औपनिवेशिक मानसिकता को दूर करने में संविधान देगा शक्ति: प्रधानमंत्री मोदी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता के चलते विकसित देश विकासशील देशों की तरक्की में रुकावट पैदा कर रहे हैं। ऐसी ही मानसिकता देश में भी कुछ लोगों की है। पर्यावरण के नाम पर विकास के मार्ग में रुकावटें पैदा करने से देश में करोड़ों आशायें टूट रही हैं। हमें इन्हें दूर करना होगा और संविधान इस दिशा में हमें शक्ति प्रदान करेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन के प्लेनरी हॉल में उच्चतम न्यायालय की ओर से आयोजित दो दिवसीय संविधान दिवस समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीश, सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश, भारत के सॉलिसिटर जनरल और कानूनी क्षेत्र के अन्य सदस्य उपस्थित रहे।

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प्रधानमंत्री ने न्यायाधीशों के दो दिवसीय समारोह में समावेशी विकास से जुड़ी अपनी सरकार की नीतियों और प्रयासों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज भी बहुत से लोग ‘एक्सक्लूजन’ में जी रहे हैं और उनके लिये जीवन को खपा देना ही संविधान का असली सम्मान है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ को संविधान की भावना का प्रगटिकरण बताते हुये प्रधानमंत्री ने बिजली, जल और गैस कनेक्शन पहुंचाने से जुड़ी सरकार की योजनाओं का जिक्र किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अक्सर एक छोटे वर्ग के लिये कुछ कार्य करने को उदारवादी बताकर उसकी प्रशंसा की जाती है, लेकिन सबके लिये किये जाने वाले इन प्रयासों को उतना महत्व नहीं दिया जाता।

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि उनकी सरकार की नेक नियत का ही सुखद परिणाम हाल ही में आये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में दिखाई देता है। लिंगानुपात में बराबरी, गर्भवती महिलाओं को प्रसूता की सुविधाएं मिलना केवल आंकड़ा भर नहीं है, बल्कि लोगों को मिल रहे सरकारी योजनाओं के लाभ का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

उन्होंने कहा कि संविधान को समर्पित सरकार लोगों में भेद नहीं करती है। आज देश में दिव्यांगजन, ट्रांसजेंडर और देश के दूर दराज के क्षेत्रों के विकास के प्रयास कर रही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका की भूमिकायें, जिम्मेदारियां और कार्य करने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी आस्था और ऊर्जा का स्रोत संविधान ही है। अक्सर शक्ति के विभाजन की बात की जाती है। ऐसे में वह यह कहना चाहते हैं कि देश के लोगों को जितना मिला है, वह उससे अधिक के हकदार हैं। ऐसा तभी संभव हो सकता है, जब सामूहिक जिम्मेदारी उठाकर और मिलकर प्रयास किये जायें।

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प्रधानमंत्री ने सरकार और न्यायपालिका को संविधान की जुड़वा संताने बताया और कहा कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है, सबका प्रयास के आवाहन में न्यायपालिका की भी बड़ी भूमिका है। बहुत कुछ किया जाना बाकी है और हमें मिलकर लक्ष्य तक पहुंचना होगा।

प्रधानमंत्री ने सरदार सरोवर बांध परियोजना का जिक्र करते हुये कहा कि पर्यावरण के नाम पर इस तरह की कई योजनायें दुष्प्रचार की शिकार हुई हैं। हालांकि आज जब हम इस परियोजना के परिणाम को देखते हैं तो पाते हैं कि कच्छ जैसे रेगिस्तान क्षेत्र में हरियाली और विकास हो रहा है। इस उदाहरण को औपनिवेशवादी मानसिकता से जोड़ते हुये उन्होंने कहा कि विकसित देश जिन मार्ग और साधनों का प्रयोग कर विकसित हुए हैं, आज वे उन्हीं के उपयोग को लेकर विकासशील देशों को टोकते हैं। इन सब में पर्यावरण को वे एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विकसित देशों ने विकासशील देशों से कई गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन किया है। फिर भी भारत अपनी पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता को जारी रखे हुए हैं। देश का वन क्षेत्र बढ़ रहा है और जैव विविधता का संरक्षण भी हो रहा है।

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