पूजा के दौरान क्यों बांधते हैं मौली? जानें इसका धार्मिक महत्व

‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।

कैसी होती है मौली? : मौली कच्चे धागे (सूत) से बनाई जाती है जिसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं-लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी यह 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है। 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।

-कलावा आम तौर पर कलाई में धारण किया जाता है।

-पुरुषों और लड़कियो को दाहिने हाथ पर और शादीशुदा लडक़ी को बाएं हाथ पर कलावा बांधना चाहिए।

-कलावा तीनों धातुओं (कफ, वात, पित्त) को संतुलित करता है।

-इसको कुछ विशेष मन्त्रों के साथ बांधा जाता है।

-अत: यह धारण करने वाले की रक्षा भी करता है।

-अलग तरह की समस्याओं के निवारण के लिए अलग अलग तरह के कलावे बांधे जाते हैं।

-और हर तरह के कलावे के लिए अलग तरह का मंत्र होता है। कलावा बांधने और तोडऩे पर बेहत सतर्कता की जरुरत होती है। नहीं तो यह आपके लिए अशुभ साबित हो सकता है। कलावा को लेकर कई मान्याएं और कई वैज्ञानिक महत्व जुड़े हुए है। आज के समय में अधिकतर लोग कलावा बांध लेते है लेकिन इसे कब बदलना है या फिर कब तोडऩा है इस बारें में शायद ही हमें पता होता है। जिसका असर हमारी लाइफ में बहुत ही बुरा पड़ता है। इसलिए इसे मंगलवार और शनिवार के दिन ही बदलना चाहिए। यह दिन शुभ माना जाता है। पुराने कलावे को वृक्ष के नीच रख देना चाहिए या मिटटी में दबा देना चाहिए। जिसके कारण हम इसे किसी भी दिन तोड़ देते है।

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