रांची: देश में शिक्षा का अधिकार कानून होने के बाद भी रांची में गरीब बच्चों को सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा है. रांची में आरटीई कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई जा आरही है. एसोसिएशन फॉर परिवर्तन ऑफ नेशन ने साल 2018-19 की शिक्षा का अधिकार को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में साल 2018-19 में शिक्षा का अधिकार के तहत 74 प्रतिशत सीटें खाली रही हैं. रांची में मात्र 181 बच्चों को ही शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूलों में एडमिशन मिल पाया है. शिक्षा का अधिकार के तहत स्कूलों में किये गए आवेदनों में से 89 प्रतिशत आवेदनों को रिजेक्ट कर दिया गया है.
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राजधानी रांची में शिक्षा का अधिकार के तहत गरीब बच्चो को मिलने वाले एडमिशन पर बड़ा खुलासा हुआ है. रांची में साल 2018-19 में मात्र 181 शिक्षा का अधिकार के तहत स्कूलों में दाखिला मिला है. हैरान करने वाली बात तो यह है कि शिक्षा का अधिकार के तहत किये गए आवेदनों में से 89 प्रतिशत आवेदन सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों ने रिजेक्ट कर दिए हैं. जिससे राजधानी में 74 प्रतिशत सीटें खाली रही हैं. एसोसिएशन फॉर परिवर्तन ऑफ नेशन द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट में से सिस्टम पर सवाल खड़ा होना लाजमी है. शिक्षा के अधिकार के तहत सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चो के लिए आरक्षित रहती हैं.
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ऐसे में राजधानी रांची में ही 2018-19 में 74 प्रतिशत शिक्षा के अधिकार का तहत अरक्षित सीटें खाली रही हैं. अक्सर शिक्षा का अधिकार के तहत मिलने वाले दाखिलों में कई बार आनाकानी करने की शिकायत आती रहती हैं. शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती है. इसके लिए गरीब बच्चो के मां-बाप को कोई भी फीस नहीं देनी होती है. शिक्षा का अधिकार कानून के तहत 6 से 14 साल वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना अनिवार्य है.
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