व्यंग्य : लाठी खाने वाले सौभाग्यशाली

-सुरेश सौरभ-

मैं इस देश का बहुत महान आदमी हूं। महान इसलिए अपने आप को कह रहा हूं, क्योंकि खुद को महान कहते-कहते मीडिया वाले भी मुझे अब महान बना चुके हैं। जीते जी और मरने के बाद भी मुझे महान ही बने रहने की हसरत है। मरने बाद इस पावन मातृ भूमि पर मेरी विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति लगाई जाए ऐसी दिल-फेफड़े-गुर्दे में तमन्ना पाले बैठा हूं। लेकिन आजकल पता नहीं क्यों लोग मेरी महानता से बेवजह जलने-भुनने लगे हैं। जरा-जरा सी बात के लिए बस मेरी ही टांग खिंचाई करते हैं।

खाने को तो मैं बिना डकारें, पूरा देश खा सकता हूं, पर मैं ऐसा न करके सबको खाने-कमाने का चांस दे रहा हूं और फिर मैं सभी छोटे-बड़े देवी देवताओं की, अपने पूरे खानदान की, कसम खाकर कहता हूं कि मैं हन्डरेड टेन परसेन्ड पूरी तरह दूध से नहाया-धोया हुआ बिलकुल पाक-साफ सत्तावन इंची सीने का जिंदादिल शेर का बच्चा हूं या पठान का बच्चा हूं। यानी जिसका भी हूं बिलकुल सीधा-सच्चा हूं और सबका चच्चा हूं।

संडे-मंडे या सब दिनों में अपनी सेहत बनाने के लिए जब आप अंडे खा सकते हैं तो राष्ट्रहित में थोड़े डंडे क्यों नहीं खा सकते। लाठी-डंडे गोली खाकर हमारे बाप-दादाओं ने हमें आजादी दी थी। इसलिए आज हम आजाद हिंद में अपनी सांसें बाहर-भीतर सुड़क रहे हैं। मैंने भी संघर्ष करते हुए कभी लाठियां खाईं हैं, कभी गालियां खाईं थीं, किसके लिए इस देश के लिए। मैं रहूं या इस जहान से चुक जाऊं पर देश नहीं चुकना चाहिए।

कुछ लोग कह रहे हैं कि अगर जेएनयू के छात्रों पर जब डंडे चलाये जा सकते थे तो बीएचयू में जो छात्र एक मुस्लिम टीचर का विरोध कर रहे थे, उनको क्यों नहीं तिड़ी किया गया। इसमें मेरा कोई रोल नहीं। यह सरासर नाइंसाफी है। हर ओर-छोर पर जाने क्यों लोग मेरी बुराई-भलाई कर रहे हैं। पता नहीं, बुराई-भलाई करने में लंपटों क्यों मजा आता है। मैं तो यही कहूंगा न कर पूत भतार बुराई एक दिन तोरे आगे आई। एक चाय वाला देश चला रहा है यह किसी को भा नहीं रहा है, मार अंदर-बाहर लोगों के जलन खाए जा रही हैं। मरे जा रहे हैं।

पता नहीं क्यों दूसरे को खाता-पीता देखकर लफंगों को फूटी आंखों नहीं सुहाता। अगर डंडे चलाये गए तो उसमें भी कोई राष्ट्रीय हित छिपा होगा। राष्ट्रीय हितों में लोगों को हमारा सहयोग करना चाहिए। देश की एकता अखंडता संप्रभुता कायम रखने के लिए और देश का विकास करने के लिए हम हर समय आपकी सेवा में तत्पर हैं। और छोटी-मोटी बातों को भूल कर राष्ट्र के लिए तन-मन से हमारा सहयोग करें, जो लोग फीस माफ करने की बात कर रहें हैं वे ये समझ लें, जब हम देश के लिए चौबीसों घंटे अपनी जान की बाजी लगाए बैठे हैं, तो आप सब जरा सी दमड़ी के लिए क्यों अपनी चमड़ी उधड़वा रहें हैं।

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