पीएमएवाई-जी के मकान को बेच देते हैं लाभार्थी, रोकने के लिए बने निगरानी तंत्रः संसदीय समिति
नई दिल्ली। संसद की ग्रामीण विकास संबंधी स्थायी समिति ने खुलासा किया है कि प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत बने आवासों का निर्माण पूरा होने के बाद लाभार्थी एक-दो वर्ष बाद ही योजना के तहत मिले घर को बेच देते हैं। इससे केंद्र सरकार की वर्ष 2022 तक ‘सबके लिए घर’ योजना को भारी झटका पहुंच रहा है। समिति ने सरकार से इस धांधली को रोकने के लिए निगरानी तंत्र बनाने का सुझाव दिया है।
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ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के सोलहवें प्रतिवेदन में सरकार का ध्यान कई गड़बड़ियों की ओर आकृष्ट किया गया है। संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में समिति ने इस बात का उल्लेख किया है कि पीएमएवाई-जी के अंतर्गत बने आवासों का निर्माण पूरा होने पर लाभार्थी उनमें एक या दो वर्ष रहकर योजना से बने घरों को बेच देते हैं।
केंद्र सरकार की वर्ष 2022 तक सबके सिर पर छत देने की योजना को जमीनी स्तर पर किस तरह नुकसान पहुंच रहा है, उसे समिति ने बखूबी उजागर किया है। समिति ने सरकार से इस धांधली को रोकने के लिए बकायदा एक निगरानी तंत्र बनाने का सुझाव दिया है, ताकि सरकार की ‘सब के लिए घर’ योजना के माध्यम से गरीबों और जरूरतमंदों के लिए समुचित और पक्का मकान उपलब्ध कराने की योजना में अवरोध पैदा न हो।
प्रतापराव जाधव की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा यह पता लगाने के लिए एक ‘एक ट्रैकिंग सिस्टम’ विकसित किया जाए, ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि लाभार्थी आवंटित घर में रह रहे हैं या कोई अन्य व्यक्ति उस मकान को खरीदकर उसका उपयोग कर रहा है।
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समिति ने यह भी कहा है कि इस तरह के कृत्य को रोकने के लिए समयबद्ध अवधारणा (घर में रहने के लिए वर्षों की न्यूनतम संख्या) के आधार पर कोई न कोई उपबंध तैयार किया जाना चाहिए, ताकि वर्ष 2022 तक गरीबों और जरूरतमंदों के लिए समुचित और पक्का घर बनाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।
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