राजस्थान : जयपुर की एक विशेष अदालत ने नाबालिगों की ट्रैफिकिंग के आरोप में दो आरोपियों को 14 साल के कठोर कारावास और 5 लाख 64 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।
उल्लेखनीय है कि 16 अक्टूबर 2018 को बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के कार्यकर्ताओं ने पुलिस और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) के सहयोग से जयपुर के शास्त्रीनगर के सुदामापुरी, पेंटर कॉलोनी में एक इमारत पर रेड एंड रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम दिया था और वहां से कुल 33 बाल मजदूरों को मुक्त कराया। सभी बच्चे इमारत की मंजिलों पर चूड़ी बनाने का काम करते थे।
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सभी बच्चे ट्रैफिकिंग करके बिहार से राजस्थान के जयपुर लाए गए थे और कठिन एवं विकट परिस्थितियों में काम करने को मजबूर थे। चाय और बिस्कुट पर बच्चों से सुबह आठ बजे से रात के 12 बजे तक काम कराया जाता था। उन्हें कोई मजदूरी नहीं दी जाती थी। उन्हें इमारत से बाहर भी नहीं निकलने दिया जाता। बच्चे जब भी उनका विरोध करते, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जाती। बच्चों से बात करने पर पता चला कि उन्हें पढाने-लिखाने के नाम पर लाया गया था। बच्चों को मुक्त कराने के बाद उन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया, जिसने उन्हें चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट में रखने का निर्देश दिया।
इस बीच पुलिस ने जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम और बाल अधिकारों के प्रासंगिक प्रावधानों के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 370 (5) (एक से अधिक नाबालिगों की ट्रैफिकिंग), 374 (गैरकानूनी श्रम) और 344 (किसी को जबरदस्ती पकड़कर रखना) के तहत चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। आरोपियों में मोहम्मद कुदुस, मोहम्मद यूनुस, हसमुल मियां और मोहम्मद शमशाद शामिल थे।
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विशेष अदालत की तारा अग्रवाल ने मोहम्मद कुदुस और मोहम्मद यूनुस को 14 साल के सश्रम कारावास के साथ कुल 5 लाख 64 हजार रुपये के जुर्माने की सजा भी सुनाई। मुकदमे के दौरान मोहम्मद शमशाद की मृत्यु हो गई और उसके खिलाफ आरोप हटा दिए गए। हसमुल मियां को बरी कर दिया गया। न्यायाधीश ने कहा कि दोनों आरोपियों ने बच्चों के अधिकारों का हनन किया और उन्हें बाल श्रम के लिए मजबूर किया। बच्चों के प्रति शारीरिक और मानसिक क्रूरता और उन्हें बाल श्रम के लिए मजबूर करना एक जघन्य अपराध है और अभियुक्तों के प्रति दिखाई गई किसी भी तरह की नरमी समाज में इस तरह के अपराध में तेजी ला सकती है।
बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हम इस फैसले के लिए अदालत के आभारी हैं। इस तरह के जघन्य अपराधों को रोकने के लिए कड़ी सजा ही एकमात्र उपाय है। हमलोग कई वर्षों से जयपुर समेत पूरे देश से बाल मजदूरों को मुक्त कराने का काम कर रहे हैं। बाल मजदूरों से मुक्त समाज बनाने के लिए हम आगे भी अपना प्रयास जारी रखेंगे। हम केंद्र सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह संसद के अगले सत्र में एंटी ट्रैफिकिंग कानून को पारित करेगी।’’
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