार पर फिदा हैं। भूमिहार व अगड़ी जाति के बुजुर्ग लोग भाजपा के प्रत्याशी की तरफ हैं। बुजुर्ग मुसलमान व यादव राजद के मुस्लिम प्रत्याशी की तरफ हैं। यदि राजद प्रत्याशी तनवीर हसन को मुसलमानों व यादवों के अधिक वोट मिल गये तब तो भाजपा के प्रत्याशी का रास्ता साफ हो जायेगा, वरना भाकपा का प्रत्याशी कन्हैया कुमार जीत जायेगा। भाकपा के प्रत्याशी कन्हैया कुमार और भाजपा के प्रत्याशी गिरिराज, दोनों ही भूमिहार जाति के हैं। इसलिए भूमिहार वोट दोनों में बंट रहा है। ऐसे में इस सीट पर मुसलमान, यादव और दलित वोट निर्णायक होंगे। बेगूसराय के रहने वाले पेशे से इंजीनियर आसिफ का कहना है कि मुकाबला लगभग त्रिकोणीय है लेकिन मुख्य मुकाबला भाकपा और भाजपा प्रत्याशियों के बीच है। लालू यादव ने अपने बेटे तेजस्वी के भविष्य की राजनीति को देखते हुए कन्हैया को नहीं बढ़ने देने, सांसद नहीं बनने देने, हराने के लिए राजद से तनवीर हसन को प्रत्याशी बना दिया जबकि वह पहले भी यहां से हार चुके हैं। आसिफ का कहना है कि लालू ने गठबंधन के अपने कई सहयोगी दलों को भी इसी तरह से कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया है, जहां पर उनके सहयोगी दलों के मुस्लिम या राजपूत या भूमिहार प्रत्याशी जीत सकते थे। उनके इस तरह की केवल अपने व कुनबे के लाभ वाली राजनीति का सबसे अधिक लाभ भाजपा को मिल रहा है। इस तरह से वह राज्य में भाजपा बनाम राजद की राजनीति बनाये रखने के लिए यह कर्म कर रहे हैं। देश की एक बड़ी चुनावी सर्वेक्षण एजेंसी के बिहार व झारखंड प्रमुख रहे तथा एक टीवी चैनल के सम्पादकीय हेड मनोज का कहना है कि 24 अप्रैल को भाकपा ने राजद से आग्रह किया था कि उसके प्रत्याशी कन्हैया कुमार को सभी वर्ग का समर्थन मिल रहा है। विशेषकर युवा मतदाताओं का। इसलिए राजद अपने उम्मीदवार तनवीर हसन को बैठा दे और कन्हैया कुमार के समर्थन की घोषणा कर दे। इसके बावजूद राजद ने अपने भले ही हार जायें पर कन्हैया नहीं जीत सके, की रणनीति के तहत 26 अप्रैल को भाकपा से अपील की कि राजद प्रत्याशी तनवीर को जिताने के लिए कन्हैया को रिटायर कर दें। यह बात कही रिटायर होने की उम्र के करीब पहुंच गये राजद नेता शिवानंद तिवारी। गौरतलब है कि कन्हैया उनसे आधे से भी कम उम्र के हैं। इससे संकेत साफ है कि राजद किसी भी हालत में कन्हैया को जीतने नहीं देना चाहता है। मनोज का कहना है कि जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे और वहां से पीएचडी किये गरीब भूमिहार परिवार के कन्हैया कुमार के जीत जाने से बिहार की राजनीति के करामाती लालू प्रसाद के कम पढ़े मालदार छोटे बेटे तेजस्वी की तेजी खत्म हो जायेगी। कन्हैया लोकसभा से लेकर बिहार की जनता के बीच में चर्चित, दबंग व जूझारू नेता के तौर पर उभर जायेंगे। उनके इर्दगिर्द सभी वर्ग की युवा राजनीति केन्द्रित होने लगेगी। इससे अन्य दलों को तो नुकसान होगा ही लेकिन सबसे अधिक नुकसान घोटालों में घिरे लालू, उनके पुत्र तेजस्वी और कुनबे को होगा।

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