रांची । लोकसभा चुनाव जैसेे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे ही रोज नये नये किस्से सुनने को मिल रहे हैं। पार्टियों के सपोर्ट और विरोध के नजारो देखने को मिल रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं में मतभेद अकसर देखने को मिल जाता है, लेकिन संगठित क्षेत्र में मतभेद कम दिखायी देता है।
झारखंड में लोकसभा चुनाव की गर्मी सर चढ़कर बोल रही है। राज्य के पारा शिक्षक पक्ष-विपक्ष के चक्कर में आपस में ही भिंड रहे हैं। इनकी लड़ाई सोशल मीडिया पर बखूबी देखी जा सकती है। पारा शिक्षकों दो गुटों में बंट गये हैं। एक पक्ष मोदी सरकार के पक्ष में बोल रहा है तो दूसरा पक्ष गठबंधन के पक्ष में। पहले गुट का कहना है कि देश में मोदी सरकार ने अच्छा काम किया है, वोट उन्हीं को दिया जाना चाहिए। साथ ही वो उनके पक्ष में प्रचार- प्रसार भी कर रहे हैं। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि बीजेपी सरकार ने हमेशा पारा शिक्षकों के साथ भेदभाव किया है। उन्हें छलने का काम किया है। ऐसे में बीजेपी सरकार को सत्ता में लाना ठीक नहीं होगा।.
दूसरे पक्ष का यह भी कहना है कि राज्य और स्थानीय जनता की समस्या का समाधान नरेंद्र मोदी आकर नहीं करेंगे। उनके समस्याओं को स्थानीय सांसद ही सुनेंगे। इसीलिए गठबंधन के नेता को जीताना उचित होगा। क्योंकि बीजेपी के सांसद अपने आलाकमान के सामने मुंह नहीं खोलते और ना ही उनके सामने क्षेत्र की समस्याओं को रखते हैं। उनका कहना है कि देश तथा राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार बनी। बावजूद इसके पारा शिक्षकों के हालात में कोई परिवर्तन नहीं आया।
स्थापना दिवस के बाद से मामला गड़बड़ाया
ज्ञात हो कि राज्य में पारा शिक्षकों का मामला राज्य के स्थापना दिवस यानी 15 नवंबर के दिन से गड़बड़ाया है। यह मामला पहले धरना-प्रर्दशन तक ही सीमित था, लेकिन राज्य स्थापना दिवस के मौके पर जब पारा शिक्षक प्रर्दशन कर रहे थे, तब प्रशासन ने पारा शिक्षकों पर लाठी चार्ज कराया था। सैकड़ों पारा शिक्षकों को जेल भेजा था तथा सैकड़ों पारा शिक्षक जख्मी हुए थे। इसके बाद लगातार लगभग 60 दिनों तक पारा शिक्षकों का हड़ताल रहा था। इससे राज्य की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी। पारा शिक्षक अपने स्थायीकरण और पे स्केल की मांग को लेकर अड़ गये थे। आखिर में वेतनमान में वृद्धि कर पारा शिक्षकों का हड़ताल वापस कराया गया था।
लगभग 10 शिक्षकों की मौत
हड़ताल के दौरान राज्य में लगभग 10 पारा शिक्षकों की मौत हुई थी। जिसके बाद मामला ज्यादा गंभीर हो गया था। साथी शिक्षक मृत शिक्षकों के परिजनों के लिए 10 लाख रुपये की मुआवजे की मांग कर रहे थे। कथित तौर पर उस वक्त सरकार पारा शिक्षकों को लेकर गंभीर नहीं थी। उनकी अनदेखी कर रही थी। उसी वक्त एकीकृत पारा शिक्षक संघ ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारा जवाब देने की ठानी थी। चुनाव के पहंुचते ही पारा शिक्षक आपसे में भी बंट गये। कुछ लोग बीजेपी के पक्ष में तो कुछ लोग गठबंधन के पक्ष में आ गये। यह लड़ाई आजकल सोशल मीडिया में खूब छाया हुआ है।
स्थापना दिवस के बाद से मामला गड़बड़ाया
ज्ञात हो कि राज्य में पारा शिक्षकों का मामला राज्य के स्थापना दिवस यानी 15 नवंबर के दिन से गड़बड़ाया है। यह मामला पहले धरना-प्रर्दशन तक ही सीमित था, लेकिन राज्य स्थापना दिवस के मौके पर जब पारा शिक्षक प्रर्दशन कर रहे थे, तब प्रशासन ने पारा शिक्षकों पर लाठी चार्ज कराया था। सैकड़ों पारा शिक्षकों को जेल भेजा था तथा सैकड़ों पारा शिक्षक जख्मी हुए थे। इसके बाद लगातार लगभग 60 दिनों तक पारा शिक्षकों का हड़ताल रहा था। इससे राज्य की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी। पारा शिक्षक अपने स्थायीकरण और पे स्केल की मांग को लेकर अड़ गये थे। आखिर में वेतनमान में वृद्धि कर पारा शिक्षकों का हड़ताल वापस कराया गया था।
लगभग 10 शिक्षकों की मौत
हड़ताल के दौरान राज्य में लगभग 10 पारा शिक्षकों की मौत हुई थी। जिसके बाद मामला ज्यादा गंभीर हो गया था। साथी शिक्षक मृत शिक्षकों के परिजनों के लिए 10 लाख रुपये की मुआवजे की मांग कर रहे थे। कथित तौर पर उस वक्त सरकार पारा शिक्षकों को लेकर गंभीर नहीं थी। उनकी अनदेखी कर रही थी। उसी वक्त एकीकृत पारा शिक्षक संघ ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करारा जवाब देने की ठानी थी। चुनाव के पहंुचते ही पारा शिक्षक आपसे में भी बंट गये। कुछ लोग बीजेपी के पक्ष में तो कुछ लोग गठबंधन के पक्ष में आ गये। यह लड़ाई आजकल सोशल मीडिया में खूब छाया हुआ है।
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