(व्यंग्य) धरती पर एक दिन

-शशिकांत सिंह शशि-

महीने की पहली तारीख थी। वेतन मिलने में अभी दो-चार दिन लग सकते थे अतः भक्त सच्चे मन से भगवान को याद कर रहा था। उसे मालूम था कि कल सुबह से ही नाना प्रकार के जीव उस पर हमला बोल देंगे जिनसे बचने के लिए उसे भगवान की सख्त जरूरत होग। अतः पंचम सुर में भजन गा रहा था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हो गये। आते ही भगवान ने भक्त को समझाया, -सत्यं वद्! धर्मं चर्! कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन्!
भक्त ने प्रवचन के लिए नहीं सहायता के लिए पुकारा था। उसने प्रतिवाद किया, प्रभु! प्रभु! सांस लीजिए। पहले मेरी अर्जी तो सुन लीजिए। कल एक तारीख है। वेतन यदि कल ही मिल जाए तो आपका ही चमत्कार होगा। नहीं मिला तो यह नियम किसी काम नहीं आएंगे। मकान मालिक दरवाजे पर ताला लगा देगा। युग बदल गया है प्रभु। आप जिस युग के नियम बता रहे हैं, वह युग बहुत पीछे छूट गया। आज जिंदगी को धर्म नहीं अर्थ धारण करता है। जीवन खुद ही तय करता है कि उसे कैसे कटना है।
-यह निरा भ्रम है। धर्म और अर्थ सनातन बहस के विशय हैं। प्रत्येक युग में एसे प्रतिवाद होते रहे हैं। अर्थ और धर्म का संघर्श प्रत्येक युग में होता रहा है। परंतु धर्मपरायण भक्त सदैव धर्म के अनुगामी होते आये हैं।
-मैं नहीं मानता। आप मेरी जगह एक दिन धरती पर रहकर देखिये। आपको युग के अंतर समझ में आ जायेंगे।
भगवान मुस्कराये और चुनौती कबूल कर ली। उन्होंने सोचा अपनी बनाई हुई दुनिया है। एक दिन में अधिक से अधिक क्या होगा। अभी सोच ही रहे थे कि भक्त ने एक शर्त रखी-
-साधारण आदमी की तरह रहना होगा कोई चमत्कार नहीं करेंगे आप।
भगवान ने यह बात भी मान ली। भगवान ने भक्त की जगह ले ली। भक्त भगवान की जगह स्वर्ग में एक दिन के लिए चला गया। भगवान उसके बिस्तर पर सो गये। अभी सोये हुये एक घंटा भी नहीं बीता था कि खटमलों ने हमला कर दिया। आदमी को धोखा दिया जा सकता है, खटमलों को नहीं। आखिर,उनके साथ खून का रिश्ता रहता है। लहू पुकारता है। दौड़े आये। स्वादिश्ट और ताजा खून मुंह लगते ही उनकी भूख और भड़क गई। भक्त के शरीर में तो खून था नहीं बेचारे मन मार कर गुजारा कर लेते थे मगर ऐसा अद्भतु खून पीकर खटमल भी धन्य हो गये। भगवान को आदत थी नरम बिस्तर पर सोने की; जहां भृत्य पंखा झलते रहते; इत्र की भीनी-भीनी खुशबू व्याप्त रहती, और कहां यह खटमलों का भीशण हमला। बौखला गये। उठ बैठे। ताली बजाई कि नौकर दौड़े आयेंगे। फिर उन्हें शर्त्त याद आ गये। चुपचाप बिस्तर से उतर कर बाहर बालकोनी में आ गये। वहां पहले से एक आवारा कुत्ता आराम कर रहा था। कुत्ता पहले तो गुर्राया लेकिन यह सोच कर कि यही इस घर का स्वामी है और वह खुद एक शरणार्थी है, चुप हो गया। भगवान और ज्यादा परेशान हो गये। वहीं खड़े अपनी अंधेरी दुनिया को देखते रहे। रात वहीं कट गई।
