गुमला विस क्षेत्र: भाजपा के सामने सीट बचाने की चुनौती तो झामुमो बागियों से परेशान

गुमला। प्रथम चरण के होने वाले चुनाव में गुमला विधानसभा सीट पर भाजपा के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती है तो झामुमो बागियों से परेशान नजर आ रहा है। इस बार कांग्रेस व झामुमो के बीच हुए गठबंधन में गुमला सीट झामुमो के खाते में गई है। दल तो मिले हैं, मगर दिल अलग-अलग धड़क रहा है। झामुमो ने फिर से अपने पूर्व विधायक भूषण तिर्की को उम्मीदवार बनाया है। भूषण तिर्की लगातार दो विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। यह देखना है काफी दिलचस्प होगा कि तिर्की हार की हैट्रिक बनाते हैं या समीकरण के सहारे चुनावी वैतरणी पार लगाते हैं। गुमला सीट पर लगातार दो बार से भाजपा का कब्जा बना हुआ है। पार्टी ने भी इसबार अपने नये युवा नेता मिशिर कुजूर को चुनावी मैदान में उतारा है। मिशिर कुजूर सामाजिक गतिविधियों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। चाहे सामाजिक मंच हो या खेल का मैदान या फिर राजनीति की उबड़-खाबड़ जमीन, हर जगह उनकी मौजूदगी रहती है। लिहाजा उनके साथ पहचान का कोई संकट नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुमला में हुई चुनावी सभा से भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर है। बूथ स्तर पर भाजपा की मजबूत स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है, वह पूरी शिद्दत के साथ अपनी सीट को बचाने में लगी हुई है। इधर झामुमो गठबंधन को लेकर आंकड़ों में मजबूत नजर आ रहा है। चुनावी गठबंधन के पुराने इतिहास पर नजर डालें तो पहली बार झामुमो और कांग्रेस के बीच 2005 में चुनावी गठबंधन हुआ था। जिसके तहत यह सीट झामुमो को मिली थी। झामुमो उम्मीदवार भूषण तिर्की ने भाजपा के तत्कालीन विधायक सुदर्शन भगत को पराजित किया था। उस वक्त झामुमो को 38.68 फीसदी व भाजपा को 35.75 फीसदी वोट मिले थे। चुनावी गठबंधन के बावजूद झामुमो के भूषण तिर्की ने बमुश्किल 869 वोटों से जीत हासिल की थी। इसके बाद 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस व झामुमो के बीच गठबंधन हुआ था और यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। इस लोकसभा चुनाव में गुमला विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार सुखदेव भगत ने भाजपा के सुदर्शन भगत को 6685 मतों से पराजित किया था। दोनों को क्रमश: 69313 (48.37 प्रतिशत) व 62628 ( 43.7 प्रतिशत वोट मिले थे। सुखदेव भगत इसबार कांग्रेस उम्मीदवार नहीं हैं और झामुमो के भूषण तिर्की चुनावी गठबंधन की ताकत पर ताल ठोक रहे हैं। मगर उनके सामने बागियों का चक्रव्यूह है, जिसे तोड़ पाना भूषण तिर्की के लिए आसान नहीं होगा। युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष राजनील तिग्गा झाविमो उम्मीदवार के रूप में मुख्य मुकाबले में आने के लिए पुरजोर प्रयास कर रहे हैं। उनका लक्ष्य कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक व मिशनरी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है। चूंकि चुनावी इतिहास में पहली बार है कि जिले के सभी तीन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं है। इसलिए कांग्रेस के कार्यकर्ता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। गठबंधन के बाद भी जरूरी नहीं है कि कांग्रेस का परम्परागत मतदाता झामुमो को समर्थन दे। वहीं झामुमो की पूर्व तेजतर्रार नेता व जिला परिषद सरोज हेमरोम भी चैनपुर, डुमरी व जारी प्रखंड में भूषण तिर्की का गणित बिगाड़ रही है। सरोज हेमरोम झापा की प्रत्याशी है और अपने क्षेत्र में उनका अच्छा खासा असर भी है। यदि उनका प्रदर्शन संतोषजनक रहा तो झामुमो की लुटिया डूब सकती है। इसी तरह पलासिदियुस कुजूर उर्फ पाला केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के जुझारू नेता रहे हैं। वे लगातार नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आंदोलनरत रहे हैं। लिहाजा पूरे इलाके में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। कुजूर निर्दलीय उम्मीदवार हैं मगर उन्हें कमतर आंकना झामुमो के लिए भारी पड़ सकती है।कुल मिलाकर गुमला के चुनावी कुरूक्षेत्र में लड़ाई अब निर्णायक दौर में पहुंच गई है। 30 नवंबर के मतदान के बाद पता चलेगा कि तीर कमान चलेगा या एकबार फिर से कमल खिलेगा।

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