New Delhi: भ्रष्टाचार के मामले मे किसी लोक सेवक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और संदीप मेहता की पीठ ने कर्नाटक सरकार बनाम डीएन सुधाकर रेड्डी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर सरकारी नौकरी कर रहे उन तमाम सरकारीकर्मियों पर पड़ेगा, जो भ्रष्टाचार के आरोपी हैं और जिनके खिलाफ लंबे समय से प्रारंभिक जांच चल रही है. अब ऐसे सरकारीकर्मियों के खिलाफ सीधे प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है. लोकपाल ने भ्रष्टाचार से जुड़े मामले एक लोक सेवक के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपों की सुनवाई के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था. इसके आलोक में थाने में प्राथमिकी दर्ज की गयी. प्राथमिकी दर्ज होने के बाद लोक सेवक ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. सुनवाई के दौरान यह दलील दी कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में लोक सेवकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने का प्रावधान है. उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में इस प्रावधान का उल्लंघन किया गया है. मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने प्राथमिकी रद्द करने का आदेश दिया. इसके बाद कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट में सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान इस बिंदु पर विचार किया गया कि क्या प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी है. न्यायालय ने सभी पक्षों की दलील सुनने और पूर्व में दिये गये फैसलों की व्याख्या की. न्यायालय ने अपने फ़ैसले में कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में लोक सेवकों को ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच जरूरी नहीं है. लोक सेवक भी प्रारंभिक जांच की मांग नहीं कर सकते हैं.
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