कहते हैं कि महाशिवरात्रि में किसी भी प्रहर अगर भोले बाबा की आराधना की जाए, तो मां पार्वती और भोले त्रिपुरारी दिल खोलकर कर भक्तों की कामनाएं पूरी करते हैं। महाशिवरात्रि पर पूरे मन से कीजिए शिव की आराधना और पूरी कीजिए अपनी हर कामना। महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव के पूजन का सबसे बड़ा पर्व भी है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि को भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। विश्वास किया जाता है कि तीनों लोकों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों और पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकार ज्वाला उनकी पहचान है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। यह दिन जीव मात्र के लिए महान उपलब्धि प्राप्त करने का दिन भी है। बताया जाता है कि जो लोग इस दिन परम सिद्धिदायक उस महान स्वरूप की उपासना करता है, वह परम भाग्यशाली होता है। इसके बारे में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मुख से कहलवाया है, ‘शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर सपनेहु मोहि नहिं भावा।’ यान जो शिव का द्रोह करके मुझे प्राप्त करना चाहता है, वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए श्रावण मास में शिव आराधना के साथ श्रीरामचरितमानस पाठ का बहुत महत्व होता है। शिव की महत्ता को ‘शिवसागर’ में और ज्यादा विस्तृत रूप में देखा जा सकता है। शिवसागर में बताया गया है कि विविध शक्तियां, विष्णु व ब्रह्मा, जिसके कारण देवी और देवता के रूप में विराजमान हैं, जिसके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र हैं, मंत्र हैं, ऐसे तंत्र के रूप में विराजमान भगवान शिव को नमस्कार है। दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘नटराजम्’ भगवान शिव के सम्पूर्ण आलोक को प्रस्तुत करता है। इसमें लिखा गया है कि मधुमास यानी चैत्र माह के पूर्व अर्थात् फाल्गुन मास की त्रयोदशी को प्रपूजित भगवान शिव कुछ भी देना शेष नहीं रखते हैं। इसमें बताया गया है कि ‘त्रिपथगामिनी’ गंगा, जिनकी जटा में शरण और विश्राम पाती हैं, त्रिलोक- आकाश, पाताल व मृत्युलोक वासियों के त्रिकाल यानी भूत, भविष्य व वर्तमान को जिनके त्रिनेत्र त्रिगुणात्मक बनाते हैं। जिनके तीनों नेत्रों से उत्सर्जित होने वाली तीन अग्नि जीव मात्र का शरीर पोषण करती हैं, जिनके त्रैराशिक तत्वों से जगत को त्रिरूप यानी आकार, प्रकार और विकार प्राप्त होता है, जिनका त्रिविग्रह त्रिलोक को त्रिविध रूप से नष्ट करता है, ऐसे त्रिवेद रूपी भगवान शिव मधुमास पूर्वा प्रदोषपरा त्रयोदशी तिथि को प्रसन्न हों।
महाशिवरात्रि से जुड़ी कथा
महाशिवरात्रि के दिन शिवभक्त बड़े धूमधाम से शिव की पूजा करते हैं। भक्त मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाकर पूजन करते हैं। साथ ही लोग उपवास तथा रात को जागरण करते हैं। शिवलिंग पर बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है। यह माना जाता है कि इस दिन शिव का विवाह हुआ था, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की याद दिलाता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है। शिवरात्रि पर सच्चा उपवास यही है कि हम परमात्मा शिव से बुद्धि योग लगाकर उनके समीप रहे। उपवास का अर्थ ही है समीप रहना। जागरण का सच्चा अर्थ भी काम, क्रोध आदि पांच विकारों के वशीभूत होकर अज्ञान रूपी कुम्भकरण की निद्रा में सो जाने से स्वयं को सदा बचाए रखना है। शिवरात्रि के पर्व पर जागरण का विशेष महत्व है। पौराणिक कथा है कि एक बार पार्वतीजी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का उपाय बताया। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया है। शिव का अर्थ है कल्याण। शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है। ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं, जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। अब मन कमजोर होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे कष्टों का सामना करना पड़ता है। चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। इसलिए चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है। एक कथा यह भी बताती है कि महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है, इसलिए प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव अराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश और पुन:स्थापन के बीच की कड़ी हैं। ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।
कैसे करें महाशिवरात्रि में पूजा…
हम आपको बताते हैं कि इस दिन शिव की पूजा किस तरह से की जाती है। सबसे पहले मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ायें। हां एक उपाय और बताता हूं, अगर घर के आस-पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर भी उसे पूजा जा सकता है। माना जाता है कि इस दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए। रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हरेक व्रती का धर्म माना गया है। इसके बाद अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है। माना जाता है कि यह दिन भगवान शंकर का सबसे पवित्र दिन है। यह अपनी आत्मा को पुनीत करने का महाव्रत है। इस व्रत को करने से सब पापों का नाश हो जाता है। हिंसक प्रवृत्ति बदल जाती है। निरीह जीवों के प्रति आपके मन में दया भाव उपजता है। महाशिवरात्रि को दिन-रात पूजा का विधान है। चार पहर दिन में शिवालयों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने से शिव की अनंत कृपा प्राप्त होती है। साथ ही चार पहर रात्रि में वेदमंत्र संहिता, रुद्राष्टा ध्यायी पाठ ब्राह्मणों के मुख से सुनना चाहिए। सूर्योदय से पहले ही उत्तर-पूर्व में पूजन-आरती की तैयारी कर लेनी चाहिए। सूर्योदय के समय पुष्पांजलि और स्तुति कीर्तन के साथ महाशिव रात्रि का पूजन संपन्न होता है। उसके बाद दिन में ब्रह्मभोज भंडारा के द्वारा प्रसाद वितरण कर व्रत संपन्न होता है। शास्त्रों के अनुसार, शिव को महादेव इसलिए कहा गया है कि वे देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व पशु-पक्षी व समस्त वनस्पति जगत के भी स्वामी हैं। शिव का एक अर्थ कल्याणकारी भी है। शिव की अराधना से संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय और प्रेम भक्ति का संचार होने लगता है। इसीलिए, स्तुति गान कहता है- मैं आपकी अनंत शक्ति को भला क्या समझ सकता हूं। अतः हे शिव, आप जिस रूप में भी हों उसी रूप को मेरा आपको प्रणाम। शिव और शक्ति का सम्मिलित स्वरूप हमारी संस्कृति के विभिन्न आयामों का प्रदर्शक है। हमारे अधिकांश पर्व शिव-पार्वती को समर्पित हैं। शिव औघड़दानी हैं और दूसरों पर सहज कृपा करना उनका सहज स्वभाव है। ‘शिव’ शब्द का अर्थ है ‘कल्याण करने वाला’। शिव ही शंकर हैं। शिव के ‘शं’ का अर्थ है कल्याण और ‘कर’ का अर्थ है करने वाला। शिव, अद्वैत, कल्याण- ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं। शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं। ब्रह्मा जगत के जन्मादि के कारण हैं। गरुड़, स्कंद, अग्नि, शिव तथा पद्म पुराणों में महाशिवरात्रि का वर्णन मिलता है। यद्यपि सर्वत्र एक ही प्रकार की कथा नहीं है, परंतु सभी कथाओं की रूपरेखा लगभग एक समान है। सभी जगह इस पर्व के महत्व को रेखांकित किया गया है और यह बताया गया है कि इस दिन व्रत-उपवास रखकर बेलपत्र से शिव की पूजा-अर्चना की जानी चाहिए।
व्रत से क्या मिलता है फल…
