आधुनिक समाज में बच्चों के साथ उठने वाली व्यवहारिक समस्याओं को सुलझाने में अक्सर पारंपरिक नुस्खे असफल साबित होते हैं। ऐसे में जरूरी है बाल मनोचिकित्सक की मदद लेना। एक बाल मनोचिकित्सक बालमन की अबूझ पहेलियों का पता लगा कर उसे सही दिशा में आगे बढऩे को प्रेरित करता है। एक बाल मनोचिकित्सक संबंधों में पैदा होने वाली समस्याओं, परिवार से जुड़े अवसाद के मामलों, परीक्षा संबंधी बेचैनी और पढ़ाई से जुड़ी मुश्किलों मसलन डिस्लेक्सिया के बारे में परामर्श सेवा प्रदान करता है। वह कैरियर से जुड़ा मार्गदर्शन भी देता है। वह दिन लद गए, जब बच्चों की देखरेख करना एक नैसर्गिक गुण माना जाता था। बहुमुखी सामाजिक ताने-बाने को देखते हुए आज के समय में बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए निरंतर ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। यदि बच्चे और अभिभावकों के बीच पीढिय़ों का अंतर पैदा हो जाता है तो मुश्किलों का सिर उठाना लाजिमी है। कई बार काउंसलर्स को बच्चे की समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए अभिभावकों के बारे में जानकारी तक जुटानी पड़ती है। बच्चों की काउंसलिंग एक उभरता हुआ और विशाल क्षेत्र है, जो नियमित शिक्षा को सहज और पूरक बनाने में मदद कर सकता है। काउंसलरों में बच्चों और उनके अभिभावकों की बात को सहजता से सुनने और उनमें संतुलन बनाने की योग्यता होनी चाहिए। दूरदर्शिता और संवेदनशीलता इनके प्रमुख गुण होते हैं।
पारिश्रमिक:- साइकोलॉजी में एमए डिग्री और गाइडेंस तथा काउंसलिंग में पीजी डिप्लोमा वाले स्कूल में कार्यरत एक सीनियर काउंसलर को 17,000 प्रतिमाह तक वेतन मिल सकता है। तीन साल के अनुभवी व्यक्ति को 25 से 30 हजार प्रतिमाह के बीच वेतन मिल जाता है। किसी निजी अस्पताल में एम. फिल डिग्री वाले एक फ्रेश क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट को 30 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन मिल सकता है। बहरहाल, अनुभव और दक्षता के आधार पर आय 1.5 लाख रुपये प्रतिमाह से ज्यादा भी हासिल की जा सकती है।
दक्षता:-
-इच्छुक व्यक्ति एक बेहतर श्रोता हो
-आंतरिक गुण हों और समभाव बनाने में सक्षम हो
-खुले दिमाग वाला हो तथा बच्चों के साथ तालमेल बैठाने में सक्षम हो
-संवेदनशील और अनुचित दखल देने वाला न हो
कैसे हासिल करें लक्ष्य:- कक्षा 12 में किसी भी विषय को लेकर ग्रेजुएशन में साइकोलॉजी ली जा सकती है, लेकिन साइकोलॉजी के साथ साइंस लेना बेहतर होगा। इसके बाद आप साइकोलॉजी में पीजी कर सकते हैं। बेहतर कैरियर के लिए आप एमफिल/पीएचडी भी कर सकते हैं। हालांकि भारत में खुद के सघन विश्लेषण को लेकर प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं कराया जाता, लेकिन जरूरी है कि अपनी काउंसलिंग और साइकोथेरेपी परीक्षण करवा लें। इससे अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
संस्थान:-
दिल्ली विश्वविद्यालय
इंदिरा गंधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
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