Ranchi : डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान, मोरहाबादी में प्रगतिशील लेखक संघ के बैनर तले हुए रांची आकाशवाणी के अधिकारी रहे कवि प्रकाश देवकुलिश के पहले काव्य-संग्रह ‘असंभव के विरुद्ध का लोकार्पण सम्पन्न हुआ! जिसकी अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक डॉ. रविभूषण ने कहा कि इस सृजन विरोधी समय में इस आयोजन में तमाम सृजनशील लोगों की उपस्थिति यह आश्वस्त करती है कि अभी भी बहुत कुछ संभव है। पुस्तक के शीर्षक को लोगों की शिरकत पुख्ता करती है। जो भी सचमुच का मनुष्य है उसके भीतर कविता अवश्य होगी। सामाजिक सांस्कृतिक बोध के कवियों में प्रकाश देवकुलिश अब शामिल हो चुके हैं। चिंतित कविमन की चिंतनशील कवितायें हैं। कविताओं में विषय विस्तार भी है और मितकथन का सौंदर्य भी। कविताओं में प्रतिपक्ष का स्वर है परंतु बहुत लाउड नहीं है। कविताओं में बेचैनियाँ है, कभी एक शब्द के लिए, कभी समय की चिंताओं के लिए। धैर्यवान कवि हैं प्रकाश देवकुलिश और इस अधैर्य समय में यह गुण विरल है।
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पटना से आये कवि-लेखक
हृषीकेश सुलभ ने कहा कि कविता का मौलिक गुण है उपपाठ। जो कहा जाता है उससे भी ज्यादा अनकहा रह जाता है। यह अनकहा विविधवर्णी होता है। सब पाठक अपने अर्थ का अन्वेषण करता हैं। जो कवि उपपाठ के लिए जितनी जगह छोड़ता है वह कवि उतना ही महत्वपूर्ण होता है। प्रकाश देवकुलिश सांकेतिकता अर्जित करते हैं अपनी कविताओं में। ऐसे अविश्वास के समय में कवि की कविताएँ विश्वास जगाती हैं। कोई कवि या कविता राजनीति से निरपेक्ष नहीं हो सकती। कवितायें गहरे राजनीतिक बोध से जुड़ी हैं। यह जीवन के अंदर से आया है किसी राजनैतिक दल के मैनिफेस्टो से नहीं। कवि अन्तरद्वन्द्व से जूझता है। संवेद पत्रिका के सम्पादक किशन कालजयी (भागलपुर) बोले कि संग्रह की कविताएं समय को सहजता से कह पाने में समर्थ हैं।

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कवि-लेखक व टीआरआई के निदेशक रणेन्द्र का कहना था कि कविता किसी भी भाषा का सबसे कलात्मक रूप है। प्राचीन साहित्य में कहा गया कि जिस भी वाक्य में रस है काव्य है, लेकिन इसमें स्वप्न, स्मृति, यथार्थ और संवेदना के गुण होना चाहिए। इस मामले में लोकार्पित संग्रह सफल है। कवि प्रकाश देवकुलिश ने अपने वक्तव्य में कहा कि बचपन में पर्व-त्योहारों के समय नाट्य मंचन, बाद में आकाशवाणी की नौकरी ने ही रचना प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। शुरुआत कहानी से हुई लेकिन निकट कविता के होता गया। वरिष्ठ साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी और महादेव टोप्पो ने भी अपने-अपने विचार रखे।
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संचालन लेखक पंकज मित्र ने किया ,जबकि आभार ज्ञापन डॉ किरण ने किया। मौके पर माया प्रसाद, रश्मि शर्मा, रेणु उपाध्याय, शाम्भवी प्रकाश, वीना श्रीवास्तव, राजेन्द्र तिवारी, शहरोज़ क़मर, सत्यकीर्ति शर्मा, डॉली कुजारा टाक, रेणु मिश्रा, शैलेन्द्र कुमार, अमित अखौरी, रेखा पाठक, नीरज नीर, नूपुर अशोक, अनिल किशोर सहाय और विवेक आर्यन समेत कई लोग मौजूद थे।
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