Hamari Sehat : क्या आपको पता है डॉक्टर के पर्चे पर नाम, डिग्री और हस्ताक्षर क्यों होता है?

डॉ.जितेंद्र सिन्हा

Ranchi : चिकित्सा करने की सबसे प्रचलित विधि को इमपिरिकल थेरेपी या अनुभव जनित चिकित्सा कहते हैं। विज्ञान के स्थापित नियमों का पालन करते हुए अनुभव के आधार पर डाक्टर मरीज के उम्र, लक्षण, उसकी प्रतिरक्षा, सम्भावित बैक्टेरिया का आकलन करते हैं।

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100% शर्तिया ईलाज,बिमारी ठीक न होने पर पैसा वापिस,डायबिटीज़ और हृदय रोग में विशेष अनुभव जैसी शब्दावली का कोई कानूनी महत्व नहीं होता है। ऐसे गारंटी को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है!

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इस अनुभव को डाक्टर एक पर्चे पर तरीके से कलमबद्ध करते (टाइपिंग नहीं)हैं। सबसे उपर मरीज का नाम, उम्र और तारीख लिखी जाती है। फिर बिमारी का नाम, उसके लक्षण और हिस्ट्री लिखा जाता है। RX लिखकर दवा का नाम,डोज और कितने दिन तक लेना है, लिखा जाता है। अन्त मे अपना हस्ताक्षर और मुहर लगा देते है।यह विश्वास का प्रतिक होता है। छपे हुए पर्चे पर पेन से चिकित्सक के हस्ताक्षर और दवाओं के नाम लिख देने के पश्चात्प उस कागज को कानूनी मान्यता (medico legal) मिल जाती है।

भारत में इमपिरिकल चिकित्सा पद्धति काफी लोकप्रिय है। उन चिकित्सकों को प्रवीण माना जाता है जो न्यूनतम एक्सरे,सीटी स्कैन और रक्त जांच कराते है। अनुभव के आधार पर मरीज को ठीक कर देना अच्छा माना जाता है। पश्चिमी देशों मे चिकित्सक को एक साधारण दवा लिखने के लिए भी रक्त जांच की कापी पर्चे में अटैच करते है।प्रमाण जोड़े बिना डाक्टर सिर्फ ओटीसी ग्रुप की लिख सकते हैं।

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अनुभव के आधार पर चिकित्सा की एक अन्य पद्धति है। इसे नीम हकीमी या झोला छाप कहते हैं।यह कोरे अनुमान आधारित होता है जिसमें विज्ञान के नियमों, सम्भावित बैक्टरीलोजी ,मरीज के प्रतिरक्षा और एंटीबायोटिक के डोज का ख्याल नहीं रखा जाता। चिकित्सक अपने अनुभव को कागज पर अंकित नहीं करते। न तो मरीज का हिस्ट्री लिखा जाता है और न ही एंटीबायोटिक का डोज । इस पद्धति में एक फिक्स ब्रोड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक को सभी प्रकार के बिमारी में समान मात्रा मे दे दि्या जाता है। ऐसा करने से या तो दवा की मात्रा अधिक (ओवरडोज) हो जाती है अथवा कम (अंडर डोज) हो जाती है। संक्रमण न होने की अवस्था में भी एंटीबायोटिक दे दी जाती है।

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नीम हकिम या झोला छाप पद्धति की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि ये एंटीबायोटिक के खिलाफ रेसिस्टेंस या सुपरबगस का निर्माण करते हैं। जिसके कारण संक्रमण रोकना कठिन होता जा रहा हैं। इस पद्धति में जुड़े लोगों को समुचित ट्रेनिंग और लाइसेंस जारी करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत सरकार पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं।

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