नई दिल्ली स्थित दरगाह में पूरी अकीदत के साथ मनाया जा रहा है 718वां सालाना उर्स
नई दिल्ली। हिंदुस्तान की सरजमीं पर सूफी-संतों का एक सिलसिला फैला हुआ, जिनके दर से हमेशा आपसी भाईचारे और इंसानियत का पैगाम दिया गया। इन सूफी संतों में महबूब-ए-इलाही के नाम से मशहूर हजरत निजामुद्दीन औलिया की एक अलग ही शान है। नई दिल्ली की बस्ती निजामुद्दीन स्थित उनकी दरगाह में इन दिनों उनका 718वां सालाना उर्स पूरी अकीदत के साथ मनाया जा रहा है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने उनके चाहने वालों को मुबारकबाद दी है और अपनी नेक तमन्नाओं का इजहार किया है।
दरगाह के सज्जादानशीन पीर ख्वाजा अहमद निजामी को भेजे गए अपने पैगाम में प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘हजरत निजामुद्दीन औलिया के 718वें उर्स के बारे में जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। इस अवसर पर मैं उनके चाहने वालों को मुबारकबाद पेश करता हूं और उनके प्रति अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं’।
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उन्होंने आगे कहा कि हमारे देश सूफी परम्परा की विशाल विरासत रही है। इन सूफी-संतों और कवियों ने अपने आदर्शों और शिक्षा से हमारे समाजी तानेबाने को मजबूत किया है। हजरत निजामुद्दीन औलिया ने अमन, शांति, प्यार और इंसनियत के पैगाम को आम किया।
सालाना उर्स हमारी ‘अनेकता में एकता’ का जश्न है। सार्वभौमिक सद्भाव, प्यार और सभी के लिए करुणा हजरत निजामुद्दीन औलिया के आदर्श रहे हैं। महबूब-ए-इलाही का जीवन और उनकी शिक्षाएं एक समावेशी समाज के निर्माण के लिए प्रयत्नशील रहने के लिए हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी। उनका 718वां सालाना उर्स हमारे देश और समाज के अंदर एकता और भाईचारे की भावना को और मजबूत करेगा।
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