(कहानी) नेकी का हिसाब

-मुकेश शर्मा-
दोपहर के साढ़े तीन बज गये हैं। सरकारी दफ्तर में गहमा-गहमी बनी ही हुई है। सबको अपने काम की जल्दी पड़ी हुई है। साहब के कमरे के बाहर नेमप्लेट लगी है, युधिष्ठर लाल, तहसीलदार। स्टाफ के लोग और विजिटर उनके कमरे में आ-जा रहे हैं। थोड़ी देर बाद कुछ फुर्सत मिल गयी, तहसीलदार साहब ने तुरन्त रीडर को बुलवा लिया।
आज सात रजिस्ट्रियों पर साइन किये हैं मैंने… तहसीलदार साहब ने मन ही मन कुछ हिसाब लगाते हुए कहा।
यस सर, बस सर दे ही रहा हूं एक मिनट में। रीडर ने तुरन्त जेबों से लिफाफे निकाले और साहब की ओर बढ़ा दिये।
हिसाब लगा लिया था न?
हां सर, उसी हिसाब से हैं। भाईचारा एण्ड कंपनी और प्रोपर मैनेजमेंट लिमिटेड ने तो खुश होकर कुछ एक्स्ट्रा भी कर दिया है।
ओ यार, गोयल का लिफाफा कहां ले लिया, मुझसे बात कर लेते… तहसीलदार साहब असहज हो गये।
सर मैंने तो मिलने के लिए कह दिया था, लेकिन वो जल्दबाजी में थे! रीडर ने स्पष्ट किया।
हूं! कौन-सा लिफाफा है उनका?
ये सर, बाहर लिखा हैकृ नेकीराम गोयल!
तभी तीन-चार लोग कमरे में अंदर घुस आये।
सर, ये एफिडेविट अटैस्ट कराने थे।
अरे अब कोई अटैस्ट-वटैस्ट नहीं, कल आना। हमें अपना काम भी करने दोगे या नहीं?
सर, कल एडमिशन की लास्ट डेट है, वहीं ये एफिडेविट जमा कराना है। एक अभिभावक-सा लगने वाला आदमी गिड़गिड़ाया।
तो फोन कर देत्ता, मैं तेरे घर आ जात्ता अटैस्ट करने। साहब उखड़ गये। तुरन्त घण्टी बजाकर पीयन को बुलाया, अरे बाहर कर इनको और चाय ले आ।
इस काम में पारंगत पीयन ने कल आने की सलाह देकर तुरन्त सबको वहां से खदेड़ दिया।
साहब ने दिमाग पर जोर दिया, मैं क्या कह रहा था?
सर आपको डीसी साहब ने बुलाया था, उनसे मीटिंग के बारे में जनाब को कुछ बताना हो तो… रीडर ने कार्यकुशलता का परिचय दिया।
हां… आ.. आ. जब मैं मीटिंग में गया था तो कोई आया तो नहीं था? कोई टीचर, वीचर?
सर वो डीसी ऑफिस से राम सिंह आया था।
हां, क्या कह रहा था?
सर वो कह रहा था कि डीसी साहब की कोई फटीक है आपके लिए। रीडर ने झिझकते हुए बताया।
हां, यहां नोट पेड़ पे लगे हुए हैं, आ जाओ तोड़ लो। अरे भईया, डीटीसी है, डीएफ एससी है, जीएमडी आईसी है, वहां भी डाल लो न फटीक, सब कुछ तहसीलदार से चाहिए।
पीयन आया, चाय रखकर चुपचाप चला गया।
ठीक है, तुम जाओ। तहसीलदार ने रीडर को जाने का इशारा दिया।
और कोई मिलने वाला तो नहीं बैठा बाहर?
सर, वो स्वीट शाइनिंग स्कूल की टीचर मिलने आई हैं, काफी देर से आपकी इंतजार कर रही हैं।
हां-हां, भेजो उन्हें! उनके लिए चाय भी भेज देना।
सर!
रीडर कमरे से बाहर हो गया। कमरे में खुशबू से सराबोर सुंदर युवती ने प्रवेश किया,गुड इवनिंग!
