केरल को लैंड आफ गॉड यूं ही नहीं कहा जाता….

केरल को लैंड आफ गॉड यूं ही नहीं कहा जाता। प्राकृतिक नजारों से लबरेज यहां का छोटा सा गांव हो या फिर शहर-हरी भरी कुदरत आपकी सारी उदासी हरने को हरदम तैयार रहती है। असीम फैले सागर की जो सुंदरता यहां है, अन्य जगह नहीं। मंदिरों की वास्तु्कला भी अद्भुत है। भारत आने वाले विदेशी सैलानी भी केरल की डगर जरूर पकड़ते हैं। और इन सबके बीच केरल की नई पहचान बन रही है आर्युवेद, पंचकर्मा और नेचुरल थेरेपी। प्रकृति के करीब रहकर अपने स्वास्थय के लिए समय निकालने के लिए बेहतरीन टूरिस्टा डेस्टिनेशन केरल पर आलेख…

आप जब भी कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम बनाते हैं तो मन में एक ही बात आती है कि जगह ऐसी हो कि वहां का नजारा देखते ही सारी थकान, परेशानी, ऑफिस की टेंशन और बीमारियों के नाम दुम दबाकर भाग जाएं। मैंने जगह चुनी केरल। वजह-सैर की सैर और उपचार का उपचार। केरल जितना अपने साइट सीन के लिए प्रसिद्ध है, उससे कहीं ज्याादा अपने आयुर्वेद और पंचकर्मा के लिए।

केरल पूरा घूमने के लिए कम से कम 15 दिन का समय चाहिए। लेकिन मेरे पास थे केवल 4 दिन। इस अल्प समय में ही मैं बहुत कुछ समेट लेना चाहती थी। मैंने जैसा सोचा था, मेरी मंजिल बिलकुल वैसी ही थी। नदियां, पहाड़ और हरे-भरे मैदान, सब एक साथ। दिल्लीय से कोयम्बटूर के लिए जैसे ही उड़ान भरी, मन मयूरा नाच उठा। नीले शून्यै के बीच टुकड़ों में बादल बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे। चूंकि बारिश का मौसम था, इसलिए को पायलट बार-बार बेल्टर लगाये रखने की एनाउंसमेंट कर रहा था। मैं गुनगुनाती, मंद-मंद मुस्कुलराती बादलों में खुद को उन्मुेक्तै पक्षी सा महसूस कर रही थी। कब तीन घंटे बीत गए पता ही नहीं चला। फ्लाइट लैंड कर रही थी और दूर-दूर तक फैले नजारे प्रकृति प्रेमियों को लुभाने के लिए काफी थे।

पलक्डुलण   गांव का आयुर्वेद विलेज:- मैंने शहर की भीड़-भाड़ से दूर कोयम्बजटूर से 60 किलोमीटर आगे पलक्ड्स्  गांव के केराली आयुर्वेद विलेज को अपना ठिकाना बनाया। एक घंटे की दूरी तय कर मैं पहुंची पलक्कीड गांव में बसे केराली आयुर्वेद हेल्था सेंटर। शाम होने को थी। रास्तेए में जो नजारे मैं लेती आ रही थी, वह अद्भुत थे। खाड़ी देशों में कमाने वालों द्वारा बनाए गए आलीशान घरों की नक्कानशी देख मेरा मन बस से उतर कर उन घरों को करीब से जाकर देखने का कर रहा था। गांव होते हुए भी शहरों को मात कर देने वाले खूबसूरत घरों को देखती, सपने बुनती मैं रास्तों के साथ-साथ आगे बढ़ती जा रही थी।

सड़क के दोनों किनारों पर नारियल के पेड़ बरबस आकर्षित कर रहे थे। आज तक यह नजारा या तो फिल्मोंू या फिर फोटोज में ही देखा था। हकीकत तो और खूबसूरत निकली। उस पर हल्कीे-हल्कीक बारिश पूरे माहौल को रोमानी बना रही थी। अभी हमारी बस एयरपोर्ट से 20-22 किलोमीटर ही आगे पहुंची होगी कि हमें दाहिनी ओर पहाड़ों पर बादल उमड़ते-घुमड़ते दिखाई दिए। ड्राइवर शिव बीच-बीच में टूटी-फूटी हिंदी में सारे रास्तोंि से अवगत कराता जा रहा था। बोला-मैडम दिल्लीक में तो सिर्फ गाड़ियां और शोर है, यहां आपको 2 दिन बहुत अच्छाा लगेगा। उसने बताया कि इस पहाड़ी श्रृंखला को वेस्टेर्न घाट कहते हैं। अद्भुत दृश्यै था। पहाड़ों पर तो बहुत बार गई थी, लेकिन नीचे नारियल और फिर पहाड़, यह दृश्य अलग था।

केराली हेल्थ  सेंटर:- अब हम केराली हेल्थर सेंटर पहुंच चुके थे। हमारा स्वातगत केरल की पारंपरिक चुनर ओढ़ाकर और नारियल पानी जैसी रस्मों से किया गया। झिंगुर की तेज आवाज कानों को चीर रही थी। शहर की भागमभाग से दूर अजीब सी शांति महसूस हो रही थी। चूंकि आयुर्वेद में खाना जल्दीू खाने का प्रचलन है तो हमें बताया गया कि आप फ्रेश होकर कैंटीन पहुंचें, खाना आपका इंतजार कर रहा है। तैयार होकर कैंटीन पहुंची। मुस्कुोराते हुए हेनरी ने स्वालगत किया। पहले गुलाबी रंग का पीने का पानी दिया गया। रंगीन पानी-पता चला केरल में आपको गुलाबी रंग का रंगीन पानी सर्व किया जाता है, जो हल्काय गुनगुना होता है। फिर टमाटर की रसम के साथ सलाद। भूख लग रही थी। शुद्ध शाकाहारी, स्वाजस्य्गप  को ध्याकन में रखकर कम तेल, मसाले वाला खाना पेश किया गया। मेरे सामने वाली कुर्सी पर एक बुजुर्ग कपल बैठे थे तो दूसरी पर अंग्रेज।

