– ललित गर्ग –
भारत के इतिहास का यह पहला अवसर है जब उसने समूची दुनिया की महाशक्तियों को एकसाथ एक मंच पर एकत्र कर अपनी उभरती राजनीतिक छवि की धाक एवं धमक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उजागर की है। निश्चित ही हर भारतीय के लिये यह देखना दिलचस्प ही नहीं सुखद बना कि चुनौती बना जी-20 का यह दो दिवसीय शिखर सम्मेलन एक उपलब्धि एवं नये भारत के अभ्युदय में तब्दील हो गया। पहले ही दिन जिस तरह सभी सदस्य देशों के बीच सहमति बनाने और साझा घोषणा पत्र जारी करने में सक्षम हुआ, वह उसके राजनीतिक परिपक्वता एवं कूटनीतिक कौशल का कमाल ही है। साझा घोषणा पत्र पर सहमति कायम होना इसलिए भारतीय नेतृत्व की एक बड़ी जीत है, क्योंकि इसकी आशंका थी कि यूक्रेन युद्ध के कारण साझा घोषणा पत्र तैयार होना कठिन होगा। निःसंदेह महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि भारत साझा घोषणा पत्र जारी कराने में सफल हुआ, बल्कि यह भी है कि इसके माध्यम से वह बड़े देशों को यह संदेश देने में सक्षम हुआ कि टिकाऊ, संतुलित एवं समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़ना समय की मांग है। विश्व स्तर पर उभरती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख का ही यह परिणाम है। यह शिखर सम्मेलन भारत की विश्व प्रतिष्ठा का एक दुर्लभ अवसर बनकर प्रस्तुत हुआ है। एक अविस्मरणीय, ऐतिहासिक, सफल एवं सार्थक आयोजन के रूप में भारत को समूची दुनिया सुदीर्घ काल तक याद करेंगी एवं भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिये भारत का चयन करते हुए एवं जिम्मेदारी देते हुए कोई हिचक नहीं होगी। निश्चित ही इस सम्मेलन की अनेक शिखर उपलब्धियां एवं अमिट आलेख सृजित हुए है, यूं लगता है मोदी विश्व-दर्शन एवं विश्व एकता के पुरोधा बनकर प्रस्तुत हुए, उनका अथ से इति तक का पूरा जी-20 अध्यक्षीय सफर पुरुषार्थ की प्रेरणा बना। विश्व के नव-निर्माण का संकल्प बना।
जी-20 के शिखर सम्मेलन की अनेकानेक स्वर्णिम उपलब्धियों में एक बड़ी उपलब्धि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी भी पेश होना है। प्रधानमंत्री ने यह दावेदारी प्रस्तुत करते हुए कहा कि उसके स्थायी सदस्यों की संख्या वही है, जो इस संस्था के गठन के समय थी। संयुक्त राष्ट्र का गठन 51 देशों के साथ हुआ था। आज उसके सदस्यों की संख्या दो सौ के करीब पहुंच गई है, लेकिन सुरक्षा परिषद में वही के वही पांच सदस्य हैं। भारत की एक और उपलब्धि 55 देशों के संगठन अफ्रीकी संघ को जी-20 की सदस्यता दिलाकर इसे जी-21 में बदल देना भी भावी विकास और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दृष्टि से महत्वपूर्ण बना। अफ्रीकी संघ के सदस्य बनने से जी-20 में दक्षिणी देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। अभी तक वहां जी-7 देशों, यूरोपीय संघ के 25 देशों, रूस, चीन और तुर्किए को मिलाकर उत्तर का पलड़ा भारी था। अफ्रीकी देशों की सदस्यता के बाद दक्षिणी देशों की संख्या बढ़ जाएगी। वैसे चीन और रूस दोनों अफ्रीकी देशों को सदस्यता दिलाने का श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं। चीन ने पिछले दो-तीन दशकों से अफ्रीकी देशों में भारी निवेश किया है और रूस भी निवेश के साथ-साथ राजनीतिक उठापटक कराने में लगा रहता है, पर चीनी निवेश से अफ्रीकी देशों में कर्ज संकट पैदा हुआ है और रूस के भाड़े के सैनिक अफ्रीकी देशों में विद्रोह करा रहे हैं। भारत के अफ्रीका से हजारों साल पुराने व्यापारिक और सामाजिक रिश्ते हैं। भारत का स्वाधीनता आंदोलन अफ्रीकी देशों के स्वाधीनता आंदोलनों का प्रेरणास्रोत बना। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करते हुए भारत हमेशा दक्षिणी देशों की आवाज बुलंद करता आया है। इसलिए अफ्रीकी संघ को उत्तर और दक्षिण के साझा मंच जी-20 की सदस्यता दिलाने से भारत को स्वाभाविक रूप से दक्षिण की आवाज बनने में मदद मिलेगी। इस कदम से भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति मजबूत होगी एवं दक्षिणी देशों में भारत के संबंध अधिक प्रगाढ़ हो सकेंगे।
