पालघर हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली

महाराष्ट्र सरकार को पूरक चार्जशीट की कॉपी दाखिल करने का निर्देश

नई दिल्ली :  सुप्रीम कोर्ट ने पालघर में 2 साधुओं और उनके ड्राइवर की हत्या की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग पर सुनवाई दो हफ्ते के लिए टाल दी है। सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पुलिस पहले निचली अदालत में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। अब पूरक चार्जशीट दाखिल करने वाली है। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को पूरक चार्जशीट की कॉपी दाखिल करने का निर्देश दिया।

सुनवाई के दौरान पिछले 18 जनवरी को महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि जांच पूरी हो गई है और रिपोर्ट निचली अदालत में दाखिल कर दी गई है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई टलने की वजह से साक्ष्य के नष्ट होने का डर है। महाराष्ट्र सरकार ने 23 नवम्बर, 2020 को कोर्ट को बताया था कि लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई की गई है। महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नई स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर कहा था कि 15 पुलिस वालों को वेतन में कटौती की सजा दी गई है। महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को बर्खास्त किया गया है और दो अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेजे गए। महाराष्ट्र सरकार ने हलफनामे में कहा था कि 252 व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है और 15 पुलिसकर्मियों पर वेतन कटौती के साथ जुर्माना लगाया गया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त, 2020 को महाराष्ट्र सरकार से पूछा था कि उन पुलिसवालों के खिलाफ जांच में क्या निकाला, जिनकी मौजूदगी में पालघर में भीड़ ने दो साधुओं की हत्या की। कोर्ट ने पूछा था कि महीनों गुजर जाने के बाद भी राज्य सरकार ने उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ अभी तक क्या कार्रवाई की। कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस से इस मामले में दायर चार्जशीट भी पेश करने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अगर चार्जशीट देखने के बाद कोर्ट को मुंबई पुलिस की अपराध में मिलीभगत नजर आती है, तब सीबीआई जांच होनी चाहिए।

यह याचिका शशांक शेखर झा ने दायर की है। 11 जून, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार, केंद्र सरकार औऱ सीबीआई को नोटिस जारी किया था। उस समय मृत साधुओं के रिश्तेदारों और जूना अखाड़ा के साधुओं ने याचिका दाखिल की थी, जिनमें कहा गया कि महाराष्ट्र सरकार और पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं है, क्योंकि इस मामले में शक के दायरे में पुलिस ही है। याचिका में घटना में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए मामले की जांच राज्य सीआईडी से वापस लेने की मांग की गई। 

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