सुबह होते ही उन्हें स्वादिश्ट और सुगंधित पेय पदार्थो की आदत थी। रसोई में गये तो वहां कुछ भी नहीं। दूध को रात में उबाला नहीं गया था इसलिए वह फट चुका था। कुछ देर सोचते रहे फिर काली चाय बनाने का इरादा बनाया। चीनी, चायपत्ती ढूंढते रहे। बमुश्किल से ये पदार्थ मिले तो उन्हें उबाल कर काली चाय बनाई। लेकर अभी बिस्तर पर पीने के लिए बैठे ही थे कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। अखबार वाला था।
-साहब, बिल का भुगतान आज कर देते तो अच्छा था। मालिक दस बातें रोज सुनाता है। उसने हमारी तन्खाह भी अभी तक नहीं दी है,कहता है, जब तक सारे गा्रहकों से पैसे वसूल केनहीं लाओगे वेतन नहीं मिलेगा। एक आपके यहां बकाया है और दूसरा अग्रवाल साहब के यहां। उन्होंने तो आज देने का वादा किया है। आप भी दे देते तो …।
भगवान के होश फ़ाख्ता। यह क्या माज़रा है ? रुपये मांग रहा है। कहां से आयेंगे ? घर में इधर-उधर देखने पर कुछ मिला भी नहीं। क्या जवाब देते ? सिर झुका कर बोले-
-आप कल आइये। मैं कोई जुगाड़ कर के रखता हूं।
-क्या साहब! नहीं दे सकते तो रोज कल क्यों कहते हैं ? एक बार दस दिनों का समय ले लीजिये। एक और सलाह दूं। अच्छा तो यह होगा कि आप अखबार लेना ही बंद कर दीजिये। अपना समाचार जब ठीक नहीं चल रहा हो तो देश के समाचार में दिलचस्पी लेना ठीक नहीं है।
भगवान चुप हो गये। अखबार वाला चला गया। अचानक, भगवान को ख्याल आया कि कल पैसे कहां से देंगे ? यदि नहीं दे पाये तो…. असत्य भाशण होगा।
अधिक चिंतन का समय नहीं था। काम पर भी जाना था। उन्हें मालूम था कि भक्त एक पब्ल्कि स्कूल में पढ़ाता है। सनलाइट पब्लिक स्कूल। जल्दी तैयार हो जाना चाहिए। ब्रश करने गये तो टूथपेस्ट की हालत ऐसी थी मानों उस पर रोज रोलर चलता हो। उन्होंने भी कोशिश की। उसे आगे-पीछे से दबाते रहे। थोड़ी देर में पेस्ट निकला। भगवान को जबरदस्त खुशी हुई। मुंह धोकर, एक बार नहाने पर विचार किया मगर समय की कमी को देखते हुये किचन में घूस गये। वहां किसी तरह दो चपातियां बना कर, रात की सब्जी से निगलकर भागे। देर हो रही था।
स्कूल की बस आकर चली गई थी। भगवान को अब सीटी बस से जाना था। बस स्टॉप पर जाकर इंतजार करने लगे। देखते ही देखते, वहां खासी भीड़ हो गई। जिसे देखो वहंी सीटी बस का इंतजार कर रहा था। सबके हाथ में टिफिन और थैला। थैला इसलिए कि आते समय मंडी से सब्जी लेते आयेंगे। भगवान को अफसोस हुआ कि उनके दिमाग में यह बात पहले क्यों नहीं आई ? अभी सोच ही रहे थे कि बस आ गई। सब लोग अचानक दौड़ पड़े। भूकंप का सा दृश्य था। महिलायें आगे जा रही थीं। उन्हें पीछे धकेल कर एक बुजुर्गवार आगे निकल गये। तभी पीछे से एक नौजवान तीव्र गति से चलायमान हुआ और बस का हत्था पकड़कर विजयी भाव से मुस्काराया मगर उसकी मुस्कराहट क्शणिक सिद्ध हुई क्योंकि कंडक्टर के एक ही धक्के से वह बेचारा धराशायी होते-होते बचा –
-लेडिज सवारियों को आगे आने दो, पहलवान।
