केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी ओबीसी के 55 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली

नई दिल्ली। शिक्षक संघ ने एक रिपोर्ट के हवाले से दावा किया है कि देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के 55 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। इसमें सबसे अधिक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के तीन कॉलेजों में 1261 जबकि उत्तर प्रदेश के चार कॉलेजों में 1246 शिक्षकों के पद खाली हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन पदों को काफी लंबे से विश्वविद्यालयों द्वारा भरा नहीं गया है। शिक्षकों के अनुसार विभाग-वार रोस्टर लागू होने से आधे से अधिक पद समाप्त हो जाएंगे।
ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजिज एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसियेशन के नेशनल चेयरमैन प्रो. हंसराज सुमन व महासचिव प्रो. के पी सिंह यादव ने रविवार को यहां एक रिपोर्ट जारी की। इसमें खुलासा किया गया कि 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 55 प्रतिशत शिक्षकों के पद आरक्षित श्रेणी से हैं जिन्हें लंबे समय से विश्वविद्यालयों द्वारा भरा ही नहीं गया है।
रिपोर्ट के अनुसार 40 विश्वविद्यालयों में कुल 5606 सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के पद खाली हैं। इनमें अनुसूचित जाति 873, अनुसूचित जनजाति 493, ओबीसी–786 तथा पीडब्ल्यूडी के 264 पद खाली हैं जबकि शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद 17,092 हैं।
रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि एससी कोटे के लिए स्वीकृत प्रोफेसर के 224 पदों में सिर्फ 39 और एसटी कोटे के लिए स्वीकृत 104 में से 15 पदों पर नियुक्तियां हुई हैं। शिक्षक नेताओं का आरोप है कि यूजीसी आरक्षित पदों को भरने के लिए बार-बार विश्वविद्यालयों व कॉलेजों को सर्कुलर भेजती है लेकिन लंबे समय से इन पदों को नहीं भरा गया है।
40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्वीकृत पद
प्रोफेसर 2,426 , एसोसिएट प्रोफेसर 4,805, सहायक प्रोफेसर 9,861 सहित कुल 17,092 स्वीकृत पद हैं। इनमें से प्रोफेसर के 1,301, एसोसिएट प्रोफेसर के 2,185 और सहायक प्रोफेसर के 2,120 पद खाली हैं। अर्थात कुल 5,606 पद खाली हैं यानी लगभग 55 प्रतिशत पदों को एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के शिक्षकों की नियुक्ति की जानी है। इनमें अनुसूचित जाति के प्रोफेसर के 185, एसोसिएट प्रोफेसर के 357, सहायक प्रोफेसर के 331 पद खाली पड़े हैं। इसी तरह से अनुसूचित जनजाति के प्रोफेसर के 96, एसोसिएट प्रोफेसर के 204 और सहायक प्रोफेसर के 193 पद खाली पड़े हैं। ओबीसी उम्मीदवारों के 783 पद खाली हैं वहीं पीडब्ल्यूडी के 264 पदों को अभी तक भरा नहीं गया है।
दिल्ली में सबसे ज्यादा शिक्षकों के पद खाली
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में स्थित तीन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दिल्ली यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुल 1261 पद खाली हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के चार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 1246 पद खाली हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 343 , इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 570, बीएचयू में 396, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ में 37 पद लंबे समय से खाली हैं।
इसके अलावा उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय में 202 ,जम्मू व कश्मीर के दो विश्वविद्यालयों में 139 ,हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में 171, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय 114 पद खाली हैं। इसी तरह पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय में 53, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में 216, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में 128, पोडिचेरी विश्वविद्यालय में 143 , आसाम यूनिवर्सिटी में 68 ,मणिपुर यूनिवर्सिटी में 115, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में 65, विश्व भारती विश्वविद्यालय में 160 पद भरे जाने हैं। इनमें अस्सिटेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के पद खाली हैं।
विभागवार रोस्टर आने से बढ़ी चिंता
प्रो. सुमन ने बताया है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में यूजीसी व एमएचआरडी द्वारा डाली गई एसएलपी खारिज होने पर, यदि विभाग-वार रोस्टर लागू होता है तो आधी से कम सीटें आरक्षित वर्गों की रह जाएंगी। यूजीसी आरक्षित पदों की भरने की जिम्मेदारी ले और यूनिवर्सिटी व कॉलेजों को एक सर्कुलर जारी करे कि जिन पदों का विज्ञापन पिछले रोस्टर 200 पॉइंट पोस्ट बेस से हो चुका है उन पर जल्द से जल्द नियुक्ति करे।

This post has already been read 8351 times!

Sharing this

Related posts