अरे, आइये-आइये, वेरी गुड इवनिंग। साहब चहक उठे। कुछ ही देर में पीयन आया और चाय, बिस्किट ले आया। साहब कोई कविता सुना रहे थेकृपीयन के कमरे में आते ही साहब चुप हो गये।
गांव का युधि अब शहर का तहसीलदार युधिष्ठर लाल हो चुका है। पिताजी सरकारी स्कूल में मास्टरी करते रहे। कमाने वाला एक, खाने वाले सात। मास्टरजी पढ़ाई के मामले में सख्त थे और वो सख्ती उन्होंने घर में भी बनाये रखी। लिहाजा साधनों के अभाव में भी युधि और उसके भाई- बहन अच्छे अंकों के साथ पढ़-लिख गये। मास्टर जी रिटायर हो गये तो उन्होंने गांव के गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाना शुरू कर दिया।
नायब तहसीलदार पोस्ट की वेकैंसी आयी तो युधि ने जी-तोड़ मेहनत की और इसकी लिखित परीक्षा पास कर ली। अंधे की मक्खी, राम उड़ाये। लिखित परीक्षा पास करते ही किसी रसूखदार परिवार से रिश्ता आ गया। रिश्ता हो गया, सगाई हो गई तो बाकी का काम उसके ससुराल वालों ने कर दिया। दहेज के नाम पर रकम चाहे युधि ले ले या नौकरी में भर्ती होने के लिए आगे खर्च करा ले, काम तो एक ही होना था। और गांव के बीपीएल कार्ड का आवेदक युधि श्री युधिष्ठिर लाल, नायब तहसीलदार हो गया।
भर्ती होने के लिए जो खर्चा किया था, उसकी रिकवरी भी करनी थी। लिहाजा युधिष्ठिर ने थोड़े ही समय में नौकरी के सारे दांव-पेच सीख लिये। बस कभी-कभी तभी दिक्कत आती थी, जब गांव से मिले संस्कार उसके आड़े आ जाते थे। पिताजी के पढ़ाये पाठ उसकी नैतिकता जगा देते।
रूटीन की प्रमोशनी-छलांग लगाकर युधिष्ठिर लाल नायब-तहसीलदार से तहसीलदार बन गया। शहर में मकान बना लिया। पिताजी को भी यहीं ले आया। मां अब रही नहीं थी। मास्टर जी ने यहां भी गरीब बच्चों की टोली इक-ी कर ली और शाम को तहसीलदार साहब के सरकारी बंगले में बच्चों की क्लास लगनी शुरू हो गयी। लेकिन ये गांव के भोले बच्चे नहीं थे, ये शहर के हाजिर-जवाब बच्चे थे। तहसीलदार साहब के स्टेटस की कोई दलील मास्टर जी के सामने चल नहीं पाई थी। तहसीलदार साहब की बेगम भी नाक-भौं सिकोड़ कर रह जाती थी।
शाम को छह बजे साहब घर पहुंच गये। मास्टर जी की क्लास अभी चल ही रही थीकृ…तो बाबा भारती ने डाकू खडग़ सिंह को कहा कि खडग़ सिंह! भविष्य में किसी को लूटो तो साधू का वेश धारण मत करना, वरना लोग साधुओं पर भी विश्वास करना छोड़ देंगे।
सुन रहे हो अपने बाप का लेक्चर? बेगम भुनभुनाई।
अरे बुढ़ापे में दिल लगा रहता है। तुम क्यूं परेशान होती हो? साहब समझाने लगे।
नौकर बेडरूम में ही चाय रख गया। साहब ने लिफाफे मैडम को पकड़ा दिये। मैडम ने दूर तक पैनी नजर डालकर नौकरों और मास्टर जी की उपस्थिति को चौक किया और फिर लिफाफों से रुपये निकाल कर गिनने लगी।
मैडम चिंतित हो गयी, आज रुपये कुछ कम नहीं दिये हैं?
हां, एक लिफाफा अपने पास ही रख लिया है!