पहलवान का खिताब धारण किये नौजवान ने वहीं से अपनी मातृभाशा में श्लोकपाठ करना शुरू किया जिसे कंडक्टर अभ्यास के कारण नहीं सुन रहा था। भगवान सुन रहे थे। उन्हें घोर निराशा हो रही थी कि मानव कितने पतित होते जा रहे हैं। पतन पर चिंतन कर ही रहे थे कि कंडक्टर ने ललकारा –
-वो बाउजी! चलेंगे या यूं ही सपने देखेंगे। भाग के आओ।
कहने के साथ ही कंडक्टर ने अपनी तुरही बजा दी। जिसका स्वर सुनकर ड्राइवर ने बिना आगा-पीछा देखे गाड़ी को गियर मंें डाल दिया। स्ट्राट तो वह निरंतर रहती ही थी। भगवान का एक पांव पायदान पर और एक हवा में था। बस चल पड़ी तो उन्हें पीछे की ओर झटका लगा। दूसरा पांव भी आसमान की ओर चलायमान होने लगा। गिर ही पड़ते लेकिन कंडक्टर ने स्ंाभाल लिया। बोला –
-बाउजी! दूसरी बस से गिरना। हमारी नौकरी पर लात मर मारो। लपक के ऊपर आओ। घूस जाओ। गेट बंद करना है। चढ़ो। शाबाश। जोर लगाओ। धंसो। वाह..ह .. वाह।
भगवान के मुंह में भी वहीं शब्द आना चाहते थे जो उस पहलवान के मुंह में आ रहे थे। एक तो बिना सोचे समझे बस को भगा दिया। ऊपर से कटाक्श कर रहा है। यदि गिर जाते तो ? अधम हैं नीच है। खचाखच भरी हुई बस है। इसमें कहता है-धंसो। यह तो अनीति है;
अन्याय है; अत्याचार है। अभी भगवान सोच ही रहे थे कि बस दूसरे स्टॉप पर जा रुकी। बस में एकबार फिर तूफान आ गया। नीचे वाले ऊपर आने लगे। ऊपर वाले आगे जाना चाहते थे मगर आगे वाले अंगद की तरह पांव जमाये खड़े थे। संदेह की कोई गुंजाइशनहीं थी कि अंगद का जन्म इसी देश में हुआ होगा। भगवान को एक जबरदस्त धक्का लगा। दो फीट आगे एक महिला खड़ी थी उससे जा टकराये। उन्होंने सोचा कि आज वह होगा जो किसी युग में नहीं होगा। मगर आश्चर्य उस महिला ने केवल देखा और बोली कुछ नहीं। तभी पीछे से आवाज आई।
-भाईजान! खाला के दीदार बाद में कर लेना। आगे कूच करो।
भगवान को यह बात बुरी लगी लेकिन जब तक यह देखते कि कहने वाला कौन था तीन फीट आगे जा चुके थे। पहले धक्के से इस बार का धक्का फलदायी सिद्ध हुआ। थोड़े से सुरक्शित क्शेत्र में पहुंच गये। कंडक्टर को पांच रुपये का नोट देकर तथा उसे यह बताकर कि सनलाइट पब्लिक स्कूल के पास उतरना है। भगवान ने राहत की सांस ली। स्टॉप आने में अभी लगभग बीस मिनट की देर थी। राहत की सांस ली जा सकती थी। रेलमपेल जारी थी। तभी कंडक्टर चिल्लाया-
-चलो भई! सनलाइट वालों। भाग के आओ। उतरो।
भगवान ने जोर आजमाइश की मगर टस से मस नहीं हो सके। आगे जोर लगा रहे थे तो न्यूटन के नियम के मुताबिक उतना ही जोर उनपर आगे वाला भी लगा रहा था। आगे जाने के बजाये दो कदम पीछे आ गये। अनुभव की कमी से भगवान वहीं के वहीं रह गये। तभी एक जोर का धक्का पीछे से लगा भगवान के प्राण हलक में आ गये। दो लोग उनकी आंखों के सामने और नाक के नीचे से रास्ता बना के आगे बढ़ गये। उन्हें देखकर सहज ही विश्वास हो जा रहा था कि यह अभिमन्यु का देश है। चीरते हुये दोनों गये और स्टॉप पर उतर गये। बस आगे बढ़ गई। तभी कंडक्टर चिल्लाया-
-ओ बाउजी! आपने कहां उतरना था। यहीं का नाम बता रहे थे न आप ?
