जीवन सार्थक बनाने के लिए केवल यह एक काम जरूरी

-सीताराम गुप्ता-

वर्षा के जल से धुलकर स्वच्छ हो चुकी मधुकामिनी की एक सुंदर घनी झाड़ी पर छोटे-छोटे सफेद आकर्षक फूल खिले हुए थे। मैंने उस झाड़ी से एक फूल तोड़ लिया। उसमें से मंद-मंद मनमोहक महक निःसृत हो रही थी। मैंने फूल पर लगी वर्षा जल की नन्ही बूंदों को झाड़ने के लिए फूल के वृंत को अंगूठे व तर्जनी की सहायता से घुमाया तो उसकी पंखुड़ियां ही झरकर नीचे गिर गईं और उंगलियों के बीच रह गया सिर्फ वृंत। मैंने नीचे गिरी सभी पंखुड़ियों को उठाकर हथेली पर रख लिया। उनमें व्याप्त सुगंध अब भी मेरी नासिकाओं तक पहुंच रही थी। पूरी तरह से बिखर जाने के बाद भी फूल के गुणों में कोई परिवर्तन नहीं आया था। न रंग में और न गंध में ही। उसकी उपयोगिता में कोई अंतर नहीं आया। फूल में व्याप्त गंध व रंग ही उसे उपयोगी बनाते हैं।

फूलों में व्याप्त यह गुण हम सबके लिए अनुकरणीय है। हम विभिन्न अवसरों पर दूसरों को फूल या पुष्पगुच्छ भेंट करते हैं। मन को मन से जोड़ने का कार्य करते हैं फूल। जन्म से लेकर मृत्यु तक सबका शृंगार करते हैं ये। कोई भी मांगलिक अवसर, कोई भी अनुष्ठान प्रारंभ नहीं हो सकता यदि तरह-तरह की फूल-पत्तियां न हों। आकर्षण, आनंद, प्रेम व सम्मान का ही दूसरा नाम है फूल। फूल बनने से पहले की अवस्था भी कम आकर्षक नहीं होती। एक कली से फूल बनने की यात्रा में जो सहजता व उत्प्रेरणा है वह भी अद्वितीय है। बिना किसी आवाज के रंग व गंध की मंजूषा खुल पड़ती है। जब तक तनिक भी बू-बास, रंग व आकार शेष रहता है लोकरंजन में लगा रहता है सुमन और जब मुरझाने लगता है तो फल में परिवर्तित होकर सृष्टि के विस्तार व वसुधा की क्षुधा तृप्ति में भी अपना योगदान देना नहीं भूलता।

मनुष्य को चाहिए कि वह भी ऐसा व्यवहार करे जिससे लोग उसके कार्यों और व्यवहार के लिए उसे भी फूलों की तरह ही पसंद करें। मनुष्य को चाहिए कि वह भी जीवन के हर मोड़ पर फूलों की तरह ही अपनी सार्थकता का प्रमाण दे। एक युवक के रूप में अपने माता-पिता व अन्य की प्रसन्नता व गौरव का कारण बने। गृहस्थाश्रम में परिवार को खुशियों से भर दे, जिस तरह फूल आसपास के वातावरण में सुगंध भर देता है। अपने पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों के प्रति सदैव सजग रहे। बाद में अपने अनुभवों से सबका मार्गदर्शन करने को तत्पर रहे। यह तभी संभव है जब हम समाज के लिए उपयोगी व सार्थक कार्यों में निरंतर संलग्न रहेंगे।

जिस तरह फूल बिखरने या मुरझाकर मिट्टी में मिल जाने तक अपनी सुगंध फैलाना नहीं छोड़ता, उसी तरह मनुष्य की सार्थकता तभी है जब वह फूलों की तरह ही विषम परिस्थितियों में, यानी अपने अंत काल तक अपने उपयोगी कार्यों द्वारा समाज के विकास में सक्रिय रहे। फूलों की कोमल पंखुड़ियों की तरह ही उसके व्यवहार में नम्रता रहे। फूलों के रंगों की तरह ही उसके व्यक्तित्व में आकर्षण बना रहे। हर कोई उसका साथ पाने को लालायित रहे। मनुष्य के व्यक्तित्व में आकर्षण उसके आंतरिक गुणों के कारण पैदा होता है। मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह जीवनपर्यंत अपने आंतरिक गुणों के विकास के लिए तत्पर रहे।

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