रामगढ़। दिगंबर जैन मंदिर एवं श्री पार्श्वनाथ जीनालय में दसलक्षण पर्व के छठे दिन रविवार को उत्तम संयम धर्म की पूजा विधि-विधान से हुई।इस मौके पर पंडित सुदेश जैन ने उत्तम संयम धर्म के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्राणी रक्षण और इन्द्रीय दमन करना संयम है। स्पर्शन, रसना, घ्राण, नेत्र, कर्ण और मन पर नियंत्रण करना इन्द्रीय-संयम है। पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है। इन दोनों संयमों में इन्द्रीय संयम मुख्य है क्योंकि इन्द्रीय संयम प्राणी संयम का कारण है।
इन्द्रीय संयम होने पर ही प्राणी संयम होता है। बिना इन्द्रीय संयम के प्राणी संयम नहीं हो सकता। इन्द्रियाँ बाह्य पदार्थों का ज्ञान कराने में सहायक है। पँचेन्द्रिय जीव की यदि नेत्र-इन्द्रीय बिगड़ जाए तो देखने की शक्ति रखने वाला भी आत्मा किसी वस्तु को देख नहीं सकता। परंतु इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों की ओर आत्मा तो आकृष्ट करके पथभ्रष्ट कर देती हैं। आत्मविमुख करके आत्मा को अन्य सांसारिक भोगों में तन्मय कर देती हैं।
मोहित करके विवेक शून्य कर डालती हैं। जिससे कि साँसारिक आत्मा बाह्म-दृष्टि बन कर अपने फँसने के लिये स्वयं कर्मजाल बनाया करता है। इन्द्रियों का यह कार्य आत्मा के लिये दुखदायक है।श्री दशलक्षण पर्व के छठे दिन जलाभिषेक इन्दरमणी देवी चूड़ीवाल एव विनोद कुमार अरिहंत सेठी ने किया। वही शांतिधारा संतोष कुमार, सौरव अजमेरा एव ललित कुमार, राहुल कुमार गंगवाल ने किया। मीडिया प्रभारी राहुल जैन ने बताया कि आज उत्तम तप धर्म की पूजा की जाएगी।
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