निर्मोही अखाड़ा का सुप्रीम कोर्ट में दावा- 1934 से मुस्लिमों की इंट्री नहीं थी

निर्मोही अखाड़ा का सुप्रीम कोर्ट में दावा- 1934 से मुस्लिमों की इंट्री नहीं थी

नई दिल्ली । अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने आज से सुनवाई शुरू कर दी है। आज निर्मोही अखाड़ा की तरफ से वकील सुशील जैन ने अपनी दलीलें पेश कीं, जाे कल भी जारी रहेगी। अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने कहा कि विवादित परिसर के अंदरूनी हिस्से पर पहले हमारा कब्ज़ा था, जिसे दूसरे ने बलपूर्वक कब्ज़े में ले लिया। बाहरी पर पहले विवाद नहीं था बल्कि 1961 से विवाद शुरू हुआ।

सुशील जैन ने कहा कि मस्ज़िद को पुराने रिकॉर्ड में मस्ज़िद ए जन्मस्थान लिखा गया है। बाहर निर्मोही साधु पूजा करवाते रहे। हिन्दू बड़ी संख्या में पूजा करने और प्रसाद चढ़ाने आया करते थे। निर्मोही के संचालन में कई पुराने मंदिर हैं। झांसी की रानी ने भी हमारे एक मंदिर में प्राण त्यागे थे। निर्मोही अखाड़े के वकील की जिरह के बीच में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जब बोलना शुरू किया तो चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आपको भी जिरह के लिए पर्याप्त मौका मिलेगा, तब धवन ने कहा कि हमें शक है कि हमें पर्याप्त समय मिलेगा। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ये कोर्ट में बर्ताव करने का सही तरीका नहीं है।

सुशील जैन ने दलील देते हुए उन पुराने फ़ैसलों का हवाला भी दिया, जिनके मुताबिक किसी ऐसी जगह को मस्जिद करार नहीं दिया जा सकता, अगर वहां पर नमाज़ नहीं पढ़ी जा रही हो। जैन ने दावा किया कि विवादित ज़मीन पर मुस्लिमो ने 1934 से पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ना बन्द कर दिया था। 16 दिसंबर 1949 के बाद तो जुमे की नमाज़ पढ़ना भी बंद हो गई। 22-23 दिसंबर 1949 को वहां अंदर मूर्तियां रखी गईं। विवादित जगह पर वुज़ू (नमाज से पहले हाथ-पैर धोने) की जगह नहीं है, जो दर्शाता है कि वहां लंबे वक़्त से नमाज़ पढ़ी नहीं जा रही। 

अखाड़े ने 1931 में विवादित ज़मीन को लेकर दावा पेश किया, जबकि सुन्नी बोर्ड ने 1961 में इसे लेकर मुकदमा दायर किया

सुशील जैन ने दावा किया कि अखाड़ा मंदिर के प्रबंधक की हैसियत से विवादित ज़मीन पर अपना दावा कर रहा है, जबकि बाकी हिंदू पक्षकार सिर्फ पूजा के अधिकार का हवाला देकर दावा कर रहे हैं।1949 से वहां नमाज़ नहीं हुई, लिहाजा मुस्लिम पक्ष का कोई दावा नहीं बनता। तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि 1949 में सरकार ने ज़मीन पर कब्ज़ा किया, निर्मोही अखाड़े ने 1959  में कोर्ट का रुख किया, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने 1961 में मुकदमा दायर किया। क्या ये सिविल केस में दावे के लिए मुकदमा दायर करने की समयसीमा का उल्लंघन नहीं करता? तब सुशील जैन ने कहा कि ज़मीन पर हमारा दावा पुराना है, ऐतिहासिक है। 1934 से हमारा कब्जा है। समयसीमा का यहां उनकी ओर से उल्लघंन नहीं हुआ है।

उल्लेखनीय है कि 2 अगस्त को कोर्ट ने पाया था कि अयोध्या मामले पर मध्यस्थता प्रक्रिया असफल हो चुकी है। उसके बाद कोर्ट ने मंगलवार से रोजाना सुनवाई करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त मध्यस्थता कमेटी ने पिछली एक अगस्त को अपनी फाइनल रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी थी। पिछली 18 जुलाई को कोर्ट ने मध्यस्थता कमेटी से यह रिपोर्ट मांगी थी।

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