क्या हम मन्दी के दौर में फंस रहे हैं?

-ललित गर्ग- देश में आर्थिक सुस्ती एवं विकास की रफ्तार में लगातार आ रही गिरावट चिंता एवं चिन्तन का कारण है। शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक जुलाई-सितंबर, 2019 की तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि-दर की लगातार छठी बार गिरावट होना असामान्य आर्थिक घटना है। इस तिमाही में जीडीपी दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई है। गौरतलब है कि जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में कृषि, उद्योग और सर्विसेज तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने…

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बोलने से लगता है डर

प्रख्यात उद्योगपति राहुल बजाज ने डर की आशंका व्यक्त की है। उन्हें भरोसा नहीं है कि मौजूदा सरकार की आलोचना की जाएगी, तो उसे पसंद आएगी। वह इसे उद्योगपतियों में व्याप्त डर बताते हैं। बीते दिनों जब दूसरी तिमाही की जीडीपी विकास दर 4.5 फीसदी सार्वजनिक की गई, तो प्रतिक्रिया में किसी भी बड़े उद्योगपति ने बोलना उचित नहीं समझा। हालांकि कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक, महिंद्रा समूह के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा, आरपीजी एंटरप्राइजिज के अध्यक्ष हर्ष गोयनका, इंफोसिस के अध्यक्ष नंदन नीलेकणि, संजीव बजाज, गौतम सिंघानिया, विजय…

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वित्तीय घाटे का भ्रम जाल

-भरत झुनझुनवाला- वर्तमान मंदी के तमाम कारणों में एक कारण सरकार की वित्तीय घाटे को नियंत्रण करने की नीति है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि परिस्थिति को देखते हुए हम वित्तीय घाटे के लक्ष्य को आगामी बजट में निर्धारित करेंगे। उनके इस मंतव्य का स्वागत है। उन्होंने यह भी कहा है कि वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकार अपने खर्चों में कटौती नहीं करेगी, लेकिन पिछले छह वर्षों में सरकार के पूंजी खर्च सिकुड़ते गए हैं और यह आर्थिक मंदी को लाने का एक कारण दिखता…

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अयोध्या के बहाने हिन्दू मुस्मिल सौहार्द्र की राह पर कदम

-के.एम झा- अयोध्या मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायलय के फैसले का सम्मान करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने किसी भी पुनर्विचार याचिका को पूरी तरह नकार दिया है। इसके साथ ही सदियों पुराने अयोध्या मामले का सुखद अंत हो गया। गत 9 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले से सदियों पुराने अयोध्या मामले का एक ऐसा हल निकाल दिया था, जिसके बारे में लगभग सभी पक्षों की एक ही राय थी कि इतने पुराने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का इससे अच्छा फैसला…

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कब तक सताई जाती रहेंगी, अबला निर्भयाएं

-लिमटी खरे- लगभग सात साल पहले 2012 में जब दिल्ली में निर्भया काण्ड के चलते जनाक्रोश चरम पर था, तब माना जा रहा था कि केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा रियाया के मन को पढ़ लिया जाएगा और इस तरह के जघन्य कृत्यों पर विराम लग पाएगा। एक के बाद एक घटते घटनाक्रमों से लग नहीं रहा है कि जल्द ही इस तरह के घिनौने और माफ न किए जाने वाले कामों को रोकना हुक्मरानों के बस में है। हाल ही में हैदराबाद में एक महिला डाक्टर के साथ…

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व्यवस्था को चुनौती देते नक्सली

-सिध्दार्थ शंकर- झारखंड के गुमला में मतदान के दौरान नक्सली हमला यह बताने के लिए काफी है कि देश की आतंरिक सुरक्षा लगातार सिर उठा रही है। इससे पहले लातेहार में बीती शुक्रवार रात नक्सली हमला हुआ। इस हमले में पुलिस के चार जवान शहीद हो गए। यह हमला तब किया गया, जब चंदवा पुलिस स्टेशन क्षेत्र में पुलिसकर्मी आधिकारिक वाहन से जा रहे थे। इस हमले के लिए वे बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। मारे गए पुलिसकर्मियों में एक सब इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी है। इसी साल जून माह…

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‘निर्भया’ के सिलसिले कब तक?

हैदराबाद में भी ‘निर्भया कांड’ को लेकर देश आंदोलित है। इस बार भी ‘निर्भया’ सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई और उसे जला कर मार दिया गया। रांची में भी ‘निर्भया’ का केस सामने आया है। उसका भी त्रासद अंत इस देश ने देखा-सुना और पढ़ा है। बेटियां लगातार दरिंदों की हवस का शिकार हो रही हैं। उन्हें जला कर राख किया जा रहा है, ताकि साक्ष्य ही मिट जाएं। देवियों के इस देश में बेटियों के अस्तित्व पर ही कुछ भुतहे, काले, पैने साये मंडराए हैं। औसतन हर मिनट में…

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महिलाओं का कोई चौकीदार नहीं

-कंचन शर्मा- आज भारत उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां तीन तलाक से मुक्ति मिल चुकी है, कश्मीर में धारा 370 से मुक्ति मिल चुकी है, अयोध्या जैसी समस्या का समाधान किया जा चुका है, समान आचार संहिता लागू करने की बात की जा रही है, हम टेक्नोलॉजी की ऊंचाइयों तक पहुंच चुके हैं पर रेपिस्ट के लिए कठोर कानून, फास्ट ट्रैक अभी तक मुकर्रर नहीं, किसी केस में फांसी की सजा मुकर्रर होती भी है तो भी विलंबित हो जाती है। ऐसे में हमारा चांद पर परचम लहराना…

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अहिंसक देश में मांसाहार की घृणित असभ्यता

-देवेन्द्रराज सुथार- भूमंडलीकरण के इस दौर में हमारी जीवनशैली में द्रुतगामी परिवर्तन हुए हैं। इसने हमारे आचार-विचार से लेकर बोलचाल व खानपान तक को प्रभावित किया है। दुनिया भर में स्वाद और सेहत के लिहाज से मांसाहार आज शक्ति और शान का प्रतीक माना जाने लगा है। आर्थिक विकास और औद्योगीकरण ने मांसाहार को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही कारण है कि शहर हो या गांव आजकल सर्वत्र खुलेआम मांस की मंडी सज रही है। दुनिया की एक बड़ी आबादी केवल और केवल बेजुबान पशुओं व पक्षियों…

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सड़क निर्माण : जनहितकारी या जनकष्टकारी?

-निर्मल रानी- यदि हम मैट्रो रेल अथवा विदेशी कंपनियों द्वारा किये जाने वाली बड़ी निर्माण परियोजनाओं को छोड़ दें तो इसके अतिरिक्त पूरे देश में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किया जाने वाला शायद ही कोई ऐसा निर्माण कार्य अथवा निर्माण परियोजना ऐसी हो जिसपर भ्रष्टाचार की छाया न पड़ी हो। ऐसी अनेक ख़बरें अक्सर आती रही हैं कि भ्रष्टाचारियों के नेटवर्क ने किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या कर दी जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा था। इनमें अनेक ईमानदार अधिकारी से लेकर, आर टी आई कार्यकर्त्ता,…

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