कहानी : श्यामला

-अविनाश झा-

श्यामला ने आज फिर मां को काफी खरी खोटी सुनाई थी। मां ने सिर्फ इतना ही तो पूछा था!

“बेटी जुग जमाना सही नहीं है। यूं देर रात तक बाहर रहना ठीक नहीं। अब नौकरी भी करने लगी हो लेकिन विवाह का नाम सुनते ही भड़क जाती हो।”

” तुम सबको तो सिर्फ शादी- शादी की रट लगी है। मेरी इच्छा जब होगी कर लूंगी। तुम अपने काम से काम रखो!” श्यामला ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

” बेटी हमलोग भी समाज में रहते हैं, सब हमसे पूछते रहते हैं, रिश्तेदार रिश्ते लेकर आते हैं, क्या जबाव देती फिरूं। इतना मेहनत से पढाया लिखाया, क्या इसी दिन को देखने के लिए। मेरी जिंदगी कितनी बची है, मरने से पहले चाहती हूँ ,तुम्हारा घर बस जाये।”

” देखो मुझे सेंटी मत पिलाओ, मैं तुम्हारे झांसे में नहीं आनेवाली। ज्यादा तंग करोगी तो अलग घर ले लूंगी।”

उसने यह भी नहीं सोचा कि उसकी मां थर्ड स्टेज कैन्सर की पेशेंट है। उसने मद्रास में ज्वाइन किया था पर कानपुर में ट्रांसफर इसी आधार पर लिया था कि वहाँ जाकर मां की सेवा करुंगी। जितने भी दिन बचे है उसकी जिंदगी के,उसे खुशी खुशी बिताने में हेल्प करेगी पर किस्मत को कुछ और मंजूर था। यहां आते ही वो लगभग बदल गयी थी। बात इतनी सी थी कि श्यामला कंपनी में अपने किसी कलिग से प्यार करने लगी थी जो किसी दूसरी जाति का था। सुनकर उसके मां पापा को झटका लगा था। उसपर उन्हें नाज था और पूरा विश्वास था कि वो कोई ऐसा काम नहीं करेगी जिससे समाज में उनकी इज्ज़त खराब हो। पर विश्वास टूट गया। दादा तो इसी शोक में चल बसे थे। पर श्यामला पर कोई असर नहीं था। पता नहीं कौन सा जादू कर दिया था उसने। इधर आकर वो किसी आश्रम में जाने लगी थी तथा धर्म योग में ज्यादा रुचि ले रही थी।

मां बोलती” इन बाबाओं के चक्कर में ना पड़ो, ये भ्रष्ट होते हैं। न जाने क्या क्या उल्टा पुल्टा सिखाते रहते हैं। अपना घर तो कभी बसा नहीं इसलिए किसी और का बसने नहीं देना चाहते।!’

.” नहीं नहीं मां! ये अलग हैं, जीवन शैली सिखाते हैं! इससे संस्कार आता है और शरीर और मन शांत रहता है। “श्यामला ने अपने गुरुजी का स्ट्रांगली डिफेंड किया।

“.तो ये कौन सी जीवन शैली और संस्कार सिखाते हैं जिसमें मां बाप को कष्ट पहुंचाना सिखाया जाता है! बड़े बुजुर्गों को कष्ट पहुंचा कर आजतक किसी को सुख शांति मिल पायी है?”

वह चुप हो जाती पर उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं था। पापा मां की बिगड़ती हालत देखकर तैयार हो गये कि “ठीक है ,उसी शादी कर लो! समाज और अपनों के सामने जो झेलना होगा, हम झेल लेंगे।”

पर अचानक उसने एक दिन घर छोड़ दिया और गायब हो गई। ना किसी से संपर्क और न कहीं अता पता। सुनते हैं उस दिन पापा से हल्की झड़प हो गयी थी। उसने उस लड़के परिवार के बारे में पापा से झूठ बोला था कि लड़के के पापा कोई आफिसर है, जबकि वह किसी आफिस में चपरासी था। पापा के गुस्से की वजह यह नहीं थी कि वो चपरासी था, बल्कि यह था कि उससे छिपाया क्यों? झूठ क्यों बोला?

यह वज्रपात था मां -पापा के लिए। दादी ने बेड पकड़ ली थी। मां की हालत गंभीर होती जा रही थी! पापा समझ नहीं पा रहे थे आखिरकार हुआ क्या उसे? इस तरह बिगड़कर कोई कहीं घर छोड़ता है। आस पड़ोस के लोग कानाफूसी शुरू कर दिए थे कि लड़की किसी के साथ भाग गयी।

ना कोई चिठ्ठी, ना कोई फोन! कंपनी से पता चला कि उधर काम पर आ रही थी लेकिन इधर एक महीने की छुट्टी पर है। शायद शादी कर ली है, हनीमून पर गयी है। मां लाल जोड़े में सजी बेटी को देखने के लिए तरसती रही, आंखें सूख नहीं रही थी।

कई महीने बाद एक दिन अचानक श्यामला घर आई। सीधे मां के कमरे में गई। बेड खाली था, मां दीवाल पर टंगी तस्वीर में मुस्कुरा रही थी, फूलो का हार तस्वीर की शोभा बढा रही थी। हंसती आंखों में भी दर्द था, अपनी औलाद को न समझ पाने का दर्द। श्यामला अपने उभरी हुई पेट पर हाथ सहलाती रो रही थी। पापा ने कमरे के अंदर झांका और फिर आंगन में रखी कुर्सी पर सर झुकाकर बैठ गये।

” अंत समय तक वो पूछती रही, कि आखिर कार श्यामला को हुआ क्या था? हमने क्या गलत किया था, उसके साथ?”

श्यामला चुपचाप पापा के कुर्सी के पीछे आकर खड़ी हो गई। उन्हें गले लगाने की हिम्मत नहीं थी , फूट फूटकर रोने का साहस भी नहीं था। लेकिन पेट में नन्हे नन्हे पांव थपकियाँ दे रहे थे । “जाओ उन्हें गले लगाओ” फिर वो पापा से लिपट पड़ी।

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