-हां मगर उतर नहीं पाया। कोशिश तो की थी ….। अगले स्टॉप पर …..।
कंडक्टर ने एक जोरदार ठहाका लगाया। बोला-
– लगातार कर्म करो फल की इच्छा मत करो।
फिर उसे पता नहीं क्यो बुरा लग गया। जोर जोर से बुदबुदाने लगा। -ए सी कार की आदत है। उतरेंगे कैसे ? बेचारे रोज आपनी मर्सिडीज से घूमते है। आज गाड़ी पंचर हो गई तो बस में आ गये। लोग धीरे-धीरे हंसने लगे। भगवान ने देखा कि सच बोलने पर भी मजाक उड़ सकता है तो झेंप गये। अगले स्टॉप पर भी नजारा वहीं था। मगर इस बार उनकी मदद के लिए कंडक्टर आगे आया। उसने ललकारते हुये बाकी सवारियों के बीच से जगह बनाया और बोला-
-ओ पासे हट जाओ। कार वाले बाउजी को आने दो। नहीं तो सनलाइट तक पहुंचने में मुनलाइट हो जायेगा।
लोग हंसने तो लगे ही साथ ही यह भी जान गये कि कंडक्टर की दखल अंग्रेजी में भी है। उसके ज्ञान को सलाम कर के एक दो लोग दरवाजे तक निकल गये। कंडक्टर ने भगवान को पीछे से एक हल्का सा धक्का दिया। बेचारे बस से नीचे टपक पड़े। उनके साथ ही एक बुढि़या भी नीचे आई। बुढि़या के पांव पर एक बच्चा गिरते-गिरते बचा। उसके बाद तो मानों नदी का बांध टूट गया। हड़हड़ाते हुये लोग नीचे उतरने लगे। भगवान ने कंडक्टर को सहयोग के लिए मन ही मन धन्यवाद दिया। अब उनकी समझ में ये बात आ रही थी कि क्यों लोग बार-बार भगवान को याद करते हैं। दसअसल दिन में कम से कम दस बार तो ऐसे मौके आते ही है जब आदमी को अपने क्शणभंगूर होने का एहसास हो जाता है।
लोगों से पूछते हुये भगवान सनलाइट पब्लिक स्कूल जब तक पहुंचे। एसेंबली हो चुकी थी। उनको देखते ही रिशेप्शन पर बैठी खूबसूरत लड़की ने सूचित किया –
-सर! सर ने कहा है कि आते ही आप उनसे मिल लें। भगवान ने सोचा था। थोड़ा जल ग्रहण करेंगे। मंजिल पर पहुंच ही गये हैं तो थोड़ा सुस्ताने में हर्ज नहीं है। मगर यहां तो आते ही एक नया फरमान सामने आ गया। यह सर पता नहीं कौन है। उसे इतनी भी समझ नहीं है कि आदमी जब कठिनाइयों से जूझकर पहुचता है तो उसकी आरती होनी चाहिए। उसे धूप-दीप नैवेद्य दिखाया जाना चाहिए। यहां तो आते ही मिलने का आदेश। उनको सोचते देखकर खूबसूरत लड़की मुस्कराई-
-जाइये, प्रिंसपल ने बुलाया है।
-कहां ?
-कमाल है। प्रिंसपल ऑफिस में और कहां ?
