सरकार पर चर्चा का सच

महाराष्ट्र में सरकार बनाने या प्रस्तावित गठबंधन के समीकरण एकदम घूम गए हैं। शरद पवार ऐसी सियासत के माहिर खिलाड़ी रहे हैं। वह एक पत्ता चलकर आक्रामक होते हैं और कोई पहल करते हैं, लेकिन फिर अचानक ही यू-टर्न कर लेते हैं। दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के बीच दूसरी उच्चस्तरीय बैठक हुई, लेकिन अपने आवास पर मीडिया को पवार ने खुलासा किया कि महाराष्ट्र में न तो किसी सरकार के गठन को लेकर और न ही साझा न्यूनतम कार्यक्रम के मसविदे पर सोनिया गांधी से कोई चर्चा हुई। जब चर्चा ही नहीं हुई, तो शिवसेना के साथ गठबंधन का सवाल कैसे पैदा होता है! इस बैठक से पहले संसद भवन में मीडिया ने पवार से कुछ सवाल पूछे थे। उनके जवाब भी चौंका देने वाले थे। पवार अब नए सिरे से दोहरा रहे हैं कि कांग्रेस-एनसीपी ने मिलकर और भाजपा-शिवसेना ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। पूछा गया कि शिवसेना के साथ सरकार कब बन रही है? तो पवार का जवाब था कि शिवसेना-भाजपा से पूछो! उन्हें अपना रास्ता तय करना है और हमें अपनी राजनीति करनी है। अलबत्ता वह महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात की जानकारी देने के लिए सोनिया गांधी से मिले थे। कुछ दिनों में एक और बैठक हो सकती है। शरद पवार के इन जवाबों के क्या मायने हैं? आने वाले दिनों में, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनेगी अथवा नहीं, इस संदर्भ में कुछ भी कहना गलत होगा। दरअसल पवार ऐसी ही पैंतरेबाजी की राजनीति करते रहे हैं। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। सरकार उसी के नेतृत्व में बननी थी। कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ नेता होने के कारण पवार को प्रधानमंत्री पद का सशक्त दावेदार माना गया था। उन्होंने सांसदों को भोजन पर न्योत कर लॉबिंग भी शुरू कर दी थी, लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि पीवी नरसिंह राव को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा कर दी गई और पवार हाथ मलते रहे। इसी तर्ज पर महाराष्ट्र में एनसीपी के ज्यादा विधायक जीतने के बावजूद मुख्यमंत्री पद पवार ने कांग्रेस को दे दिया। न जाने क्यों…? संभव है कि सोनिया गांधी से विमर्श के बाद पवार ने जो बयान दिया है, वह भी विशुद्ध राजनीति हो! यदि कांग्रेस-एनसीपी के विमर्श का केंद्र शिवसेना नहीं है, तो फिर सेना सांसद संजय राउत से कल ही पवार ने मुलाकात और बात क्यों की? पवार की राजनीति से अलग उनके करीबी सूत्रों का दावा है कि सरकार का प्रारूप लगभग तैयार किया जा चुका है। शिवसेना के उद्धव ठाकरे पांच साल तक मुख्यमंत्री रहेंगे और कांग्रेस-एनसीपी के दो उपमुख्यमंत्री होंगे। कुल 42 मंत्री पदों पर विचार बनने की बात कही गई है, जिनमें शिवसेना के 15, एनसीपी के 14 और कांग्रेस के 13 मंत्री हो सकते हैं। विधानसभा अध्यक्ष कांग्रेस को देने की बात कही गई है। यदि इतना कुछ तय हो गया है, तो फिर ‘बैठक, बैठक’ का खेल क्यों जारी है? आखिर कौन से पेंच फंसे हैं कि गठबंधन का ऐलान नहीं किया जा पा रहा है? एक तरफ एनसीपी राष्ट्रपति शासन को जल्द खत्म कराने के पक्ष में है, लेकिन दूसरी तरफ शिवसेना के साथ सरकार बनाने पर देश और जनता को आश्वस्त भी नहीं कर रही है। आखिर यह दोगलापन क्यों और यह कब तक चलेगा? इस बीच कोशिशें भाजपा की ओर से भी शुरू की गई हैं। केंद्रीय मंत्री अठावले मध्यस्थता कर रहे हैं और उन्होंने संजय राउत के सामने तीन साल मुख्यमंत्री भाजपा का और शेष दो साल शिवसेना का होगा, यह फॉर्मूला रखा है। इस पर सेना का रुख कुछ नरम बताया जा रहा है, लेकिन महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य का प्रशासनिक भविष्य फिलहाल अनिश्चित है। सभी नेता मंत्रणाओं में व्यस्त हैं और अपने राजनीतिक हितों पर विमर्श कर रहे हैं। क्या इसे ही लोकतंत्र कहते हैं?

This post has already been read 6525 times!

Sharing this

Related posts