Giridih : झारखंड बिहार की सबसे ऊंची चोटी पारसनाथ के बारे में तो आप सभी जानते होंगे. यहां देशभर से पर्यटक घूमने आते है. मगर इसी खूबसूरत चोटी की गोद में बसे मधुबन पंचायत के आदिवासी बाहुल्य इलाक़े की स्थिति के बारे में हमारी राज्य-व्यस्था तक को भी नही पता है. हमारी आधुनिक दुनिया जहां चांद और मंगल तक पहुंच चुकी है वहीं इस गांव की बदहाली का आलम यह है की यहां अभी तक सड़कें भी सही से नसीब नहीं हुई है.
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गाँव के लोगों को पगडंडियों के सहारे ही आना जाना पड़ता हैं. बरसात के दिनों में तो हालत और भी खराब हो जाती है क्योंकि उस वक्त गांव सड़कों के अभाव में एक टापू बनकर रह जाता है. ऐसे में बीमार मरीज़ो व प्रसव के लिए महिलाओं को डोली के सहारे अस्पताल ले जाना पड़ता हैं. शायद इसीलिए तो, यहां आदिवासी इलाका आज भी विकास की राह तक रहा है. यहां एक या दो नहीं बल्कि समायाओं का अंबार है.
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जहां एक ओर शहर के लोग पीने के लिए सिर्फ़ मिनरल वॉटर का इस्तेमाल करते है वहीं यहां के लोग नाले का पानी पीने पर विवश है.ऐसे में हमें अंदाज़ा लगा लेना चाहिए की जिस गांव में बुनियादी सुविधाओं में इतनी घोर कमी है वहां के लोग आधुनिकतावाद से कितनी दूर होंगे.शहर की सुख-सुविधाओं में रह रहें बहुत से लोगों को इन आदिवासियों की समस्याएं मज़ाक लगे मगर सच बात तो ये है की हमारे राज्य के सिस्टम ने ही जनता की परेशानियों का मजाक बना रखा है.
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गांव के विद्यालय में ना तो चापाकल है और नाही शौचालय की व्यवस्था.चुनाव आते जाते रहते है, नेता भी अपने नए-नए वादों और इरादों के साथ आते है मगर इस क्षेत्र में रह रहे लोगों की समस्याएं किसी के भी नज़र में नहीं आती. इस गाँव की हालत देखकर यही कहना पड़ेगा की “गांव में समस्याएं नहीं है बल्कि समास्याओं में यह गांव फंसा हैं”.
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