जातिवाद के सामाजिक समीकरण पर कुठाराघात करती है ‘तर्पण’

-अनिल बेदाग-

मुंबई। तर्पण मूलरूप से तॄप्त शब्द से बना है जिसका अर्थ दूसरे को संतुष्ट करना है। तर्पण का शाब्दिक अर्थ  देवताओं, ऋषियों और पूर्वजों की आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए जल अर्पित करना है। इसी शब्द पर बनी फ़िल्म ‘तर्पण’ का ट्रेलर पिछले दिनों मुंबई में लॉन्च किया गया। यह फ़िल्म दुनिया के कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में अब तक 25 अवार्ड्स और दर्शकों का प्रतिसाद पाने के बाद सिनेमागृहों में रिलीज के लिए तैयार है। एमिनेंस स्टुडिओज़ प्रस्तुति और मिमेसिस मीडिया के बैनर तले निर्मित फ़िल्म तर्पण आज के समय में समाज के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करती है, साथ ही जातिवाद के सामाजिक समीकरण पर कुठाराघात करती है। फ़िल्म समाज में महिलाओं के कई भावनात्मक और सामाजिक पहलूओं को गहरायी से दिखाती है। इस अवसर पर निर्माता एवं निर्देशक नीलम आर सिंह के साथ ही अतिथि विशेष अमन वर्मा, अभिनेता रवि भूषण, शालीन भानोट, रवि गोसाईं और फ़िल्म के प्रेज़ेन्टर इंदरवेश योगी उपस्थित रहे। फ़िल्म में नन्द किशोर पंत, संजय सोनू, राहुल चौहान, अभिषेक मदरेचा, पूनम इंगले, नीलम, वंदना अस्थाना, अरुण शेखर , पद्मजा रॉय की अहम भूमिका है। यह फ़िल्म लेख़क शिवमूर्ति जी की नॉवेल पर आधारित है। फ़िल्म तर्पण की कहानी बेहद ही संवेदनशील विषय से जुड़ी है। गाँव की छोटी जाति की युवती राजपतिया को एक ऊँची जाति के ब्राह्मण लड़के चन्दर द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। यह घटना एक राजनैतिक मुद्दा बन जाती है। गवाहों के अभाव में चन्दर को कोर्ट से बेल मिल जाती है। राजपतिया के भाई को स्थानीय राजनेता समझाता है कि किस तरह से बदला लिया जा सकता है। इस अवसर पर निर्देशक नीलम आर सिंह ने कहा कि मैं हमेशा एक ऐसी फ़िल्म बनाना चाहती थी जो दिल को छुए। फ़िल्म तर्पण की कहानी मेरे दिल के बहुत क़रीब है। ये समाज में ऊँची जाति छोटी जाति के बीच सामाजिक बुराईयों की परत को बहुत ही क़रीब से बताती है।

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