असमंजश में भगवान उस दिशा में प्रस्थान कर गये जिस दिशा में कन्या ने इशारा किया था। आखिर एक ऑफिस मिल ही गया जिसके आगे नेमप्लेट लगा था। भगवान उसमें घूस गये। वहां प्रिंसपल किसी मास्टर को मिजाज से डांट रहे थे। तभी भगवान को बिना इजाजत के अंदर आते देखकर भड़क गये –
-शर्मा, अब इतनी भी तमीज नहीं बची कि पूछ कर अंदर आओ।
-पूछ कर ही अंदर आया हूं श्रीमान। बाहर जो कन्या बैठी है। उसी के आदेश से अंदर आया हूं।
-यू इडियट। गेट आउट।
-अर्थात ?
-बाहर भाग जाओ बेवकूफ। एक तो लेट आया, ऊपर से मुर्खों की तरह बोल रहा है।
भगवान घबराये। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उनसे गलती कहां हो गई ? यह आदमी चाहता क्या है ? पहले तो इसके ही कहने पर बल्कि बुलाने पर अंदर आये। अब कहता है कि बाहर भाग जाओ। अशिश्ट और कटुभाशी है। नासमझी की अवस्था में मुड़ गये। अभी मुड़े ही थे कि फिर आवाज आई –
-रुको। यह समय है स्कूल आने का। समय से नहीं आ सकते ?
-महोदय! आप निर्णय लें कि मै बाहर की ओर गमन करूं या अंदर की ओर। रही बात समय से आने की तो आप सुनें तो मैं आपको बताऊं। मैं आज जान हथेली पर रखकर आ रहा हूं। बस से आने में जान जाते-जाते बची।
प्रिंसपल ने फिर बाहर जाने का इशारा किया। तुरंत भगवान बाहर आ गये। एक दो मास्टर उनको देखकर मुस्कराते हुये आये। सहकर्मी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हो तो खुश होने के लिए दीवाली तक का इंतजार कौन करेगा ? एक ने आते ही पूछा-
-क्यों भई, शर्मा जी क्या कह रहा था, यमदूत ? कोई बहाना सोच कर आना था, यार।
भगवान की परेशानी और बढ़ गई। ये सज्जन कौन हैं और क्या चाहते हैं ? मास्टर अभी और मजाक करते। तभी पीछे से प्रिंसपल की दहाड़ सुनाई दी-
-अपने क्लास में जाइये आप लोग। और शर्मा तुम घर जाओ। तुम्हारी तबीयत आज ठीक नहीं लगती।
भगवान चुपचाप स्कूल से बाहर आ गये। पैदल ही एक ओर को चल पड़े। अभी सुबह का सफर भूले नहीं थे इसलिए दुबारा बस पर चढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। चारा भी क्या था। कब तक भटकते ? एक बार फिर शहीदाना भाव से बस मंे चढ़े मगर इस बार ऑफिस टाइम नहीं होने के कारण भीड़ नहीं थी। सकुशल पहुंच गये। पर घर आकर सकुशल रहना कठिन दिख रहा था। मकान मालिक पहले से ही विराजमान थे। बाहर पडे़ स्टूल पर बैठे ऊंघ रहे थे।भगवान को देखकर उसके चेहरे पर अपार हर्श नाचने लगा।
-अरे! शार्मा जी आप आ गये। मैं तो सोच रहा था कि रात तक इंतजार करना पड़ेगा। क्या हुआ आज बड़ी जल्दी आ गये। तबीयत वगैरह तो ठीक है।
