लॉस एंजेल्स। इज़रायल में स्थायित्व,आर्थिक और सैन्य सुरक्षा के महानायक दक्षिण पंथी बेंजामिन नेतन्याहू की रिकार्ड पांचवी बार जीत को यहां रिपब्लिकन पार्टी के नेता राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के रूप में देखा जा रहा है। बेंजामिन की यह जीत अगले साल होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए एक चुनौती बन सकती है। अगर दक्षिण पंथी और कथित कट्टर एवेंजिकल डोनाल्ड ट्रम्प दूसरी बार चुनाव जीत जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। विदित हो कि यह ट्रम्प ही हैं, जिन्होंने अपने अरब मित्र सऊदी अरब को नाराज़ कर तेल अवीव की जगह यरूशलेम को राजधानी मानाने के बाद गोलन हाइट की ऊबड़ खाबड़ पहाड़ियों पर भी इज़रायल के आधिपत्य को स्वीकार किया और चुनाव से चंद रोज़ पूर्व मान्यता भी दे दी। इस जीत से विशेषकर न्यू यॉर्क, न्यू जर्सी और कैलिफ़ोर्निया एवं लॉस एंजेल्स के यहूदी समुदाय के बीच ख़ुशी का माहौल है। प्रायः यह कहा जाता है कि दुनिया की सम्पति अमेरिकियों के पास है और अमेरिकी यहूदी हैं। चीनी धन कुबेर तो यह बात बाख़ूबी कहते हैं कि यहूदी अमेरिका को नियंत्रित करते हैं। पियू रिसर्च सर्वे के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में 25.4 प्रतिशत एवेंजिकल ईसाई हैं, जबकि रोमन 22 प्रतिशत और प्रोटेस्टेंट 16 प्रतिशत हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मित्र 69 वर्षीय बेंजामिन नेतन्याहू ने लगातार चौथी बार और रिकार्ड पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद का दावा कर डेविड वी गूरियन के रिकार्ड की बराबरी कर ली है। नेतन्याहू पर कथित भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद उनकी लिकुड पार्टी ने सन 2015 की तुलना में पांच सीटें ज़्यादा अर्थात 35 सीटें जीती हैं और वह 120 सदस्यीय सदन में अन्य दक्षिण पंथी सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़े से अधिक 65 सदस्यों का समर्थन हासिल कर लिया है और प्रधानमंत्री पद के लिए सशक्त दावा भी पेश कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इजरायल में गठबंधन सरकार के गठन की परंपरा पुरानी है। हालांकि बेंजामिन नेतन्याहू के प्रतिद्वंद्वी जनरल बेनी गान्तज़ ने भी 35 सीटें जीतकर उन्हें पहली बार कड़ी चुनौती दी है, लेकिन सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा जुटाने का दावा नहीं किया है। यों, इज़रायल में मिली जुली सरकारों के गठन का प्रचलन है। बेंजामिन नेतन्याहू ग्रेटर इज़रायल के हिमायती दक्षिणपंथी यशस्वी धार्मिक नेता हैं, इसलिए मध्य पूर्व में यहूदी और अरब के बीच परस्पर संबंधों की कड़वाहट की आहट समझी जा सकती है। लेकिन बेंजामिन भूमध्यसागर से जॉर्डन तक वह एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ना चाहते हैं। बेंजामिन की किताब में भी फ़िलिस्तीन को कोई जगह नहीं दी गई है।
This post has already been read 6734 times!