असिंचित और पठारी कहकर पलामू को हमेशा के लिए अकालग्रस्त बनाया जा रहा है
मेदिनीनगर। कृषि विभाग के आंकड़ों पर यदि गौर करें तब अच्छी खेती के लिए जून माह में 165 मिलीमीटर वर्षापात आवश्यक है, लेकिन जून में वर्षापात की अत्यंत खराब स्थिति को देखते हुए पलामू इस वर्ष भी अकाल की ओर बढ़ रहा है। 10 जुलाई तक लगभग 120 मिलीमीटर वर्षा नहीं हुई तो कुछ भी संभव है।
कम वर्षापात का रिकॉर्ड पलामू के लिए नई बात नहीं है। कम बारिश होने से यहां अक्सर सुखाड़ और अकाल की आशंका बन जाती है। इस मद्देनजर सरकार ने भी कई योजनाएं चलाई।1967 के सूखे के लगभग 11 वर्षों बाद ड्रोट पोन एरिया प्रोग्राम यानी डीपीएपी कार्यक्रम पर करोड़ों रुपए खर्च किये गए। लेकिन स्थिति नहीं बदली।
20 बार पड़ चुका है भयंकर सूखा और अकाल
सौ वर्षों में पलामुवासी कम-से-कम 20 बार भयंकर सुखाड़ और अकाल का सामना कर चुके हैं। जिले में करीब 44 हजार हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है। यहां के अधिकांश खेतों में पानी नहीं है। असिंचित और पठारी कहकर पलामू को हमेशा के लिए अकालग्रस्त बनाया जा रहा है। सरकार ने इस क्षेत्र के विकास में और सिंचाई योजनाओं में करोड़ों रुपए खर्च किए हैं लेकिन जमीन पर कोई काम दिखाई नहीं दे रहा है। अफसरों, बिचौलियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से अधिकांश योजनाएं कागजी बनकर रह गई हैं। खेतों तक पानी पहुंचाने में मुख्य कारण इच्छाशक्ति का अभाव है। इस बाबत जिले के संबंधित अधिकारियों से जानकारी मांगे जाने पर नहीं दे पाते। सिर्फ कागज दिखलाकर योजनाओं पर खर्च की गई राशि का ब्यौरा दे दिया जाता है। सुखाड़ व आकाल के नाम पर कई ऐसी योजनाएं जिनपर लाखों खर्च किये गए हैं, उसका रिकॉर्ड तक गायब हो चुका है।
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