हालांकि भारत ने अगले जी-20 शिखर सम्मेलन की कमान ब्राजील के राष्ट्रपति को सौंप दी है, लेकिन अभी उसके पास नवंबर तक इस संगठन की अध्यक्षता है। नई दिल्ली घोषणा पत्र में जिन विषयों एवं मुद्दों पर सहमति बनी, अब उन पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। क्योंकि आम तौर पर विभिन्न वैश्विक मंचों पर जिन मुद्दों पर सहमति बन जाती है, उन पर अमल नहीं हो पाता। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचने के उपायों पर आम राय तो बनी, लेकिन उन पर अपेक्षित ढंग से अमल नहीं हो पा रहा है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि संयुक्त राष्ट्र में जिन विषयों पर सहमति कायम हो जाती है, उन पर भी काम नहीं हो पाता। शायद इसी कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग पर एक बार फिर बल दिया। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व नेता के रूप में विश्व चुनौतियों एवं समस्याओं को न केवल प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया बल्कि उनके समाधान के रास्ते भी बताये। भारत ने विषम परिस्थितियों में जी-20 के सदस्य देशों के बीच सहमति कायम करने का कठिन माना जाने वाला काम कर दिखाया, इसलिए विश्व में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ी और दुनिया को यह संदेश भी गया कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मामलों में उसका सहयोग लेना आवश्यक हो गया है। भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन में जैसा कूटनीतिक कौशल दिखाया और विश्व पर अपनी जैसी छाप छोड़ी, उससे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का उसका दावा और मजबूत हो गया है। इस दावे की मजबूती का एक आधार यह भी है कि भारत ने यह प्रदर्शित किया कि वह वसुधैव कुटुंबकम् की अपनी अवधारणा के तहत वास्तव में विश्व कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
रूस-यूक्रेन युद्ध एवं चीन की बढ़ती विस्तारवादी सोच के कारण बदलते वैश्विक समीकरण ने यह सवाल खड़ा कर दिया था कि इस अहम अंतरराष्ट्रीय मंच की प्रासंगिकता आगे उस रूप में बनी रह पाएगी या नहीं, जैसी अब तक रही है। ये सवाल तब और गहरे हो गए, जब पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और फिर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साफ कर दिया कि वे इस शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की दूरगामी सोच, कूटनीति एवं कौशल के कारण न केवल जी-20 की प्रासंगिकता बढ़ी है बल्कि दुनिया को एक परिवार के रूप में आकार देने के संकल्प को बल मिला है। भारत अंतरराष्ट्रीय हितों का संरक्षक बनने के साथ विश्व को दिशा देने में भी समर्थ हो रहा है। इसका परिचय प्रधानमंत्री मोदी की ओर से स्वच्छ ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन बनाने की घोषणा से मिला। इसके पहले भारत अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत कर चुका है। उसने वैश्विक हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए एक-दूसरे पर भरोसा करने और मिलकर काम करने की महत्ता को प्रभावी ढंग से रेखांकित किया।
विरोधी विचारधाराओं को एक मंच पर लाना एवं उनमें सहमति बनाना इस सम्मेलन की खास बात रही है। भारत ने असंभव को संभव कर दिखाया, खेमों में बंटी दुनिया को एक कुटुंब के रूप में जोड़ने में वह सफल रहा। इस मतलबी दुनिया में किसे इतनी फुर्सत है िक वह अपनी तुला पर किसी को तुलने दे? भला कब लगा पाते है उजालो में जीने वाले अंधेरों के जख्मों पर मरहम? लेकिन इस सम्मेलन में दो खेमों में बंटे देश मानवीयता की दृष्टि से एक होते हुए नजर आये, यह इस सम्मेलन की निश्चित ही बड़ी उपलब्धि है। कुल मिलाकर नई दिल्ली बैठक में जहां यह अंतरराष्ट्रीय मंच पहले से ज्यादा प्रासंगिक और ज्यादा मजबूत होकर उभरा, वहीं विश्व रंगमंच में भारत की भूमिका भी पहले से अधिक महत्वपूर्ण, अधिक निर्णायक साबित हुई। भारत की कूटनीतिक कौशल का कमाल ही कहा जायेगा कि भारत स्वयं को उभरती शक्ति के रूप में स्थापित कर विश्व पर गहरी छाप छोड़ गया है।
प्रेषकः
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
मो. 9811051133
This post has already been read 19198 times!