कई बार प्रतिभाशाली होने के बावजूद छात्रों को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल पाता। ऐसे छात्रों के लिए बीएससी पॉलीमर साइंस एक अच्छा विकल्प हो सकता है। आज की जिंदगी में प्लास्टिक कुछ इस तरह रचा-बसा है कि उसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यदि हम आसपास नजर डालें तो कम से कम दस में से आठ चीजें प्लास्टिक निर्मित मिलेंगी।
प्लास्टिक, फाइबर और रबर:- तीनों ही किसी न किसी रूप में एक ही फैमिली से हैं और इन सभी का निर्माण पॉलीमर की मदद से होता है। प्लास्टिक-पॉलीमर उत्पादों की लिस्ट काफी लंबी है। पॉलिमर कपड़े, रेडियो, टीवी, सीडी, टायर, पेंट, दरवाजे और चिपकाने वाले पदार्थ इसी उद्योग की देन हैं। अकेले ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में 75 प्रतिशत पाट्र्स इसी उद्योग की मदद से बनाए जाते हैं। इतना ही नहीं, हवाई जहाज में भी प्लास्टिक का ही परिमार्जित रूप इस्तेमाल होता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो प्लास्टिक की खपत के मामले में चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर है। प्लास्टिक इंडस्ट्री में भारत का प्रतिवर्ष 4,000 करोड़ रुपए का कारोबार है। अकेले पैकेजिंग इंडस्ट्री में ही बड़ी तादाद में प्लास्टिक का उपयोग होता है। इसमें हर साल 30 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। दुनिया में हर एक व्यक्ति औसतन साल में 30 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है, जबकि भारत में यह आंकड़ा फिलहाल चार किलो ग्राम प्रतिवर्ष ही है। लेकिन जिस किस्म की पैकेजिंग जागरूकता भारत में भी बढ़ रही है, आने वाले दिनों में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत का औसत कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।
ये है कोर्स: इसकी इसी व्यापकता को देखते हुए कई तरह के कोर्स की शुरुआत हुई है। हालांकि ये कोर्स अभी कुछ चुनिंदा संस्थानों में ही उपलब्ध हैं। कई बार प्रतिभाशाली होने के बावजूद छात्रों को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल पाता। ऐसे छात्रों के लिए बीएससी पॉलीमर साइंस एक अच्छा विकल्प हो सकता है। कोर्स के बाद छात्र आगे एमएससी या एमटेक कर सकते हैं। अगर नौकरी करना चाहें तो उसके लिए भी काफी बेहतर अवसर हैं यानी आप आईओसी, ओएनजीसी जैसे सरकारी संस्थानों में भी अच्छी नौकरियां पा सकते हैं। बीएससी पॉलीमर साइंस अवसरों की दृष्टि से उपयोगी कोर्स माना जा रहा है। पॉलीमर और प्लास्टिक के क्षेत्र में डिप्लोमा, बीएससी, एमएससी और इंजीनियरिंग कोर्स उपलब्ध हैं। डिप्लोमा कोर्स के लिए अपने राज्य में स्थित पॉलीटेक्निक संस्थानों से संपर्क कर सकते हैं।
इंजीनियरिंग कोर्स में बीई (पॉलीमर साइंस), बीटेक (प्लास्टिक एंड पॉलीमर), बीटेक (प्लास्टिक एंड रबर) हैं, जबकि स्नातकोत्तर स्तर पर एमटेक के लिए प्लास्टिक-पॉलीमर कोर्स हैं। इसके अलावा, केमिकल पॉलीमर, बीएससी पॉलीमर साइंस, एमएससी पॉलीमर, केमेस्ट्री कोर्स भी देश के कुछ संस्थानों में पढ़ाए जाते हैं। बीई, बीटेक, बीएससी और बीकॉम कोर्स के लिए 102 पीसीएम विषयों में 50 प्रतिशत अंकों में पास छात्र आवेदन कर सकते हैं। इसमें बीएससी को छोड़ कर तीनों कोर्स चार वर्ष की अवधि के हैं। कुछ संस्थानों में जैसे आईआईटी दिल्ली, मुंबई यूनिवर्सिटी में एम.टेक डेढ़ वर्ष की अवधि का है। इसमें केवल संबंधित ब्रांच में बीई और बीटेक पास छात्रों को ही दाखिला मिल सकता है। मद्रास यूनिवर्सिटी में पांच वर्षीय एमएससी इंटीग्रेटेड कोर्स में 102 पीसीएम छात्रों को प्रवेश मिल सकता है। एमएससी कोर्स में प्रवेश के लिए इंडस्ट्रियल, केमिकल या केमेस्ट्री ऑनर्स के अलावा वे छात्र भी आवेदन कर सकते हैं, जिन्होंने बीएससी में केमेस्ट्री को एक विषय के रूप में पढ़ा है।
प्रमुख संस्थान:-
दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नई दिल्ली कोर्स- बीई (पॉलीमर साइंस), एमई (डेढ़ वर्ष का), पीएचडी।
आईआईटी, नई दिल्ली कोर्स- एमटेक,डेढ़ वर्ष।
हरकोर्ट बटलर इंस्टीट्यूट, कानपुर कोर्स- बीटेक (प्लास्टिक टेक)।
बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची कोर्स- बीई पॉलीमर।
भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ अप्लाइड साइंस, नई दिल्ली कोर्स-बीएससी ऑनर्स (पॉलीमर साइंस)
डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, मुंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई कोर्स- बीकॉम (पॉलीमर), बीएससी, एमटेक (डेढ़ वर्ष)। लक्ष्मी नारायण इंडस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी, नागपुर कोर्स- बीटेक।
संत लोंगोवाल इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, संगरूर, पंजाब कोर्स- बीई (पेपर एंड प्लास्टिक) तीन वर्ष।
इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कानपुर यूनिवर्सिटी, कानपुर कोर्स- बीटेक (प्लास्टिक), एमटेक (प्लास्टिक)।
बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झांसी कोर्स- एमएससी (इंटीग्रेटेड), एमएससी (पॉलीमर), एससी (पॉलीमर केमिस्ट्री)।
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