भगवान की समझ में नहीं आया कि यह आदमी कौन है ? हो सकता है कि शर्मा का रिश्तेदार हो। इसे भी इसी समय आना था। अब एक जगह दो आदमियों का खाना बनाना पड़ेगा। शर्मा भी कमाल का आदमी है। खुद तो ऊपर जाकर आराम से बैठा है। एक बार भी याद नहीं किया कि मेरा क्या हाल है। एक से एक अजूबे सामने आ रहे हैं। एक तो वह था कि कभी बाहर जाने के लिए कह रहा था कभी अंदर आन के लिए। एक यह है। रात तक बैठने के इरादे से आया था। मकान मालिक भी तुरंत ताड़ गया कि शर्मा उसे देखकर खुश नहीं हुआ है तो उसने अपना असली रूप दिखाया।
-शर्मा जी ऐसा ही होता है। मकान मालिक को देखकर कोई खुश नहीं होता और वह भी महीने के आखिर में। मैं तो इधर से गुजर रहा था। सोचा कि किराया भी लेता चलूं। अच्छा होगा कि आप किराया दे दें। बाद का झंझट न आपको अच्छा लगेगा न मुझे। आप तो मास्टर आदमी है।
भगवान की समझ में सारा रहस्य आ गया। तो ये बात थी इसलिए भक्त महीने के अंत में इतनी भक्ति भाव से आरती गाता है। मैं भी कहूं कि महीने भर तो वही सामान्य सा गायन और अंत में पंचम सुर में क्यों। इसे कुछ तो कहना ही होगा। एक तो आते आते दो बज गये भूख तांडव कर रहा है। अब यदि यह मनुश्य सिर पर चढ़ा रहा तो प्राण पखेड़ू उड़ ही जायेंगे। विनम्रतापूर्वक बोले-
-आप दो दिनों के बाद आने का कश्ट करें। अभी तो वेतन मिला भी नहीं है।
-नहीं-नहीं कश्ट कैसा ? आदमी जब मकान किराये पर देता है। तभी से उसका कर्त्तव्य हो जाता है कि वह किराये के लिए चक्कर काटे। इसलिए यह तो मेरा फर्ज है। आप जब चाहें किराया दें। हमें आना ही पड़ेगा। जय श्रीराम। चलते हैं।
भगवान कट कर रह गये। उन्हें भी नहीं पता था कि दो दिनों के बाद वेतन मिलता है या दस दिनों के बाद लेकिन अभी तो गला छुड़ाना जरूरी था। मकान मालिक के जाने के बाद ताला खोलकर अंदर गये। कुछ खाने के लिए तो बनाना ही पड़ेगा।
किचन तो कंगाल की जेब की तरह खाली था। भगवान को काटो तो खून नहीं। अच्छा बदला ले रहा है। न चावल न आटा। सब्जी के नाम पर दो आलू पड़े थे। चार प्याज उधर किनारे मंें पड़े थे। इनको अगर उबाल भी लिया जाये तो प्रेम से भोग नहीं लगेगा। एक बार तो उनके मन में आया कि अपनी शक्तियों से छप्पन किस्म के व्यंजन मंगा लें लेकिन शर्त्त के कारण मजबूर थे। थैला उठाकर बनिये की दुकान की ओर चल पड़े। आते समय ही वह दुकान उन्हें रास्तें में दिखी थी। आते-आते बिस्तर के नीचे से पचास का नोट उठाना नहीं भूले।
उन्हें खुशी हुई कि यह नोट सुबह नहीं मिला अन्यथा अखबार वाला ले जाता। दुकान पर पहुंचे तो बनिया देश के चिंतन में व्यस्त था। उसे इस बात की चिंता खाये जा रही थी कि संसद में लोकापाल बिल इस सत्र भी आयेगा या नहीं। भगवान जाकर खड़े हो गये। एक दो ग्राहक और खड़े थे। मगर बनिये का ध्यान इधर नहीं आ रहा था। वह सामने खड़े एक रोबदार सज्जन के साथ विमर्श कर रहा था। दोनों लोग राश्ट्रचिंतन में व्यस्त था। भगवान ने देखा कि कथा अनंत है तो बेसब्री से बोले-
-श्रीमान! एक किला चावल और एक किला आटा देने की कृपा करें।
-उधार ?
