नई दिल्ली । जिन राज्यों में विपक्षी दलों से तालमेल होने में थोड़ी अड़चन आ रही है उनके बारे में कांग्रेस एक सप्ताह में अंतिम निर्णय कर लेगी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि पार्टी आलाकमान की कोशिश विपक्षी दलों के साथ सम्मानजनक समझौता करने की है। इसके लिए वह अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहे हैं। रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव की घोषणा होने तक इसकी गति धीमी रखी गई थी। कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं को आशंका थी कि तालमेल करते ही उनके परिजनों, समर्थक उद्योगपतियों, समर्थकों के यहां सीबीआई, आयकर, ईडी के छापे और पूछताछ शुरू हो जाएंगे। रविवार की शाम चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद से अब तालमेल को अंतिम रूप देने का उपक्रम तेज हो गया है। उसे एक सप्ताह में अंतिम रूप दे दिया जाएगा।कोशिश अधिक से अधिक विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की है। भाजपा विरोधी दल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के साथ आते हैं तो बहुत अच्छा, यदि नहीं आते तो रणनीतिक तालमेल करके भाजपानीत राजग के विरूद्ध मोर्चा बनाने को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसके तहत प्रत्याशी खड़ा करने में तालमेल व एक-दूसरे के लाभ का ध्यान रखा जाएगा। इस रणनीति के अनुरूप पश्चिम बंगाल , उ.प्र. ,आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर में प्रत्याशी एक सप्ताह में तय कर लिये जाएंगे। महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, झारखंड में कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा लगभग कर लिया है। एक-दो सीटों को लेकर देरी हो रही है। उसे जल्दी ही सुलझा लिया जाएगा। एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि सबसे बड़ा सवाल उ.प्र. को लेकर है। राज्य में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से तालमेल किया जाये या अकेला लड़ा जाए, इसके बारे में कांग्रेस आलाकमान पार्टी के सर्वोच्च नेताओं व रणनीतिकारों के साथ बैठक करके अंतिम निर्णय करेगी। चूंकि भाजपा को उ.प्र. में ही सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया जा सकता है। इसलिए इस पर सावधानी से कदम बढ़ाया जा रहा है। जहां तक जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ तालमेल का सवाल है तो फारूक अब्दुला ने इसका संकेत कर दिया है। इससे लगता है कि कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस तालमेल करके जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। आंध्रप्रदेश व तेलंगाना में चन्द्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी के साथ मिलकर लड़ा जाये या अघोषित सहयोग करते हुए प्रत्याशी खड़ा किया जाए , इसका निर्णय भी दो-चार दिन में हो जाएगा। पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि सहयोगी दलों के लिए पार्टी थोड़ा झुककर कुछ सीटें छोड़ने को तैयार है। लेकिन सीट छोड़ते समय यह ध्यान रखा जाएगा कि सहयोगी दल उस सीट पर जिस प्रत्याशी को खड़ा कर रही है, उस पर वह प्रत्याशी भाजपा को कड़ी टक्कर देने, सीट जीतने लायक है या नहीं ।
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