सियाराम पांडेय ‘शांत’
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर विपक्ष का दबाव निरंतर बढ़ रहा है। प्रयागराज जाने से सपा प्रमुख अखिलेश यादव को रोकने से सपा कार्यकर्ता ही नहीं, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि भी नाराज हैं। सपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी तो प्रदेश भर में हंगामा और प्रदर्शन कर ही रहे हैं। इस आंदोलन में विधायक और विधान परिषद सदस्य भी शामिल हो गए हैं। विधान सभा और विधान परिषद में हंगामा इसका प्रमाण है। अखिलेश यादव को प्रयागराज न जाने देने का असर संसद पर भी देखा गया। विपक्ष ने जिस तरह लोकसभा और राज्य सभा में सपा प्रमुख का समर्थन किया, और संसद के दोनों ही सदनों में हंगामा किया, उससे सहज ही समझा जा सकता है कि सत्तारूढ़ दल को हटाने को लेकर विपक्ष कितना उतावला है। एक ओर तो अखिलेश यादव का विपक्ष समर्थन कर रहा है, उन्हें प्रयागराज जाने से रोकने देने की आलोचना कर रहा है, वहीं दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम की सराहना कर दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि हम चाहते हैं कि आप फिर प्रधानमंत्री बनें। मुलायम सिंह यादव का यह बयान अखिलेश यादव और राम गोपाल यादव की विचारधारा के ठीक विपरीत है। मुलायम सिंह यादव जमीनी नेता हैं। वे हवा का रुख जानते हैं। उन्हें यह भी पता है कि हवा के विपरीत चलने में कठिनाई ही कठिनाई है। अभी तो मुलायम परिवार के भ्रष्टाचार का अध्याय खुला नहीं है। जिस दिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार बनी थी, तब भी मुलायम सिंह यादव ने मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कान में कुछ कहा था। क्या कहा था, इस पर राजनीतिज्ञ और मीडियाकर्मी आज तक मंथन कर रहे हैं। अखिलेश ने 2018 में एक बार इस पर हल्की रोशनी भी डाली थी कि नेताजी ने मोदी के कान में कहा था कि मेरे बेटे से बचकर रहना। इससे पहले उन्होंने जो शब्द इस्तेमाल किया था, उस पर प्रकाश डालना न तो शालीन है और न ही प्रासंगिक। मुलायम सिंह यादव की प्रधानमंत्री से जब भी मुलाकात होती है, वे उनसे कुछ कहते हैं। क्या कहते हैं, उसे या तो नरेंद्र मोदी जानते हैं या फिर मुलायम सिंह यादव। इसमें संदेह ही नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार या योगी सरकार ने अभी तक किसी भी राजनीतिक दल को सीधे टारगेट नहीं किया है। सीबीआई और आयकर के छापे किसी भी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष या उसके परिजन के यहां नहीं पड़े हैं। जो भी छापे पड़े हैं वे उनके करीबी अधिकारियों के यहां पड़े हैं। खनन मामले में आईएएस अधिकारी शशिकला के ठीकानों पर छापे पड़ने से अखिलेश यादव की बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया शिद्दत से देखी गई। उन्होंने सरकार पर राजनीतिक बदले की भावना के तहत काम करने का आरोप लगाया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव के बाद पहले से ही छात्र गुटों के बीच तनाव का माहौल था। ऐसे में अखिलेश यादव का वहां जाना तनाव को और बढ़ा सकता था। प्रयागराज जिला प्रशासन का इस बावत आग्रह भी था। अखिलेश यादव को रात में ही प्रयागराज भेजे जाने का पत्र अधिकारी सौंप आए थे। उनके निजी सचिव गंगाराम ने उसे रिसीव भी किया था। अखिलेश यादव इसे अपने आवास की रेकी बता रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके व्यक्ति से इस तरह के बयान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। रही बात अखिलेश यादव के प्रयागराज जाने की तो उन्हें पहले भी कुंभ के दौरान प्रयागराज जाने से रोका नहीं गया था। उन्होंने त्रिवेणी संगम में डुबकी भी लगाई थी और अखाड़ों में जाकर संतों का आशीर्वाद भी लिया था। एक अखाड़े में बैठकर ही उन्होंने अपनी प्रेस वार्ता भी की थी। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि इस बात से नाराज हैं कि अखिलेश यादव को उनके कार्यक्रम में जाने नहीं दिया गया। साधु-संतों के दर्शन से उन्हें वंचित कर दिया गया। ऐसा था तो अखिलेश यादव एयरपोर्ट पर अधिकारियों को लिखित या मौखिक तौर पर आश्वस्त कर सकते थे कि वे केवल बाघंबरी गद्दी के कार्यक्रम में ही भाग लेंगे। वे ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि बाघंबरी गद्दी के कार्यक्रम में जाकर उन्हें वह लाभ नहीं मिलता जो उन्हें इस रूप में मिला। प्रदेश भर में जिस तरह सपाइयों ने तोड़-फोड़ और हंगामा किया,उसे बहुत हल्के में नहीं लिया जा सकता। पुलिसकर्मियों के साथ भी हाथापाई और मारपीट की गई। इसके बावजूद, अखिलेश यादव और उनके पार्टी जन इसे बदले की कार्रवाई कह सकते हैं। कुछ लोग कह रहे थे कि चार साल पहले जैसा अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के साथ किया था, कुछ वैसा ही आदित्यनाथ ने उनके साथ किया है लेकिन इस तरह के वैचारिक झंझावातों में फंसने की बजाय इसे विधि व्यवस्था की रोशनी में देखना ज्यादा मुफीद होगा। संत समाज को यह भी समझना होगा कि योगी आदित्यनाथ बिल्कुल भी गलत नहीं हैं। उनकी इस बात में दम है कि कुंभ मेले में रोज 15 लाख श्रद्धालु आ रहे हैं। अगर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अखिलेश यादव के पहुंचने से तनाव बढ़ता तो इसका प्रभाव कुंभ मेले में पड़ता और इसका गलत संदेश देश-दुनिया में जाता। अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं कि योगी जैसी राह दिखा रहे हैं, उस पर उन्हें भी चलना होगा। यह एक तरह से सीधी धमकी है। अखिलेश यादव को पता होना चाहिए कि उनके उत्पीड़न से त्रस्त योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में लगभग रोते हुए अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। अगर उनका इरादा बदला लेने का होता तो इस तरह की धमकी देने के लिए वे आजाद नहीं होते। भ्रष्टाचार के आरोपों में उन पर कब का शिकंजा कस चुका होता। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने बैठे ठाले प्रदेश को हंगामे और हिंसा से जूझने के लिए विवश कर दिया है। कानून व्यवस्था के नाम पर किसी नेता को किसी शहर में जाने से रोकना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, जिसे वे और भाजपा विरोधी दल बतंगड़ बना रहे हैं। अखिलेश यादव को प्रशासन ने पहले ही बता दिया था तो उन्हें एयरपोर्ट तक जाना ही नहीं चाहिए। फिर भी पब्लिसिटी के लिए कुछ तो करना ही था सो उन्होंने किया। इससे विधि व्यवस्था ध्वस्त हो, लोगों को परेशानी हो तो उन्हें क्या? उनका तो काम हो गया। अच्छा तो यह होता कि विपक्ष सरकार को सकारात्मक सहयोग करता और सरकार पर विकास के लिए दबाव बनाता। इससे प्रदेश का विकास भी होता और जनता के दिलो- दिमाग में उसके लिए जगह भी तैयार होती।
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