हर कोई चाहता है कि वह भगवान की आराधना करे, उपवास रखे। साथ ही वह भगवान से अपनों के दुखों को दूर करने का भी वरदान मांगता है और जीवन में तरक्की की कामना करता है। हम आपको बताते हैं कि शिव की उपासना और व्रत रखने से क्या-क्या फल मिलते हैं। माना जाता है कि महाशिवरात्रि के सिद्ध मुहूर्त में शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित करवाकर स्थापित करने से व्यवसाय में वृद्धि और नौकरी में तरक्की मिलती है। शिवरात्रि के प्रदोष काल में स्फटिक शिवलिंग को शुद्ध गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान करवाकर धूप-दीप जलाकर मंत्र का जाप करने से समस्त बाधाओं का शमन होता है। बीमारी से परेशान होने पर और प्राणों की रक्षा के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। याद रहे, महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है। शिवरात्रि के दिन एक मुखी रुद्राक्ष को गंगाजल से स्नान करवाकर धूप-दीप दिखा कर तख्ते पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। शिव रूप रुद्राक्ष के सामने बैठ कर सवा लाख मंत्र जप का संकल्प लेकर जाप आरंभ करें। जप शिवरात्रि के बाद भी जारी रख सकते हैं। मंत्र इस प्रकार है- ॐ नम: शिवाय। सृष्टि से तमोगुण तक के संहारक सदाशिव की आराधना से लौकिक और परलौकिक दोनों फलों की उपलब्धता संभव है। तमोगुण की अधिकता दिन की तुलना में रात्रि में अधिक होने से भगवान शिव ने अपने लिंग के प्रादुर्भाव के लिए मध्यरात्रि को स्वीकार किया। यह रात्रि फाल्गुन कृष्ण में उनकी प्रिय तिथि चतुर्दशी में निहित है। वर्ष की तीन प्रमुख रात्रि में शिवरात्रि एक है। इस दिन व्रत करके रात्रि में पांच बार शिवजी के दर्शन-पूजन-वंदन से व्यक्ति अपने समस्त फल को सुगमता से पा सकता है। इस पर्व का महत्व सभी पुराणों में वर्णित है। इस दिन शिवलिंग पर जल अथवा दूध की धारा लगाने से भगवान की असीम कृपा सहज ही मिलती है। इनकी कृपा से कुछ भी असंभव नहीं है। ‘जय-जय शंकर, हर-हर शंकर’ का कीर्तन करना चाहिए। इस दिन सामर्थ्य के अनुसार रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए। शिवालय में दर्शन करना चाहिए। कोई विशेष कामना हो तो शिवजी को रात्रि में समान अंतर काल से पांच बार शिवार्चन और अभिषेक करना चाहिए। किसी भी प्रकार की धारा लगाते समय शिवपंचाक्षर मंत्र का जप करना चाहिए।
महाशिवरात्रि पर क्या करें भोजन?
भक्त इस बात का ख्याल रखें कि भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खाता है, वह नरक के दुखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम हो, तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं है। व्रत के व्यंजनों में सामान्य नमक के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करते हैं और लाल मिर्च की जगह काली मिर्च का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग व्रत में मूंगफली का उपयोग भी नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में आप मूंगफली को सामग्री में से हटा सकते हैं। व्रत में यदि कुछ नमकीन खाने की इच्छा हो, तो आप सिंघाड़े या कुट्टू के आटे के पकौड़े बना सकते हैं। इस व्रत में आप आलू सिंघाड़ा, दही बड़ा भी खा सकते हैं। सूखे दही बड़े भी खाने में स्वादिष्ट लगते हैं। तो, जितने आपको सूखे दही बड़े खाने हों उतने दही बड़े सूखे रख लीजिए और जितने दही में डुबाने हों दही में डुबो लीजिये। इस दिन साबूदाना भी खाया जाता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है और इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम व विटामिन सी भी होता है। इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। व्रतधारी इसका खीर अथवा खिचड़ी बना कर उपयोग कर सकते हैं। साबूदाना दो तरह के होते हैं एक बड़े और एक सामान्य आकार के। यदि आप बड़ा साबूदाना प्रयोग कर रहे हैं तो इसे एक घंटा भिगोने की बजाय लगभग आठ घंटे भिगोये रखें। छोटे आकार के साबूदाने आपस में हल्के से चिपके चिपके रहते हैं लेकिन बड़े साबूदाने का पकवान ज्यादा स्वादिष्ट होता है। यदि आप उपवास के लिए साबूदाने की खिचड़ी बनाते हुए उसमें नमक सा स्वाद पाना चाहते हैं तो उसमें सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें।
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