गुमला। बिशुनपुर विधानसभा की सीट पर दस वर्षो से काबिज निवर्तमान विधायक और गठबंधन उम्मीदवार चमरा लिंडा क्या इसबार जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे। कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन का कितना फायदा उन्हें मिलेगा, इस बात को लेकर चर्चा व विश्लेषण का दौर जारी है। मगर जिस प्रकार अपने ही लोगों ने चमरा लिंडा की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं और कांग्रेस बिन पतवार नाव की स्थिति में है, उससे लग रहा है कि लिंडा के लिए यह चुनाव जीत पाना आसान नहीं होगा। इसबार उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार व तेजतर्रार स्थानीय नेता अशोक उरांव से है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी झामुमो और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। इस चुनाव में गठबंधन उम्मीदवार सह पूर्व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के सुदर्शन भगत ने जोरदार पटकनी दी थी। लोकसभा चुनाव में सुदर्शन भगत को 73255 वोट व सुखदेव भगत को 59946 वोट मिले थे। इस तरह भाजपा के सुदर्शन भगत ने गठबंधन उम्मीदवार सुखदेव भगत को 13309 वोट के अंतर से मात दी थी। अब 2014 के बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र के चुनावी परिणाम के आंकड़ों पर गौर करें। इस चुनाव में झामुमो के चमरा लिंडा ने भाजपा उम्मीदवार समीर उरांव को 10843 मतों के अंतर से पराजित किया था। दोनों को क्रमश: 55851 व 45008 वोट मिले थे। इसबार लिंडा गठबंधन के उम्मीदवार हैं। इसबार बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र से कुल 12 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मगर गौर करने लायक बात यह है कि चमरा लिंडा के करीबी महात्मा उरांव झाविमो उम्मीदवार के रूप में अपने सिर पर कंघी फेर रहे हैं। वहीं चमरा लिंडा के एक अन्य करीबी व नवडीहा पंचायत के मुखिया भिनेश्वर भगत भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक रहे हैं। दोनों उम्मीदवारों ने बड़ी संख्या में चमरा लिंडा के पुराने कार्यकर्ताओं को अपनी ओर खींच लिया है। इसके अलावा चमरा लिंडा के विरोध में खास बात वोटरों की नाराजगी है। दस वर्षों से बिशुनपुर के विधायक रहने के बावजूद चमरा लिंडा अपने क्षेत्र से लगातार गैरहाजिर रहे। विकास कार्यों के प्रति उदासीनता और विकास योजनाओं से संबंधित जिला स्तर पर आयोजित बैठकों में शामिल नहीं होना और वोटरों की नाराजगी चमरा लिंडा के लिए महंगी साबित हो सकती है। इधर भाजपा ने तेजतर्रार नेता अशोक उरांव को अपना उम्मीदवार बनाया है। 2014 के विधानसभा चुनाव में अशोक उरांव ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। उन्होंने 11994 वोट प्राप्त कर सभी दलों को अपनी ताकत का बखूबी एहसास भी करा दिया था। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस उम्मीदवार बॉबी भगत चौथे स्थान पर पहुंच गई थी। अशोक उरांव बाद में भाजपा में शामिल हो गये। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत में उनकी अहम भूमिका रही थी। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाएं भी अशोक उरांव के मार्ग को सुगम व प्रशस्त करने का काम कर रही है। जिस तरह घर-घर में बिजली, रसोई गैस, शौचालय की पहुंच हुई है, उससे मतदाताओं में मोदी-रघुवर सरकार के प्रति भरोसा बढ़ा है। साथ ही सड़क, पुल-पुलियों का जाल बिछने से परिवहन और आवागमन काफी आसान हुआ है। जिसका भरपूर फायदा भाजपा उम्मीदवार अशोक उरांव को मिलेगा। गौरतलब है कि पिछले कई चुनावों में नक्सली हिंसा का गवाह रहे बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में कभी नक्सलियों की समानांतर सरकार चला करती थी। मगर अब यहां अमन व शांति है। विधानसभा चुनाव को लेकर आम मतदाताओं में खासा उत्साह है। वे कभी नहीं चाहेंगे कि उनके क्षेत्र में जंगलराज दोबारा लौटे। बहरहाल 30 नवंबर को मतदान के बाद ही पता चल पाएगा कि भाजपा के अशोक उरांव अपने प्रतिद्वंदी चमरा लिंडा के विजय रथ को रोक पाते हैं या नहीं।
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