अपने कर्म के अनुसार पाप और पुण्य के बीच फंस जाता है मनुष्य

भगवान समस्त शरीरों के प्रति सचेत रहते हैं। चूंकि वे प्रत्येक जीव के हृदय में वास करने वाले हैं, अतएव वे जीवविशेष की मानसिक गतिशीलता से परिचित

ईश्वर क्षेत्रज्ञ या चेतन है, जैसा कि जीव भी है, लेकिन जीव केवल अपने शरीर के प्रति सचेत रहता है, जबकि भगवान समस्त शरीरों के प्रति सचेत रहते हैं। चूंकि वे प्रत्येक जीव के हृदय में वास करने वाले हैं, अतएव वे जीवविशेष की मानसिक गतिशीलता से परिचित रहते हैं। परमात्मा प्रत्येक जीव के हृदय में ईश्वर या नियंता के रूप में वास कर रहे हैं और जैसा जीव चाहता है वैसा करने के लिए जीव को निर्देशित करते रहते हैं। जीव भूल जाता है कि उसे क्या करना है।…

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