-अनुज कुमार आचार्य-
हिमाचल प्रदेश की मनोरम वादियां, स्वच्छ जलवायु और नैसर्गिक सुंदरता जहां स्वास्थ्य के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ है वहीं इसके उलट प्रदेश में बढ़ते नशे का प्रचलन हमारी युवा पीढ़ी को दिनोंदिन शारीरिक रूप से खोखला कर रहा है। हिमाचल में आज 27 प्रतिशत युवा किसी न किसी नशे की चपेट में हैं और उनमें नशे के प्रति आकर्षण दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। वहीं, इस धंधे से जुड़े तथा मोटी चांदी कूट रहे नशीले पदार्थों के कारोबारियों के हौसले बुलंद हैं। प्रदेश में 2017 की अवधि में 3 किलो 417 ग्राम चिट्टा पकड़ा गया था तो वर्ष 2019 की पहली छमाही में ही 3 किलो 164 ग्राम चिट्टा पकड़ा जा चुका है। इसके अलावा चरस, गांजा, भांग, अफीम, चूरा-पोस्त और नशीली गोलियों की तादाद हजारों में पकड़ी जा रही है। पुलिस का मानना है कि समाज की उदासीनता और असहयोग के कारण इस मामले में पुलिस को वांछित सफलता नहीं मिल पा रही है। आज नशे से मुक्ति के लिए जगह-जगह रैलियां निकाली जा रही हैं और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी नशे से जंग में पूरी कामयाबी नहीं मिल पा रही है। नशे से मुक्ति के लिए हर साल 30 जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प दिवस, 31 मई को अंतरराष्ट्रीय घुम्रपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और 2 से 8 अक्तूबर तक भारत में मद्य निषेध दिवस मनाए जाते हैं, लेकिन नतीजों के दृष्टिकोण से ये दिवस महज कागजी साबित हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार 15 नवंबर से 15 दिसंबर 2019 को एक बार फिर से नशे के खिलाफ एक महाअभियान शुरू करने जा रही है और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को इस अभियान का नोडल विभाग बनाया गया है। भारत में नारकोटिक ड्रग एवं साइकाट्रापिक सब्सटेंस अधिनियम 1985 में बनाया गया था और इस कानून को और प्रभावी बनाने के लिए 2014 में संशोधन बिल लाया गया था। एनडीपीएस एक्ट 1985 की धारा 71 के अंतर्गत सरकार को नशीली दवा के आदी लोगों की पहचान, इलाज और पुनर्वास केंद्र की स्थापना का अधिकार है। नशे का कारोबार करने वालों के खिलाफ पुलिस को सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के प्रावधानों को पूरी तरह से लागू करने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को एक्ट की धारा 42 का पालन करने को कहा है। धारा 42 के तहत जांच अधिकारी को बगैर किसी वारंट या अधिकार पत्र के तलाशी लेने, मादक पदार्थ जब्त करने तथा गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है। एनडीपीएस एक्ट के अंतर्गत नशीले पदार्थ का सेवन करना, रखना, बेचना या उसका आयात-निर्यात करना अथवा नशीले एवं मादक पदार्थों के कारोबार में किसी की सहायता करने पर सख्त सजा का प्रावधान है। इस कानून के अंतर्गत सरकार विशेष न्यायालयों की स्थापना कर मुकदमा चला सकती है। यह सत्य है कि सख्त कानूनी प्रावधानों के बावजूद नशे के कारोबारियों में कहीं खौफ नजर नहीं आता है और वे रातोंरात अमीर बनने की चाहत में हमारी युवा पीढ़ी को नरक की गर्त में धकेल रहे हैं। जांच एजेंसियों को ऐसे नशे के कारोबारियों, उनके एजेंटों पर शिकंजा कसने और उनकी संपत्तियों को जब्त करने तथा उनमें भय का माहौल पैदा करने की जरूरत है। हिमाचल के कस्बों, शहरों तथा शिक्षण संस्थानों के आसपास लगातार पुलिस गश्त और संदिग्ध लोगों से पूछताछ होनी चाहिए। जरूरत है पुलिस थानों में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए तथा उन्हें पर्याप्त मात्रा में गश्त हेतु वाहन दिए जाएं। जयराम सरकार हिमाचल में बढ़ते नशे के कारोबार से निपटने के लिए सख्त कदम उठा रही है। नशे के विरुद्ध अभियान को राज्यव्यापी जनांदोलन का रूप देते हुए सरकार ने ‘युवा नवजीवन बोर्ड’ का गठन किया है, जिसके मुख्यमंत्री स्वयं अध्यक्ष हैं। यह बोर्ड युवाओं को नशे से मुक्ति, पुनर्वास और मादक पदार्थों की तस्करी रोकने जैसे विषयों पर प्रभावी नीतियां बनाने की दिशा में अग्रसर है। प्रदेश में 5 नए नशा निवारण एवं पुनर्वास केंद्रों की स्थापना का ऐलान भी किया गया है। नशे के खिलाफ जंग के लिए प्रदेश के 70 अस्पतालों में नशा निवारण केंद्रों की शुरुआत की गई है। जिला स्तर पर प्रत्येक बुधवार को ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर में ओपीडी लगाने की व्यवस्था की जा रही है। नशे के खिलाफ हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा एक हेल्पलाइन 104 नंबर भी स्थापित की गई है। केंद्र द्वारा प्रायोजित 3 ‘इंटग्रिटेड रिहेबिलिटेशन सेंटर फार एडिक्ट्स’ एनजीओ की मदद से कुल्लू, धर्मशाला और नूरपुर में जरूर काम कर रहे हैं जहां नशे के रोगियों का इलाज किया जा रहा है। आशा है कि समाज की सक्रिय भागीदारी से प्रदेश सरकार हिमाचल से नशे को समाप्त करने में कामयाब होगी।
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