पलामू के दुर्गम क्षेत्र वाले इलाके अभी भी हैं विकास से कोसों दूर

मेदिनीनगर। पलामू ज़िले के आज भी कई ऐसे दुर्गम वाले इलाके हैं, जहां पर अभी भी विकास की किरणें नहीं पहुंच सकी है। ऐसा ही एक गांव है, जो पांडू प्रखंड के लुंबा- सतबहिनी पंचायत के एक कस्बा गेवरलेटवा की.जहां चहुंओर दुर्गम पहाड़ियों से घिरे तकरीबन 200 घर । मिट्टी व घास फूस से निर्मित खपरैल मकान जिसमें बसती है निर्धनता, अशिक्षा, कुपोषण व असाध्य बीमारियों के चंगुल में उलझे हुए लोग मिलते हैं। आज भी यहां पर रहने वाले ग्रामीण विकास की किरणें से कोसों दूर दिखाई देते हैं। ऐसी बात नहीं है कि यहां पर विकास योजनाओं की राशि खर्च नहीं कि गयी है, दरअसल सारा लाभ विचौलिये संग संबंधित अधिकारी उठा ले गए। यह गांव तीन टोलों में विभक्त है. गटियारवा, थबल व गेवरलेटवा. गटियारवा। सतबहिनी रेलवे स्टेान से महज एक किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ की तलहटी में बसा है यह गांव। यहाँ चौधरी, पासवान, धोबी, तेली व ज्यादातर उरांव जाति का परिवार निवास करता है. यहां की दाा दयनीय है।शुद्ध पेयजल पीने को नहीं मिलता है लोगों को। स्कूल को ही देखकर शिक्षा का अंदाज़ा लगाया जा सजता है। शिक्षक के दर्शन भी कभी कभार मुश्किल से होता हैं। इस टोले में बुनियादी सुविधाओं का लाभ बिचौलिए उठा रहे हैं, कारण है कि सरकारी पदाधिकारी एक इलाके का रुख नहीं करते। यहां से सटे पूरब दिशा की ओर गेवरलेटवा जाने के लिए संकीर्ण मार्गों से होते हुए सीधी चढ़ाई शुरू हो जाती है, जो लगभग 4 किलोमीटर की दुर्गम पहाड़ी व संकीर्ण मार्ग तय कर गेवरलेटवा पहुंचा जा सकता है। यहां गेवरलेटवा व थबल दो टोले हैं। विडंबना है कि यहां के सारे लोग बीपीएल व लालकार्डधारी हैं, बावज़ूद उनतक जनवितरण के तहत राशन उन तक नहीं पहुंच रही है। इनके नाम पर राशन कालाबाज़ारी कर लाखों रुपये कमाए जा रहे हैं। अपने को जीवित रखने की खातिर इनके पास जंगलों से काटी गयी लकड़ियां, पत्ते व दातून की बिक्री ही मुख्य साधन है।उनका नजदीक का हाट उटांरी रोड है, जहां लकड़ी, पत्ती व दातून बेच वे अपनी आवयकता की सामग्रियां खरीदते हैं। उटांरी रोड तक आने के लिए भी उन्हें लगभग 5 किलोमीटर की पथरीली व झाड़- झंखाड़ से लदे कंकराकीर्ण दूरी तय करनी पड़ती है। गांव के मध्य चिलबील के तले चबुतरा है यहीं ग्रामीणों के बैठने व मनोरंज करने का साधन है। यहां बैठकर वे अपने सुख-दुख व परस्पर सहयोग की बातें करते हैं।यहां के बच्चे गाय व बकरी चराकर अपनी दिनचर्चा पूरी करते हैं। इसके अतिरिक्त वे वनों से दातून व पत्तियां तोड़ कर लाते हैं। जिनकी बिक्री से इन नौनिहालों का गुजर -बसर हो पाता है। इसी तरह यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है।
इन टोलों पर यदि कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है तो सरकारी क्या झोला छाप चिकिसक भी मयस्सर नहीं हो पाते हैं। इन विकट परिस्थितियों में यहां के लोग जादू टोना व टोटका के सहारे तथा मांदर बजाकर देवी- देवताओं की स्तुति कर अपने कल्याण की कामना करते हैं।
.पांडु पंचायत के गेवरटोला गांव के सम्बंध में जिला पार्षद मनोज सिंह ने बताया कि इस गाँव मे आदिम जनजाति के लोग रहते हैं। यहां पर पीने का पानी, रोड के लिए जिला प्रशासन के एक वर्ष पूर्व पत्र देकर शीघ्र कार्यवाही के लिए आग्रह किया था। वाबजूद रोड नहीं बन सका है। मनोज सिंह ने बताया कि पीने का पानी जे लिए वाटर टावर के लिए 10 लाख रुपये मुखिया को भेजे गए थे। मुखिया व पंचायत सचिव ने चार माह पूर्व ही सारे पैसे की निकासी कर ली। अभी तक उस दिशा में कार्य शुरू नहीं किया गया है। ज़िला पार्षद मनोज सिंह ने मुखिया व बीडीओ की भूमिका संतोष जनक नहीं है। दुर्गम इलाके के लोगों की बदहाल स्थिति वाकई चिंताजनक बताया

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