हिमाचल में चंद्रखनी पास -कुदरत से रू-ब-रू

हिमाचल प्रदेश का चंद्रखनी दर्रा कुल्लू-पार्वती घाटी के सबसे लोकप्रिय ट्रैक में से एक माना जाता है। आम तौर पर सारे हिमालयी ट्रैकिंग रास्ते किसी न किसी दर्रे तक लेकर जाते हैं। दर्रा आम तौर पर दो घाटियों या दो चोटियों या दो पहाडियों से गुजरने वाले किसी रास्ते को कहते हैं। हिमालयी दर्रे ट्रैकर्स के पसंदीदा इसलिए भी होते हैं क्योंकि एक तो बिना किसी चोटी को छुए ऊंचाई का अहसास कराते हैं और दर्रे पर पहुंचकर आप दोनों तरफ के नजारे ले सकते हैं। दर्रो का ढलान विशेष आकर्षण पैदा करता है और ढलानों पर बर्फ जमी हो तो फिसलने या स्केटिंग करने का मन खुद-ब-खुद हो जाता है। ट्रैकिंग करते हुए रास्ता इस तरह से बनाया जाता है कि या तो आप दर्रे को छूकर वापस अपने शुरुआती स्थान पर लौट आएं या फिर दर्रे को पार करके किसी दूसरे स्थान पर पहुंच जाएं।

चंद्रखनी दर्रे को उसका नाम चंद्रमा जैसे आकार की वजह से मिला है। समुद्र तल से 3541 मीटर (एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर है) की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश में स्थित यह दर्रा सडक रास्ते के सबसे नजदीकी दर्रो में से है, इसलिए भी पसंदीदा है। कोई चाहे तो कुल्लू पहुंचकर केवल तीन दिन में चंद्रखनी दर्रा पार करके फिर कुल्लू पहुंच सकता है। यह आपपर और आप किसके सौजन्य से जा रहे हैं, उस पर निर्भर करता है कि उसने चंद्रखनी जाने के लिए क्या रास्ता चुना है। लेकिन जब जाएं तो यह बात ध्यान में रखें कि उन रास्तों पर बार-बार जाने का मौका नहीं मिलता। वहां पहुंचकर जो प्रकृति का नजारा देखने को मिलता है, उसके बारे में लौटकर जब आप अपने करीबियों को बताएंगे तो वे आपसे रश्क करेंगे।

यू देखें तो चंद्रखनी दर्रा कुल्लू के पास नगर (जहां रूसी चित्रकार रोरिख की विश्वप्रसिद्ध गैलरी है) के ठीक ऊपर स्थित पहाडी पर है। नगर से आप तीन किलोमीटर की चढाई करके रुमसू गांव (2135 मीटर) पहुंच सकते हैं। अगले दिन वहां से चंद्रखनी दर्रे के लिए चढाई की जा सकती है। किसी भी दर्रे को पार करते हुए यह ध्यान में रखें कि वहां दिन चढते रुके नहीं। दोपहर बाद आम तौर पर सभी हिमालयी दर्रो पर मौसम खराब होने लगता है। यह दर्रो की प्रकृति से जुडा है। इसलिए ट्रैकिंग का नियम यही है कि जिस दिन दर्रा पार करना हो तो तडके जल्दी कैंप से निकलें और दर्रे पर पहुंचें। वहां तसल्ली से वक्त बिताएं मजा लें और दोपहर चढने से पहले नीचे उतर लें। चंद्रखनी से नीचे उतरने के कई विकल्प हैं। चाहें तो वापस रुमसू के रास्ते नगर आ सकते हैं। या दर्रा पार करके मलाना गांव तक नीचे उतर सकते हैं। पार्वती घाटी में जाने का एक बडा आकर्षण मलाना गांव को देखने का भी होता है। अपनी अनूठी शासन परंपरा और संस्कृति के कारण मलाना दुनियाभर में प्रसिद्ध है। आठ हजार फुट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित इस गांव में पहुंचने का ट्रैकिंग का सिवाय कोई अन्य जरिया नहीं (इस गांव के बारे में विस्तार से फिर कभी)।

मलाना से नीचे आने के लिए भी दो रास्ते हैं। या तो आप सीधे-सीधे मलाना नाले के साथ-साथ नीचे मणिकर्ण-भुंतर मार्ग पर स्थित जरी तक उतर सकते हैं। मलाना के बाशिंदे इसी रास्ते का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन यह ढलान बहुत सीधा है और मुश्किल भी। इसलिए अगर दो दिन का समय हो तो मलाना से छोटा ग्राहण (3355 मी), खिकसा थाच (3660 मी) और मलाना ग्लेशियर (3840 मी) होते हुए नीचे आया जा सकता है। छोटा ग्राहण से सीधे नगरूनी होकर भी नीचे आया जा सकता है। तीसरे विकल्प में मलाना गांव से रसोल गांव और रसोल जोत (दस हजार फुट की ऊंचाई पर) पार करके नीचे कसोल तक उतरा जा सकता है। लेकिन वापस अगर नगर उतरना हो तो उसके लिए भी चंद्रखनी से फोडिल थाच, चकलानी थाच और चक्की नाला होते हुए नगर उतरा जा सकता है। लेकिन इस बात पर शर्त लगाई जा सकती है कि हर रास्ता कुदरत के खूबसूरत नजारों से भरपूर है। अली रत्नी टिब्बा, इंद्रासन व देव टिब्बा चोटियों का मनोहारी दृश्य देखने को मिलता है। पार्वती घाटी का समूचा इलाका ही अपने आपमें बेहद सुंदर है।

खास बातें

यकीनन ट्रैकिंग में रोमांच कम नहीं, लेकिन उसमें उतना कष्ट या जोखिम भी नहीं जो आम तौर पर पर्वतारोहण में होता है। पर्वतारोहण की तमाम तैयारियों व उपकरणों आदि से जुडे झंझटों से आप मुक्त रहते हैं।

लेकिन ट्रैकिंग का मतलब अपनी जरूरत के सामान को हमेशा अपने साथ रकसैक में लेकर चलना होता है। कैंपिंग व खाने-पीने का इतजाम भी अहम होता है। अपने दम पर ट्रैकिंग कर रहे हैं तो इन सारी चीजों के लिए पोर्टर व सहायक चाहिए होंगे। वैसे आजकल कई टूर ऑपरेटर इस तरह के ट्रैकिंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं। सस्ते विकल्प में यूथ होस्टल्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के हिमालयन ट्रैकिंग कार्यक्रमों में भी शिरकत की जा सकती है।

पहाडी रास्ते, खास तौर पर बर्फीले रास्ते नए लोगों के लिए भटकाऊ हो सकते हैं। इसलिए इन रास्तों पर हमेशा एक स्थानीय गाइड साथ रखें। यहां जाने का सबसे बढिया समय मई से जून और फिर मानसून खत्म होने के बाद सितंबर-अक्टूबर में है। लेकिन बर्फ का मजा लेना हो तो मई में जितना जल्दी जा सकें बेहतर। चंद्रखनी के अलावा सार पास, जालोरी पास, पीन पार्बती पास के ट्रैक भी इस घाटी में किए जा सकते हैं।

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