हरेन पंड्या हत्याकांडः 16 साल तीन माह नौ दिन में मिला न्याय

हरेन पंड्या हत्याकांड की साइड स्टोरी और घटनाक्रम………

नई दिल्ली। बहुचर्चित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता हरेन पंड्या हत्याकांड पर देश की सबसे बड़ी अदालत का फैसला शुक्रवार को आ गया। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करने वाले हरेन गुजरात में केशुभाई पटेल की सरकार में 1998 से 2001 तक गृहमंत्री थे। इसके बाद उन्हें राज्य की तत्कालीन नरेन्द्र मोदी सरकार में राजस्व मंत्री बनाया गया। पंड्या 1992 में सक्रिय राजनीति में आए। एलिसब्रिज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 42,000 मतों के अंतर से चुनाव जीते। वह इस सीट से 1995 और 1998 में भी निर्वाचित हुए। पंड्या शीर्ष नेतृत्व से वैचारिक मतभेदों के लिए सुर्खियों में रहे हैं। फैसले को मंजिल पर पहुंचने में पूरे सोलह साल तीन माह नौ दिन का वक्त लगा।

रक्तरंजित तारीख से फैसले की आखिरी घड़ी तक का ब्योरा-

26 मार्च, 2003– गुजरात भाजपा के नेता और राज्य के पूर्व गृहमंत्री हरेन पंड्या (43) की गोली मारकर हत्या। हत्यारों ने अहमदाबाद में घर से दो किलोमीटर दूर लॉ गार्डेन इलाके सुबह 7ः40 बजे निशाना बनाया। – गुजरात पुलिस के बाद सीबीआई ने हत्याकांड की जांच की। गुजरात पुलिस की दलील थी कि पंड्या की हत्या 2002 के गुजरात दंगों का बदला लेने के लिए हैदराबाद के हमलावरों ने की। सीबीआई ने पंड्या की हत्या के पीछे पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस, लश्कर-ए-तैयबा, और अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम की भूमिका का खुलासा किया। कुछ समय बाद 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया।

8 सितंबर, 2003 सीबीआई ने चार्जशीट दायर की। सीबीआई का पूरा केस एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी लॉ गार्डन के सैंडविच विक्रेता अनिल के बयान पर आधारित था। उसने दावा किया किया था कि वह पंड्या की हत्या के समय मौजूद था और उसने पंड्या के हमलावर के रूप में असगर अली की पहचान की थी। सितंबर 2011 में गुजरात हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सभी आरोपितों को बरी करते हुए पूरे मामले को खारिज कर दिया। तत्कालीन जस्टिस ने टिप्पणी की-“ये पूरी जांच शुरू से ही गड़बड़ तरीके से और बहुत संकीर्ण दृष्टिकोण से की गई है। जांच कर रहे अधिकारियों को अपनी अयोग्यता के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप, कई संबंधित व्यक्तियों के साथ अन्याय और भारी उत्पीड़न किया गया, और सार्वजनिक संसाधनों और अदालतों के सार्वजनिक समय की भारी बर्बादी की गई।”

5 जुलाई, 2019 सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुए 12 आरोपितों को दोषी ठहराया। निचली अदालत ने सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। गुजरात सरकार और सीबीआई ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अर्जी दायर की थी। जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने एनजीओ सीपीआईएल की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें कोर्ट की निगरानी में इस हत्याकांड की नए सिरे से जांच कराने का अनुरोध किया गया था।

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