सरायकेला: “जब हौसला बना लिया उंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का”। इसी सोच के साथ ग्रामीण क्षेत्र में रहकर पर्यावरण इंजीनियरिंग में शोध करके डॉक्टर बनने का सपना पूरा करनेवाली काण्ड्रा की पहली आईआईटीयन महिला डॉक्टर ईशा बर्मन बनी। पानी में मौजूद अशुद्धि (लिचेट) को दूर करने के लिए डॉ ईशा ने स्लज वैक्टीरिया तकनीक का सफल प्रयोग किया है। इन्होंने जिस स्लज पर प्रयोग किया, वह जुस्को, जमशेदपुर के बारा सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट से लिया गया था। आईआईटी, आईएसएम, धनबाद में पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ आलोक सिन्हा के मार्गदर्शन में किए गए कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की सदस्य डॉ ईशा बर्मन ने बताया कि ‘इस शोध द्वारा विकसित तकनीक के माध्यम से जल प्रदूषण को न सिर्फ रोका जा सकता है, अपितु प्रदूषित जल को साफ करके पुनः प्रयोग भी किया जा सकता है। डॉ ईशा के शोध का विवरण सात अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र और दो पुस्तकों ने भी प्रकाशित किया है। काण्ड्रा हरिश्चन्द्र विद्या मंदिर और जमशेदपुर विमेंस कॉलेज की पूर्व छात्रा डॉ ईशा बर्मन वर्तमान में अमेरिकन एकेडमी ऑफ इंजीनियर्स एण्ड साइंटिस्ट, अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर्स , इंटरनेशनल सोसायटी फॉर डेवलॉपमेंट एण्ड सस्टेनेबिलिटी (जापान) और सोसायटी ऑफ इंजीनियर्स ऑस्ट्रेलिया की सदस्य भी है।
This post has already been read 9358 times!