ईडी की सख्ती के बाद मेट्रो डेयरी बिक्री का दस्तावेज देने को तैयार हुई ममता सरकार

कोलकाता। केवेंटर एग्रो नाम की कंपनी द्वारा राज्य सरकार के मेट्रो डेयरी को काफी कम कीमत में खरीदकर उसे सिंगापुर की एक इक्विटी कंपनी को भारी कीमत में बेचे जाने को लेकर मचे हंगामे के बीच  आखिरकार राज्य सरकार बिक्री से संबंधित दस्तावेज देने को राजी हुई है। इस मामले में विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम (फेमा) के तहत धन शोधन की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की सख्ती के बाद ममता बनर्जी की सरकार अब इस बिक्री से संबंधित मूल फाइल सौंपने की तैयारी कर रही है। करीब 10 दिनों पहले ईडी ने साफ किया था कि विगत कई महीनों से राज्य सरकार से मेट्रो डेयरी को बेचने से संबंधित मूल फाइल मांगी जा रही है लेकिन राज्य सरकार इस पर चुप्पी साध कर बैठी है। इससे किसी तरह की धांधली का संदेह हो रहा है और अगर राज्य सरकार ने जल्द से जल्द फाइल नहीं दी तो ईडी अधिकारियों के पास सचिवालय में छापेमारी के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। सबसे पहले “हिन्दुस्थान समाचार” ने इस खबर को ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से जारी किया था। इसके बाद विधानसभा में इसे लेकर जमकर हंगामा हुआ। विपक्षी विधायकों ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और पूछा कि आखिर क्यों राज्य सरकार मेट्रो डेयरी बिक्री से संबंधित दस्तावेज नहीं दे रही है। इस पर मुख्यमंत्री ने कहा था कि सब कुछ साफ सुथरी प्रक्रिया के तहत किया गया है। अब खबर है कि दो दिन पहले ही राज्य सरकार के दुग्ध विभाग “द वेस्ट बेंगल कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन” के चेयरमैन तथा तृणमूल विधायक परेश दत्त ने मेट्रो डेयरी बिक्री से संबंधित दस्तावेज को ईडी को सौंपने के लिए अपना हस्ताक्षर और बाकी प्रक्रिया पूरी कर प्राणी संपद विभाग को भेज दिया है। जब मेट्रो डेयरी को बेचा गया था तब तापस राज्य के दुग्ध विभाग के चेयरमैन थे। इधर मेट्रो डेयरी बिक्री से संबंधित मूल दस्तावेज राज्य के प्राणी संपद विभाग के पास है। शुक्रवार को इस बारे में विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि दुग्ध विभाग से सारी फाइलें मेरे पास आ गई हैं। राज्य सचिवालय से मैं इन फाइलों के संबंध में दिशा-निर्देश लूंगा। इसे ईडी को कब सौंपना है इस बारे में सचिवालय से निर्देश मिलने के बाद ही काम करूंगा।क्या है मामलासाल 2017 के अगस्त महीने में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की बैठक हुई थी। इसमें मेट्रो डेयरी को बेचने पर सहमति बनी थी। तब डेयरी के 47 प्रतिशत शेयर राज्य सरकार के पास थे जबकि बाकी के 53 प्रतिशत  केवेंटर्स एग्रो नाम की कंपनी के हाथ में थे। मुख्यमंत्री से हरी झंडी मिलने के बाद राज्य सरकार के प्राणी संपद विकास विभाग, वेस्ट बंगाल मिल्क फेडरेशन और वित्त विभाग ने संयुक्त रूप से 84.5 करोड़ रुपये में मेट्रो डेयरी का 47 प्रतिशत शेयर केवेंटर्स को बेच दिया गया था। उसके कुछ दिनों बाद ही केवेंटर्स ने कंपनी का केवल 15 प्रतिशत शेयर 170 करोड़ रुपये में सिंगापुर की एक इक्विटी फंड को बिक्री कर दी थी। दावा किया गया था कि मंत्रिमंडल के मंत्रियों और अधिकारियों की मिलीभगत से कम कीमत में मेट्रो डेयरी को केवेंटर्स को बेचा गया। जब केवेंटर्स ने केवल 15 प्रतिशत शेयर 170 करोड़ में बेचा तो 47 प्रतिशत शेयर अगर राज्य सरकार बेचती तो इससे राज्य के कोष में कम से कम 500 करोड़ रुपये आते। ऐसे में सवाल है कि मेट्रो डेयरी की बिक्री से पहले सरकार ने विशेषज्ञ संस्था से इसका मूल्यांकन क्यों नहीं करवाया? कायदे से किसी भी सरकारी संस्था की बिक्री से पहले उसका उच्चतम मूल्य निर्धारित किया जाता है और उसके बाद नीलामी के जरिए उसकी बिक्री होती है। इसे लेकर कांग्रेस के बहरमपुर से सांसद और लोकसभा में कांग्रेस के नेता  अधीर रंजन चौधुरी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगा दी थी। इसमें उन्होंने इसे एक व्यापक भ्रष्टाचार का मुद्दा बताया था और इसकी जांच केंद्रीय एजेंसी से कराने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की थी। इसके बाद वित्त विभाग ने इससे संबंधित दस्तावेज भी कोर्ट को सौंप दिया था। इस मामले के बाद ईडी ने एक धन शोधन का मामला दर्ज कर फेमा के तहत इसकी जांच शुरू कर दी थी। मेट्रो डेयरी की खरीद बिक्री से संबंधित रिपोर्ट तलब की गई थी लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार ने ईडी को फाइल नहीं सौंपी। अब ईडी की ओर से सख्त रुख अख्तियार किये जाने के बाद ममता सरकार फाईल देने को राजी हुई है।

This post has already been read 7550 times!

Sharing this

Related posts