-सुनील चौरसिया-
डर या भय की पद्धति को ही आतंकवाद कहा जाता है, जो कि हमारे देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक विकराल समस्या बन चुकी है। आतंकवादी अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों की निर्मम हत्या करके देश को अस्थिर करना चाहते हैं। इनकी न तो कोई जाति होती और न ही कोई देश व धर्म होता है। कानूनी व्यवस्था को ताक पर रखकर देश में अराजकता फैलाना इनका मुख्य उद्देश्य होता है। यह पूरे विश्व में मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ा गंभीर खतरा बन चुका है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में जो आतंकी हमला हमारे सुरक्षा बलों के ऊपर किया गया, वह बहुत ही निंदनीय है और उसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है। इस हमले में काफी संख्या में हमारे देश के वीर सपूत शहीद हो गए। इस कारण बहुत सी माताओं की गोद उजड़ गई, कई सुहागनों का सिन्दूर उजड़ गया और बहुत से बच्चे अनाथ हो गए। इनके परिवार में दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। दु:ख की इस घड़ी में पूरा देश उनके साथ है। अब वह वक्त आ गया है कि पूरे भारतवासी एकजुट होकर आतंकवाद का नामोनिशान मिटाने के लिए संकल्पित हों और इस देश से आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने में अपना यथासंभव योगदान दें। आज जरूरत है कि देश की जनता और सरकार आपसी रंजिश को छोड़कर देशहित के बारे में सोचें और एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ जंग का ऐलान करें और आतंकवादरूपी हैवानियत को इस देश से उखाड़ फेंकें। केवल दु:ख जाहिर करने से कुछ होने वाला नहीं है, बल्कि दु:ख पैदा करने वाले कारणों को ही नष्ट करना जरूरी है। भविष्य में इस तरह की अमानवीय घटना न दोहराई जा सके, इस हेतु कड़े कदम उठाया जाना नितांत जरूरी हो गया है। देश जब विकास की ओर अग्रसर होता है, तो कुछ विदेशी ताकतें भारत के विकास से जलने लगती हैं और देश को अस्थिर करने के लिए यहां के लालची लोगों को पैसा देकर मनचाहा उपयोग करती हैं। देश के विकास को नफरत और हिंसा फैलाकर बाधित करती हैं। आतंकवाद इस देश के लिए गंभीर समस्या है और यदि इस समस्या को समाप्त नहीं किया गया तो देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। जिस आजादी को हासिल करने के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने प्राण तक न्योछावर किए थे, हम उस आजादी को आपसी द्वेष-भाव की वजह से समाप्त करके फिर से परतंत्रता की ओर लुढ़कने को आतुर हो रहे हैं। देश में कुछ गद्दार और अलगाववादी नेताओं द्वारा अपनी स्वार्थसिद्धि की पूर्ति हेतु आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये भ्रष्ट नेता कश्मीर घाटी में मासूम भोले-भाले युवकों को गुमराह करके उनके मन में दूसरे संप्रदायों के प्रति ईर्ष्या व द्वेष उत्पन्न करके आतंकवाद की राह पर ढकेल रहे हैं। इन अलगाववादी नेताओं के बच्चे विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करके आलीशान जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वहीं घाटी के गुमराह युवक मौत के सौदागरों के निर्देश पर अपनी जान पर खेलकर खौफनाक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जितने भी लोग आतंकवादी बनते हैं, वे सभी या तो बेरोजगार होते हैं या फिर कम पढ़े-लिखे होते हैं। जो लोग आतंकवाद का उद्योग चलाते हैं, वे इन बेरोजगार और अशिक्षित लोगों को बहला-फुसलाकर अपने जाल में फंसा लेते हैं। जब भी कोई युवक एक बार आतंकवादी बन जाता है, तो उनका इस आतंकवादरूपी दल-दल से निकलना मुश्किल हो जाता है। पथ से भटके युवकों को सोचना चाहिए कि यदि आतंकवाद के माध्यम से जन्नत मिलती तो सबसे पहले सफेदपोशों के बच्चे ही इस मार्ग को चुनते। आतंकवाद को दूर करने के लिए अच्छी शिक्षा की बहुत जरूरत है। अच्छी शिक्षा मिलने पर इंसान की सोच में बदलाव आएगा और वह अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को समझेगा, फलस्वरूप उसे गलत शिक्षा देकर गुमराह नहीं किया जा सकेगा। स्कूलों और कॉलेजों में भी राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करने वाली शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे कि भिन्न-भिन्न संप्रदायों के बीच प्रेम और विश्वास का वातावरण बन सके। साथ ही देश की बढ़ती हुई आर्थिक विषमता को भी समाप्त करने हेतु प्रयास किया जाना चाहिए, क्योंकि चंद पैसों के लालच में लोग गलत मार्ग की ओर अग्रसर हो जाते हैं। सरकार को आतंकवादियों के साथ भी कठोरता से पेश आते हुए करारा जवाब देना चाहिए, क्योंकि जैसे लोहे ही लोहे को काटता है, उसी प्रकार इस मौत के सौदागरों को कड़ी सजा के द्वारा ही सही मार्ग पर लाया जा सकता है। देश में आतंकवाद पैदा करने वाले तत्वों को जड़ से उखाड़ फेंकने हेतु इसमें लिप्त लोगों पर कड़े कानून का शिकंजा कसना चाहिए ताकि दुश्मन देश आतंकवाद को बढ़ावा देने की जुर्रत ही न कर सके।
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