कॉटेज के नाम राशियों पर:- खाना खाकर जैसे ही बाहर निकली, मन किया कॉटेज घूम लूं। पूरा कॉटेज सपनों जैसा लग रहा था। मेरे साथ घूम रहे अभिनव ने बताया कि 30 कॉटेज हैं, वास्तुल को ध्याजन में रखकर तो बनाया ही गया है, साथ ही हर एक कॉटेज का नाम राशियों के नाम के हिसाब से रखा गया है। चूंकि यह एक आयुर्वेद सेंटर है इसलिए यहां विदेशी खूब देखे जाते हैं। मुझे बताया कि सुबह छह बजे तैयार हो जाना है, यहां सुबह-सुबह योग कराया जाता है। मैं आगे बढ़ी ही थी कि धड़ाम की आवाज के साथ नारियल गिरा। पता चला कि हम जितना भी नारियल पी रहे हैं, सब इसी फॉर्म की देन है। यहां हर्बल गार्डन है, मरीजों की दी जाने वाली अधिकतर दवाएं यहीं बनती हैं।

योग और मसाज:- दिन की शुरुआत योग से हुई। योग के बाद सीधे कैंटीन, नाश्ता। किया। अब मसाज की बारी थी। दो महिलाएं मेरे पैर के नाखून से लेकर सिर तक जिस तरह मसाज कर रही थीं, उस राजसी एहसास को शब्दोंा में बयां कर पाना बहुत ही मुश्किल है। 50 मिनट के दौरान कितनी बार झपकी आई, पता ही नहीं चला। जब मैं तेल में सराबोर थी तो मुझे स्टीनम रूम में रखा गया। यहां गर्म हवा मेरे पूरे शरीर की जहरीली गंदगी को शायद बाहर निकाल रही थी। उसके बाद गुनगुने पानी से स्ना न। बदन में कहीं दर्द भी था, अब तो पता नहीं। आंखें नींद से झुकी जा रही थी, पेट में चूहे कूद रहे थे। मैं खाना खाते ही घूमने जाने का सारा कार्यक्रम आधे घंटे बाद कह कर सोने चली गई। पूरे दो घंटे तक बेसुध सोई। फिर उठकर घूमने को चली।

टीपू सुल्तालन का किला:- पल्लतकड शहर में रिसॉर्ड से लगभग 14 किलोमीटर दूर 1766 ईसवी का बना टीपू सुल्तालन का किला है, जिसे हैदर अली ने बनवाया था और टीपू सुल्तालन ने उसकी मरम्मुत कराई थी। किले की दीवार के आधे हिस्से को आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया वालों ने प्ले1न कर दिया है, जो किले की खूबसूरती को थोड़ा डैमेज करता है। किले के परिसर में मान्यफता प्राप्तर हनुमान मंदिर है। पुजारी ने बताया कि इसे टीपू सुल्ताान ने ही बनवाया था। मंदिर बहुत ही छोटा था, बजरंगबली चांदी के पत्तर में लपेटे थे। भारी तादाद में श्रद्धालु वहां लगे बड़े-बड़े दीयों में घी डालकर मन्नत मान रहे थे। अंदर 7 गढ़ और स्वालई से घेरली है। किले की सजावट, रखरखाव बहुत ही साफ-सुथरा, खूबसूरत और दुरुस्तु लगा।

मलमपुषा जलाशय:- शहर के ही दूसरे छोर पर मलमपुषा जलाशय है। किले से निकलकर वहां पहुंचने में हमें महज 15 मिनट का समय लगा। जलाशय में बोटिंग करने के साथ-साथ मछली पकड़ने की व्यलवस्थां है। अगले दिन मैंने अपने लिए पोटली मसाज चुना। बदन दर्द, सर्वाइकल, मोटापे और ब्ड्औरल सर्कुलेशन को संयमित रखने के लिए यह मसाज बेहतरीन मानी जाती है।

तिरुवालाथूर या प्राचीन मंदिर:- रिसॉर्ट से महज दस किलोमीटर की दूरी पर है तिरुवालाथूर। इसे प्राचीन मंदिर भी कहते हैं। लकड़ी और पत्थहरों से काटकर बनाया गया यह मंदिर सचमुच अद्वितीय है। यहीं से थोड़ी ही दूरी पर था तेनारी। तेनारी एक झरना है और ऐसी मान्यनता है कि भगवान राम ने सीता के प्या स लगने पर अपने तीर से इस झरने का निर्माण किया था। इसकी मान्यसता यहां गंगा नदी की पवित्रता जैसी ही है। छोटी सी लेकिन बहुत मनोरम है जगह। चूंकि सैलानियों की आमद यहां कम है इसलिए भीड़ भी लोकल लोगों की ही ज्याछदा दिख रही थी। शाम होने को थी। अब हम पलक्कमड शहर के बाजार पहुंचे। अमूमन छोटे गांवों कस्बोंर के बाजार एक जैसे ही होते हैं। बस साइनबोर्ड, बोलचाल और पहनावे को हटा दें तो। पल्क्ैलोड का बाजार भी वैसा ही लग रहा था। यहां पर केरल की सूती मुंडू ड्रेस और कॉटन साड़ियों का अंबार लगा दिखा।

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