क्यों? तुम जितने ज्यादा रुपये अपने पास रखोगे, उतने ही ज्यादा उड़ाओगे। इसलिए सारे पैसे मेरे पास ही रहने दो।
यार ये वो गोयल वाला लिफाफा है।
कौन गोयल? मैडम कुछ समझ नहीं पा रही थी।
तो बाबा भारती ने खडग़ सिंह को कहा, खडग़ सिंह! नेकी को भूलना नहीं चाहिये। देखो… मास्टर जी नाटकीय मुद्रा में बोल रहे थे।
मैं पूछ रही हूं कौन गोयल? कौन है ये? कोई सिफारिशी है क्या?
साहब ढीले पड़ गये, तुम्हें याद है पिछले साल जब पिताजी को सिटी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ गया था तो अस्पताल वालों ने एडवांस पेमेंट जमा करने को कहा था। तब मेरे पास पचास हजार रुपये कम पड़ गये थे। मैंने नेकीराम गोयल को फोन किया, वह बीस मिनट में पचास हजार रुपये लेकर आ गया था। तब हम पिताजी को हॉस्पीटल में एडमिट करा सके थे। गोयल ने मेरे साथ नेकी की थी…
अच्छा, अच्छा! ये वही गोयल है!
हां! साहब की नैतिकता हिचकोले खा रही थी। आज गोयल ने एक प्लॉट की रजिस्ट्री करायी थी। जैसे सब रूटीन में रीडर को ही सुविधा-शुल्क पकड़ा जाते हैं, उसी तरह गोयल साहब भी रीडर को ही लिफाफा पकड़ा गये।
लेकिन आपने वो पचास हजार रुपये उन्हें लौटा तो दिये थे… मैडम युधिष्ठिर लाल की असमंजस को समझ नहीं पा रही थी।
हां, पचास हजार रुपये तो लौटा दिये थे। लेकिन जो नेकी उन्होंने मेरे साथ की, उस नेकी के बदले नेकी तो मैंने नहीं लौटायी। एक मन कर रहा है कि रुपये रख लूं। कोई दूसरा तहसीलदार रजिस्ट्री करता तो वो भी रुपये तो लेता ही। दूसरा मन कह रहा है कि जिसने मेरे साथ नेकी की, मुझे भी उसके साथ नेकी ही करनी चाहिये…।
हूं, समझी! तो साहब की नैतिकता जाग उठी है! मैडम ने मन ही मन कहा।
तो बच्चो! नेकी करो और दरिया में डालो…। मास्टर जी का ऊंचा स्वर सुनायी दिया।
नहीं गुरु जी! नेकी करो और दरिया में मत डालो! एक बच्चे ने हाथ उठाकर कहा।
क्या…? सभी चौंक गये। साहब, बेगम भी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। देखें, बच्चा क्या कहता है?
दसवीं कक्षा का विद्यार्थी खड़ा हो गया, गुरु जी! मेरे विचार से नेकी करने के बाद उसे दरिया में नहीं डालना चाहिये। मेरे पिताजी कहते हैं कि जब आप नेकी करेंगे तो कहीं न कहीं से जवाब में आपको नेकी ही मिलेगी। जब नेकी के बदले नेकी मिले तो इसके बारे में दूसरों को बतायें ताकि लोगों को पता चले कि नेकी करने पर नेकी मिलती है और इससे विचलित हो रहे इस समाज में नेक-नीयती का प्रचार हो, नेकी दूर तक फैले…।
जागरूक विद्यार्थी की राय स्पष्ट थी। विद्यार्थी के मुंह से इतनी बड़ी-बड़ी बातें सुनकर सबकी आंखें खुली की खुली रह गयी थीं। तहसीलदार साहब की भी आंखें खुल गयी थीं।
उन्होंने कातर दृष्टि से मैडम की ओर देखा। मैडम इस तरह से मुस्करायी जैसे भरे पेट शेर, हिरण को बख्शते हुए उसकी तरफ स्माइल मार देता है।
साहब ने अगले ही दिन नेकीराम गोयल को बुलवाया और लिफाफा वापस लौटाते हुए कहा, थैंक्यू गोयल साहब। जब आप मेरी मदद करके नेकी दिखा सकते हैं तो क्या मुझे नेक होने का अधिकार नहीं है? साहब के मन से बोझ हट गया था।
गोयल साहब हंसने लगे, ऐसे नहीं, साहब! जब नेक बनना है तो पूरे नेक बनो, ऐसे आधे-अधूरे नेक बनने से काम नहीं चलेगा।

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