-नहीं, धन लाया हूं।
-अच्छा!! क्या बात है शर्मा जी। वेतन मिला है क्या ? जब पैसे लेकर आये हैं तो इतने गरीबकी तरह क्यों मांग रहे हैं। यही तो इस देश की समस्या है। आम आदमी अपनी क्शमता से वाकिफ ही नहीं है। वह संघर्श कर……………….।
-जी मैं ज़रा जल्दी बाजी में हूं। आप……….।
-जल्दीबाजी में तो प्रभु मैं भी रहता हूं मगर आप सुनते ही नहीं हैं। दो महीने के उधारी तो आज तक नहीं चुकाया। आज कैसे जल्दी बाजी में हो। हिसाब करने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न।
-नहीं वेतन अभी नहीं मिला है। आपको थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा।
-हां, हमारा जन्म तो इंतजार करने के लिए ही हुआ है। आप कभी इंतजार नहीं कर सकते आपको भी अभी इंतजार करना पड़ेगा। केवल पेट से मतलब है देश से तो कोई लेना देना नहीं है। न बच्चों को ठीक से पढ़ाते हैं न कभी चिंतन-मनन में हिस्सा लेते हैं। जब देखो तब जल्दीबाजी है। दूसरों का तो कोई ख्याल है नहीं।
बुदबुदाते हुये बनिये ने आटा-चावल तौला और भगवान जल्द से घर पहुंचे। पहली बार उन्हें आटा-दाल के भाव मालूम हुये। आज तक तो अमीर परिवारों में अवतार हुआ कभी नौबत ही नहीं आई बाजार जाने की। अपनी शक्तियों से एक दो दानव मार लिए। यहां तो दुश्मन कहीं नहीं है मगर शरीर को खाये जा रहा है। चमत्कार यदि कर भी सकते तो अधिक दिनों तक नहं। खैर, यह तो बाद की बात थी। फिलहाल तो, खिचड़ी गैस पर चढ़ाकर बैठ गये। सीटी देने का बेसब्री से इंतजार करने लगे। एक सीटी लगी भी मगर उसके बाद खामोशी पसर गई। भगवान ने जाकर देखा तो गैस खत्म हो चुका था। अब क्या हो सकता है ? शाम के पांच बजे हैं। सुबह से दो रोटी के सिवा कुछ पेट में नहीं गया ंआसन पर बैठकर मुस्कराना हो और भंडार भरा हो तो भूख नहीं लगती मगर सुबह से बस में धक्के खा चुकने के कारण अंतडि़यां किर्तन कर रही थीं। झल्ला गये। कमाल का आदमी है। सब कुछ खत्म करके रखता है। जानबूझकर उसने हमें फंसाया है। जल्दी से रात हो, स्वर्ग से आये, तो जाने का मौका मिले। कुकर खोल कर उन्होंने देखा अधपकी खिचड़ी थी। उसे प्याज के साथ निगल कर,पानी पिया और मुंह लटका कर बैठ गये। रात होने का इंतजार करने लगे।
रात के बारह बजे। भक्त मुस्कराता हुआ प्रकट हुआ। भगवान बेचारे उसी बेसब्री के साथ भक्त का इंतजार कर रहे थे जिस बेसब्री के साथ वह किया करता था। आते ही बोला-
-कैसे हैं प्रभु ? आपको धरती पर कोई कश्ट तो नहीं हुआ ?
-अच्छा तो तुम जले पर नमक छिड़क रहे हो ? यहंा जान जाने पर लगी है। भूख से प्राण निकले जा रहे हैं और तुम मजाक कर रहे हो।
-नहीं प्रभु हम कौन होते हैं। आपसे मजाक करने वाले ? आप तो स्वयं नियंता हैं। सर्वशक्ति मान है। बताइये धरती कैसी लगी ? यह युग कैसा लगा ? एक बार गरीब परिवार में भी अवतार लीजिये।
-वत्स! विमर्श कालांतर में, सर्वप्रथम तो मुझे स्वर्ग पहंुचकर स्वादिश्ट व्यंजनों का भोग लगाने दो। प्राण घट तक आ गये हैं। किसी भी क्शण प्रस्थान कर कर सकते हैं।

This post has already been read 171963 times!

Sharing this

Related posts