होलिस्टिक चिकित्सा से साइटिका का उपचार

कभी-कभी औरतें शारीरिक रूप से भी किसी न किसी बड़ी समस्या का शिकार हो जाती हैं। यहां विशेषतौर पर उन्हें कमर दर्द की समस्या बेहद अधिक सताती है। कुछ हद तक तो वह सामान्य होता है, लेकिन जब यह कमर दर्द भयावह रूेप अपना लेता है तो साइटिका नामक बीमारी की उपज होती है। वैसे तो साइटिका नामक बीमारी कमर से जुड़ी हुई समस्या है, लेकिन प्रेग्नेंट महिलाएं इसका अक्सर शिकार हो जाती हैं। प्रेग्नेंसी के तीसरे तिमाही में इसकी उत्पत्ति होती है। दरअसल, प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भाशय का आकार बढऩे लगता है जो कि स्पाइन के निचले भाग में स्थित साइटिका नामक नस पर दबाव डालने लगता है। इससे कमर के निचले भाग में दर्द होने लगता है। प्रेग्नेंसी के तीसरे तिमाही में जब बच्चा पूर्ण रूप से विकसित होने लगता है और जन्म लेने की स्थिति में पहुंचने लगता है, तो दबाव सीधे तौर पर साइटिका नस पर होता है, जिससे कमर के निचले भाग में बेहद दर्द होने लगता है। यह दर्द पैरों तक पहुंच जाता है। प्रेग्नेंसी औरतों के जीवन में एक बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। औरतों की कोख में नन्हा-मुन्ना अंगड़ाइयां लेता है। जो औरत को पूर्णता का एहसास कराता है। प्रेग्नेंसी के उस नौ महीने के पूरे समय काल में औरतों में शारीरिक व मानसिक तौर पर कई प्रकार के बदलाव देखे जाते हैं। अपने शरीर का वजन बढऩे से लेकर मानसिक तौर पर खुद को इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार करने से लेकर बहुत सी जिम्मेदारियां औरतों के कंधों पर होती हैं।

बीमारी के लक्षण:- साइटिका के मरीजों में कमर में बेतहाशा दर्द और फिर साथ में सूजन होने की ज्यादातर संभावना होती है। इसका दर्द इतना तेज होता है कि जो अहसनीय हो जाता है। यह पीड़ा हिप वाइंट के पीछे से प्रारंभ होकर, धीरे-धीरे तीव्र होती हुई तंत्रिका तंत्र से होते हुए पैर के अंगूठे तक फैलती है। इसमें घुटने और टखने के पीछे भी काफी दर्द रहता है। कभी-कभी शरीर के इन भागों में शून्यता भी होती है। इससे पैरों में सिकुडऩ भी हो जाती है, जिससे मरीज बिस्तर से उठ भी नहीं पाता है। आम तौर पर इसमें बिजली के झटके जैसा दर्द होता है। इससे जलन पैदा होती है और कई बार पैरों के सो जाने जैसी अनुभूति भी होती है। कभी-कभी एक ही पैर के एक भाग में दर्द होता है और दूसरा भाग सुन्न हो जाने का एहसास देता है।

बीमारी का निदान:- एमआरआई, ईएमजी तथा एनसीपी जैसी कई जांच प्रक्रियाएं हैं, जिनके माध्यम से दर्द का कारण मालूम किया जा सकता है। कारण मालूम हो जाने पर इलाज में सुविधा हो जाती है। इसका इलाज भी अब सहज सुलभ हो गया है।

होलिस्टिक माध्यम से उपचार:- इसके अंतर्गत साइटिका के उपचार में शारीरिक संतुलन, पाचन प्रणाली को दुरुस्त करना, शरीर में मौजूद जहरीले पदार्थों को बाहर निकालना आदि को शामिल किया जाता है।

डीटोक्सि फिकेशन:- शरीर में वायु, भोजन व जल के माध्यम से जहरीले पदार्थ प्रवेश करने लगते हैं। ऐसे में उन्हें शरीर से निकालने का प्रयास किया जाता है। आहार में अन्य विकल्प जैसे ताजे फल व सब्जियों का रस, अनाज, आंवला, तुलसी, सहजन, सेब, रसभरी, अंगूर आदि को शामिल कर शरीर का डीटोक्सिफिकेशन किया जाता है। व्यायाम आदि के जरिए भी शरीर से जहरीले पदार्थ निकालने का प्रयास किया जाता है।

पाचन प्रणाली को दुरुस्त करना:- प्राकृतिक तौर पर स्वस्थ रहने के लिए पाचन प्रणाली का दुरुस्त होना आवश्यक होता है। जब आप की पाचन प्रणाली सही ढंग से कार्य नहीं करती है, तभी आप को कई प्रकार की बीमारियां हो सकती हैं। होलिस्टिक उपचार में सबसे पहले बेहतर आहार से पाचन प्रक्रिया को दुरुस्त किया जाता है।

अम्लीय पदार्थों का संतुलन बनाना:- जब हम पैदा होते हैं तो हमारे शरीर में कई भरपूर मात्रा में अल्कलाइन होता है। इसीलिए युवा आसानी से कुछ भी खाकर पचा लेते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हमारी उम्र बढऩे लगती है तो शरीर में एसिड की मात्रा अधिक होने लगती है। इस अल्कलाइन संतुलन से शरीर कई बीमारियों की भेंट चढ़ सकता है। ऐसे में अधिक से अधिक पानी व द्रव्यों का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है।

पौष्टिक पदार्थ:- उपचार के दौरान मरीज को कई पौष्टिक पदार्थों का सेवन करने के लिए प्रेरित कि या जाता है। उन्हें ऐसे पदार्थों का सेवन करने के लिए कहा जाता है, जिसमें एंटीआक्सीडेंट्स, विटामिन, मिनरल, फैटी एसिड आदि। साथ ही उन्हें इन सबसे भरपूर दवाइयां भी दी जाती हैं।

शारीरिक संतुलन:- दरअसल, जब शरीर की हड्डियां व मांसपेशियां सही अवस्था में न हों, तो शारीरिक असंतुलन होने लगता है। तो होलिस्टिक उपचार के दौरान व्यायाम कराया जाता है, ताकि मांस-पेशियां मजबूत हो सकें । फिर जोड़ों को व्यवस्थित कर रीढ़ की हड्डी के बीच में आई रिक्तता को ठीक किया जाता है। इस उपचार में रस्सियां, लकड़ी की ईंटें, स्ट्रैप, हुक, बोल्स्टर, तकिया, बेडशीट आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस उपचार से हड्डियों की कौशलता व स्थिरता बढ़ती है। मरीज को दर्द से आराम मिलता है।

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